एक तालाब की बहुत दिनों से सफाई नहीं की गयी। वहा के लोगों के लिए इस तालाब की उपयोगिता अब न के बराबर ही रह गयी थी। सबके घरो में अब चापाकल की सुविधा थी। ऐसे ही चापा कल से पानी पीते-पीते साल बीतते गए। घरो में अब नल पहुंच चूका था फिर क्या, अब घरो में लगवाए गए चापाकल भी उपयोगी न रह गए थे। और उपयोग न होने से अब चापाकल भी चलने लायक़ न रह गए। दिन नल के सहारे भी बीतते गए। फ़िर पानी इतना गन्दा हो गया के अब उसे ख़रीद कर ही इस्तेमाल किया जाने लगा और नल का पानी अब बस पौधों पर छिड़के और कपडे बर्तन धोने के लिए बहाया जाने लगा। साल ऐसे भी बीतते गए। अब शहर में एक भी नदी या तालाब स्वच्छ न रह गयी थी नल गन्दा पानी दे रहे थे और साफ पानी को ख़रीदने में रूपये ख़र्च हो रहे थे।
शहर में एक फ़क़ीर आया हुआ था वह तालाब साफ़ करने लगा। यह एक का काम तो था नहीं फिर ऐसे ही फ़क़ीर जुटते गए और महीनो में तालाब का पानी पीने योग्य हो ही गया। अब फ़क़ीर ने लोग को कहा जो परमेश्वर ने मुफ्त बांटी है उसके भी पैसे देते हो। परमेश्वर ने तुम्हारे ज़रूत भर की सभी वस्तुएं तो दे रखी है। तुमको पाने के लिए श्रम ख़र्च करना होगा और तुम करते पैसे हो। पैसे से जो भी मिलता है वह तो बेचीं जाती है तुम्हें, मिलावट वाली। श्रम से अर्जित किया है तो शुद्ध पाओगे। ईश्वर के श्रोतो को मेहनत से आबाद रखो नहीं तो प्यासे मर जाओगे एक दिन।
'जब श्रोत ही न बचेगा फ़िर पाओगे कहा से और देगा कोई कैसे, पैसा-रुपया तो न खा- पी सकते तुम ।'
लोगो ने अब हर कुएं , तालाब, नदी , कूप को बचाने की ठान ली। पसीना मशीन पर बहाने से अच्छा प्रकृति को बचाये रखने में श्रम दान हो।
अदिति
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