सरकारी नौकरियों का सौन्दर्य आज भी लोगों के जहन में जस का तस बना हुआ है कारण है इसकी उप्लब्धता, भविष्य के आसार, सुरक्षा और अत्यधिक सैलरी। बहुलता वाले देश में कार्यकुशल लोगों की कमी नहीं होती और भारत के साथ भी ऐसा ही है। बहुतायत में कर्मठ व ईमानदार युवाओं से भरे और संसाधनों से परिपूर्ण देश में अवसर की कमी के कारण युवा सरकारी नौकरी के इंतजार में बैठने को मजबूर है। और स्थितिकी गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोजगार दफ्तर युवाओं के आवेदनों से पटे पड़े हैं। आकड़े ये बताते है कि सरकारी क्षेत्र में नौकरी के एक पद के लिए सैकड़ों-हजारों की तादाद में आवेदन आते हैं। इसका एक सीधा सा अर्थ है कि युवाओं को उनके मनमाफिक काम नहीं मिलता। पिछले साल की हिमांचल की एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्मचारी चयन आयोग द्वारा क्लर्क के ३२० पदों को भरने के लिए ५७ हजार दावेदार सामने आए इनमे उच्च शिक्षित क्वालिफाइड लोगों ने भी आवेदन किया। आकड़ा गंभीर संकेत देता है कि युवा या तो बेरोजगार ही रहता है या सरकारी नौकरी कर पता है।
स्थिति और भयावह तब हो जाती है जब यही युवा छोटी-मोटी नौकरी के लिए प्राईवेट दफ्तरों के चक्कर लगतें है और मजबूरन शोषण के शिकार होते हैं। इसके इतर करप्शन स्थिति को और भयावह बना देता है जब उच्चशिक्षित युवा की योग्यता के इतर नौकरी किसी परिचय वाले को दे दी जाती है। कितने ही क्वॉलिफाइड युवाओं के आत्महत्या की रोपोर्ट दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। लोगों की सामान्य अवधारण के अनुरूप सरकार भी इस दिशा में कोई कार्य नहीं करती न ही स्थिति की गंभीरता को देखने की दिशा नजर आती हैं। सरकार के इतने प्रयासों के बावजूद रोजगार सृजन नहीं हो रहा है ये एक कटु सत्य है।
पिछले चार सालों के रोजगार के आकड़े देखे जाए तो अधिकांश लोग हताश हो जायेंगे। सरकार ने न के बराबर सरकारी नौकरियों में भर्ती की हैं और प्राईवेट सस्थानों ने भी लोगों को हताश ही किया हैं। संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष २०१७ और २०१८ के बीच भारत में बेरोजगारी में मामूली इजाफा हो सकता है और रोजगार सृजन में बाधा आने के संकेत हैं। २०१७ की इस रिपोर्ट से कहीं ज्यादा सख्या में नौकरीयों में गिरावट आई है। जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में भी रोजगार में कोई बढ़ोतरी होने के आसार न के बराबर हैं। इस तरह विपक्ष के कटाक्ष सत्यता के साथ वर्तमान सरकार की कहानी कहता प्रतीत होता है कि यह सरकार जुमलों की सरकार हैं।
स्थिति और भयावह तब हो जाती है जब यही युवा छोटी-मोटी नौकरी के लिए प्राईवेट दफ्तरों के चक्कर लगतें है और मजबूरन शोषण के शिकार होते हैं। इसके इतर करप्शन स्थिति को और भयावह बना देता है जब उच्चशिक्षित युवा की योग्यता के इतर नौकरी किसी परिचय वाले को दे दी जाती है। कितने ही क्वॉलिफाइड युवाओं के आत्महत्या की रोपोर्ट दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। लोगों की सामान्य अवधारण के अनुरूप सरकार भी इस दिशा में कोई कार्य नहीं करती न ही स्थिति की गंभीरता को देखने की दिशा नजर आती हैं। सरकार के इतने प्रयासों के बावजूद रोजगार सृजन नहीं हो रहा है ये एक कटु सत्य है।
पिछले चार सालों के रोजगार के आकड़े देखे जाए तो अधिकांश लोग हताश हो जायेंगे। सरकार ने न के बराबर सरकारी नौकरियों में भर्ती की हैं और प्राईवेट सस्थानों ने भी लोगों को हताश ही किया हैं। संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष २०१७ और २०१८ के बीच भारत में बेरोजगारी में मामूली इजाफा हो सकता है और रोजगार सृजन में बाधा आने के संकेत हैं। २०१७ की इस रिपोर्ट से कहीं ज्यादा सख्या में नौकरीयों में गिरावट आई है। जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में भी रोजगार में कोई बढ़ोतरी होने के आसार न के बराबर हैं। इस तरह विपक्ष के कटाक्ष सत्यता के साथ वर्तमान सरकार की कहानी कहता प्रतीत होता है कि यह सरकार जुमलों की सरकार हैं।
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