बात उन दिनों की है जब श्रीलंका में लिट्टे शाषित क्षेत्र हुआ करता था। हमारी आर्मी के एक जवान का इंटरव्यू करने का मौका मिला था। उसके बहुत से जबाबों में एक जबाब जो सबसे महत्वपूर्ण था वो ये कही कि उसने बड़ी गर्मजोशी से हमारी सांझी सस्कृति को देखा है। आप अक्सर विशेषज्ञों को इस मुद्दे पर बोलते सुनते होंगे मगर एक आर्मी के मुँह से ये बात बहुत ज्यादा रोचक है जो अपने देश को अपनी जिंदगी से ज्यादा प्यार करता हैं...
श्रीलंका भारत का सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिकार है और वहां की राजनीति अपनी राजनैतिक क्षमता के बहुत करीब है। मगर हालिया कुछ सालों से श्रीलंका की राजनीति में अमूल-चूल परिवर्तन आया है। अब वहां के रणनीतिकार भारत से ज्यादा खुद को चीन के करीब मानते है इसका सबसे बड़ा कारण वहां के रणनीतिकारों का कमजोर नेत्तृत्व है जिसे भविष्य की योजनाओं से अपनी आर्थिक प्रगति ज्यादा उन्नत प्रतीत होती हैं।
एक छोटे देश की आवश्यकताए भी छोटी होती है और उसकी पूर्ति किसी बड़े देश के लिए पूरा करना आसान है। पर इन आवश्यकताओं की पूर्ति के एवज में बहुत कुछ देना होता है ये शायद श्रीलंका जैसे छोटे देश नहीं समझते। कभी-कभी इन आवश्यकताओं की पूर्ति अपनी स्वतंत्रता को गिरवी रख कर पूरा करना होता हैं। मगर जब यही सम्बन्ध भारत के परिपेक्ष में दृष्टिगोचर होता है तो भारत ने जिन भी पड़ोसी देशो की सहायता की है उनको आत्मनिर्भर होने का गुण सिखाया हैं।
आज तेजी से बदलते शक्ति संतुअन में श्रीलंका अपनी स्थिति खोता जा रहा है अब अक्सर उसका नाम चीन के एक अधिकृत क्षेत्र के रूप में होने लगी है जिसने अपनी सामरिक कमान चीन को दे रखी है। फिर चाहे मामला चीन का श्रीलंका की भूमि पर बंदरगाह निर्मित करने का क्यों न हो। आज जब भारत बढ़ती सांस्कृतिक और राजनैतिक शक्ति के आगे चीन की सामरिक और सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्य्ता फीकी पड़ती जा रही है तो श्रीलंका को भी अपनी विदेश निति बदलने की आवश्यकता है। किसी बड़े देश का गुलाम बनने से अच्छा है अपनी स्वतंत्रता अपने दोस्तों और सांस्कृतिक साझेदारों के साथ बांटी जाए।
- संपादकीय
श्रीलंका भारत का सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिकार है और वहां की राजनीति अपनी राजनैतिक क्षमता के बहुत करीब है। मगर हालिया कुछ सालों से श्रीलंका की राजनीति में अमूल-चूल परिवर्तन आया है। अब वहां के रणनीतिकार भारत से ज्यादा खुद को चीन के करीब मानते है इसका सबसे बड़ा कारण वहां के रणनीतिकारों का कमजोर नेत्तृत्व है जिसे भविष्य की योजनाओं से अपनी आर्थिक प्रगति ज्यादा उन्नत प्रतीत होती हैं।
एक छोटे देश की आवश्यकताए भी छोटी होती है और उसकी पूर्ति किसी बड़े देश के लिए पूरा करना आसान है। पर इन आवश्यकताओं की पूर्ति के एवज में बहुत कुछ देना होता है ये शायद श्रीलंका जैसे छोटे देश नहीं समझते। कभी-कभी इन आवश्यकताओं की पूर्ति अपनी स्वतंत्रता को गिरवी रख कर पूरा करना होता हैं। मगर जब यही सम्बन्ध भारत के परिपेक्ष में दृष्टिगोचर होता है तो भारत ने जिन भी पड़ोसी देशो की सहायता की है उनको आत्मनिर्भर होने का गुण सिखाया हैं।
आज तेजी से बदलते शक्ति संतुअन में श्रीलंका अपनी स्थिति खोता जा रहा है अब अक्सर उसका नाम चीन के एक अधिकृत क्षेत्र के रूप में होने लगी है जिसने अपनी सामरिक कमान चीन को दे रखी है। फिर चाहे मामला चीन का श्रीलंका की भूमि पर बंदरगाह निर्मित करने का क्यों न हो। आज जब भारत बढ़ती सांस्कृतिक और राजनैतिक शक्ति के आगे चीन की सामरिक और सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्य्ता फीकी पड़ती जा रही है तो श्रीलंका को भी अपनी विदेश निति बदलने की आवश्यकता है। किसी बड़े देश का गुलाम बनने से अच्छा है अपनी स्वतंत्रता अपने दोस्तों और सांस्कृतिक साझेदारों के साथ बांटी जाए।
- संपादकीय
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