सत्य को ढूंढ नहीं सकते/ओशो - Kashi Patrika

सत्य को ढूंढ नहीं सकते/ओशो

सत्य को ढूंढ़ा नहीं जा सकता-कोई बस ग्रहणशील हो सकता है, बस इतनी सी बात है। कोई द्वार खुले रखकर इंतजार कर सकता है। कोई बस इतना कह सकता है--"यदि दिव्य मेहमान आता है, तुम ग्रहण करोगे, स्वागत करोगे। मैं नहीं जानता कि तुम कौन हो, और मैं तुम्हारा पता नहीं जानता और मैं निमंत्रण पत्र भी नहीं भेज सकता। लेकिन जो कोई भी तुम हो, और जिससे भी तुम्हारा संबंध हो, यदि तुम आते हो, मेरे द्वार खुले मिलेंगे--तुम उन्हें बंद नहीं पाओगे।" साधक इतना ही कर सकता है। और इतना ही करने की जरूरत है। इससे अधिक संभव भी नहीं है और जरूरत भी नहीं है।

इसलिए इस अवस्था को अपना गहन रवैया बन जाने दो। तुम्हें ग्रहणशील हो जाना है। सत्य की खोज पुरुष चित्त की खोज नहीं है। यह एक स्त्रैण खोज है--केवल एक स्त्रैण ऊर्जा की तरह--ग्रहणशील। न कि पुरुष की तरह--आक्रामक।

ध्यान की अवस्था गहन ग्रहणशील अवस्था है, एक तैयारी, खुला द्वार।

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