चांदनी छत पे चल रही होगी/ दुष्यंत कुमार - Kashi Patrika

चांदनी छत पे चल रही होगी/ दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार "साये में धूप"

चांदनी छत पे चल रही होगी,
अब अकेली टहल रही होगी।

फिर मेरा जिक्र आ गया होगा,
बर्फ-सी वो पिघल रही होगी।

कल का सपना बहुत सुहाना था,
ये उदासी न कल रही होगी।

सोचता हूँ कि बंद कमरे में,
एक शमअ-सी जल रही होगी।

तेरे गहनों सी खनखनाती थी,
बाजरे की फसल रही होगी।

जिन हवाओं ने तुझ को दुलराया,
उन में मेरी गजल रही होगी। 

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