कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है/अकबर इलाहाबादी - Kashi Patrika

कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है/अकबर इलाहाबादी

कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है।
यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफिल है।

इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं,
हर सूरत कलेजे से लगा लेने के काबिल है।

ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा,
मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल है।

जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुँझलाकर,
अरे तू कौन है, हट सामने से क्यों मुकाबिल है।

हजारों दिल मसल कर पाँवों से झुँझला के फरमाया,
लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है।

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