एकला चलो... - Kashi Patrika

एकला चलो...

जन्मदिवस विशेष:
"जोदि तोर दक शुने केऊ ना ऐसे तबे एकला चलो रे" (बांग्ला: যদি তোর ডাক শুনে কেউ না আসে তবে একলা চলো র" यदि आपकी बात का कोई उत्तर नहीं देता है, तब अपने ही तरिके से अकेले चलो" इस बंगाली देशभक्ति गीत के रचयिता
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने देश और देशवासियों को बहुत कुछ दिया। उनके कुछ अनमोल विचार जो जीवन में सीख देते हैं-

प्रेम मात्र भावना नहीं वरन् परम सत्य है। प्रेम ही एकल यथार्थता है और ये मात्र एक भावना नहीं है। ये परम सत्य है तथा प्रकृति के हृदय में वास करता है।


सब कुछ हमारे पास आता है, जो हमारा है। यदि हम उसे प्राप्त करने के सामर्थ्य का सृजन करते हैं।


विश्वास वो पक्षी है, जो प्रकाश का अनुभव करता है जब कि प्रातः अभी भी अन्धकार से भरा है।

हर बच्चा अद्भुत है। किसी भी बालक को अपनी शिक्षा के अनुसार सीमित ना करो क्योंकि वो किसी भिन्न समय में पैदा हुआ है।

नैसर्गिक सौंदर्य नहीं मिटता है। एक फूल की पत्तियां तोड़ने से तुम उसकी सुंदरता नहीं ले सकते।


प्रेम आधिपत्य का दावा नहीं करता, अपितु स्वतंत्रता देता है।


मित्रता की गहराई जान-पहचान की लंबाई पर निर्भर नहीं करती। प्रेम में तर्क की निरर्थकता जो मन केवल तर्क से भरा है वो ऐसा चाकू है जो केवल तीखा है। वो उस हाथ को क्षति पहुंचाता है जो उसका उपयोग करता है।

प्रेम एक अन्तहीन रहस्य है, क्योंकि इसके पास और कुछ व्याख्या करने के लिए नहीं है।

अपने जीवन को समय के किनारों पे नाचने दो जैसे ओस की बूंदें पत्तों के किनारों पर नाचती हैं।

सेवा ही आनंद है। मैं सो गया तथा स्वप्न लिया कि जीवन आनंद है। मैं जगा और देखा कि जीवन सेवा है। मैंने कर्म किया और देखा कि सेवा ही आनंद था।

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