सृजनात्मकता/ओशो - Kashi Patrika

सृजनात्मकता/ओशो

जब तुम्हारी कला मौन से, ध्यान से आता है, जो पूर्व निर्धारित या पहले से विचारा न गया हो, तो तुम स्वयं उसे देखकर आश्चर्यचकित रह जाओगे...


विषयगत और वस्तुगत कला का भेद मूलरूप से ध्यान पर आधारित है। जो कुछ भी मन से आता है विषयगत कला रहेगा, और जो कुछ भी आ-मन से, मौन से, ध्यान से आता है, वह वस्तुगत कला होगा।

यह साधारण सी परिभाषा है और तुम्हारी भ्रान्ति को नष्ट कर देगी। चाहे तुम कुछ रचनात्मक कर रहे हो--तुम एक मूर्तिकार हो सकते हो, तुम एक बढ़ई हो सकते हो, तुम एक चित्रकार हो सकते हो, एक कवि, एक गायक, एक संगीतकार -- जो कुछ भी स्मरण रखने जैसा है, वो यह है कि वह तुम्हारे भीतर के मौन से आ रहा हो, उसमे एक सहजता हो। वह पहले से व्यवस्थित, पूर्व-निर्धारित या पहले से विचारा ना गया हो।  जैसे-जैसे तुम कुछ रचनात्मक कर रहे होते हो, तुम खुद आश्चर्यचकित होते जाओ--तुमने स्वयं को आस्तित्व के हाथों में छोड़ दिया है।

No comments:

Post a Comment