बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

 कहीं वादों की सरकार बनकर न रह जाए भाजपा

मई 2014 के बाद बहुत कुछ बदल गया है। अब ये वो पहले वाला भारत नहीं रहा जहां सत्ता के गलियारों में कुछ भी हो जाए, जनता खामोश रहने को बाध्य थी। जितना ज्यादा प्रधानमंत्री लोगों से जुड़ने के लिए आगे आए, उतना ही जनता भी उनसे सीधे सम्पर्क स्थापित करने को आगे आई। पूरा माहौल अब दो पक्षीय हो गया है, जहाँ जनता अपनी चुनी सरकार से सीधे संवाद स्थापित कर सकती हैं। रहा सहा काम सोशल मिडिया ने कर दिया है और हर एक को एक प्लेटफॉर्म उपलब्ध हो गया हैं कि वो अपनी बात खुलकर लोकतंत्र में रख सके। 

मई 2014 में सरकार जिस वादे के साथ आई थी, उसमें भारत से करप्शन मिटाना एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। लोगों ने उस दौर की व्यवस्था के अनुरूप इसे बहुत पसंद किया। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की बेदाग छवि ने भी लोगों को आकर्षित किया। उन्हें एक ऐसा अगुआ दिखाई पड़ा, जिसका सामाजिक दायरा पूरा भारत है न की घर- परिवार। 

आज जब सरकार को 4 साल पूरे होने को आए है, तो इस मुद्दे पर आम जन-मानस अभी भी सरकार से सवाल पूछ रही है, गाहे-बगाहे विपक्ष भी इस मुद्दे को तूल देता रहता है कि विदेशों में जमा काला धन सरकार कब वापस ला रही है। ये वर्तमान सरकार का पहला मुद्दा है, जो केवल वादा बनकर रह गया। 

दूसरा मुद्दा था गरीबी हटाने का मगर आम जन मानस का कहना है कि सरकार ने गरीबी हटाने का प्रयास जितना नहीं किया, उससे कही ज्यादा कैपिटलिज़्म को बढ़ावा दिया है। इससे गरीब और गरीब होता जा रहा है और अमीर और अमीर। बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका सरकार पर सीधे तौर पर दोषारोपण करता है कि सरकार ने गरीबों के लिए कुछ भी नहीं किया और सभी योजनाओं का जमीनी स्तर पर कोई लाभ नहीं हुआ। 

माध्यम वर्ग जो भाजपा का मुख्य वोट बैंक माना जाता है, उसके लिए सरकार ने जितने भी वादे किये लोगो का कहने है कि सत्ता में आने के बाद सरकार ने ठीक उसका विपरीत किया। आज अगर देखा जाए, तो माध्यम वर्ग ही वो सबसे बड़ा तबका है जो सरकार से सबसे ज्यादा पीड़ित दिखाई पड़ता है। 

इसके बाद के वादों का भी हाल अमूमन एक सा है। विशेषज्ञों की मानें तो  सरकार ने कश्मीर में हो रहे सेना पर पाकिस्तानियों के हमलों को रोकने का वादा बड़ी मजबूती से किया था, पर उसका कोई हल निकलता नहीं दिख रहा हैं, बल्कि हमलों की संख्या में इजाफा ही हुआ है। नोट बंदी और उसके बाद हर के खाते में पंद्रह लाख लाने की बात पर विपक्ष आज भी सरकार को घेरती रहती हैं। 


- संपादकीय 

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