आपकी गृहस्थी - हाथ को हाथ का मिले जो सहारा, भाग्य बने सौभाग्य हमारा.... - Kashi Patrika

आपकी गृहस्थी - हाथ को हाथ का मिले जो सहारा, भाग्य बने सौभाग्य हमारा....

गृहस्थी के दो पहिये हमेशा साथ ही चलते है। क्या किसी गाड़ी का आगे बढ़ना सम्भव होगा के पहिया अपने हिसाब से घूमे। 
पति हो चाहे पत्नी जीवन की गाड़ी के सबसे महत्वपूर्ण पहिये दोनों ही है,किसी एक की भी अहमियत दूसरे से कम नहीं आंकी जा सकती। 

रीमा को पति की ही पसंद का खाना बनाना पड़ता था। उसे माँ के घर पर बनने वाली उसके अपने पसन्द का खाना कभी- कभी यहाँ उसके मुँह का स्वाद ही बिगाड़ देती थी, के वह यहाँ कुच्छ भी अपने पसन्द का नहीं बना पाती। 
उसने अपनी समस्या सुनाई औऱ आग्रह किया के उसकी ही बसायी गृहस्थी में उसकी जीभ को स्वाद ही नहीं मिलता। फ़िर वह दूसरो के लिए पसंद का खाना कैसे बनाये। रोज़ ही खाना उसके घर कलह का कारण ही बनता है। 


सच है, पत्नी को एक रसोईये की जगह बिठा देने से खाना समय से मिल भी जाये पर स्वाद वो नहीं मिल सकता। वह दौड़-दौड़ कर आपकी पसंद का खाना आपकी सहूलियत से नही बनाएगी;आपके लिए, मेहमान के लिए, परिवार के लिए। पति ने जैसे ही अपना स्वाद थोड़ा सा रमा के स्वाद से मिला लिया वह दुगने उत्साह से घर भर के लिए स्वाद जुटाने लगी। 

टिप्स: गृहस्थी में ख़ुद को ही महत्वपूर्ण कड़ी न समझे, निर्णय दोनों का हो तो उस पर काम दुगनी गति से होता है। 

एक किन्ही की पंक्तिया- हाथ को हाथ का मिले जो सहारा भाग्य बने सौभग्य हमारा।

अदिति।

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