घुमक्कड़ साथी - Kashi Patrika

घुमक्कड़ साथी

हमने इस बार सोंचा की इस तप्ति चिलचिलाती धूप में आप को कहीं ऐसी जगह ले जाए जहाँ कुदरत की ख़ूबसूरती के साथ ही साथ हलकी ठंढ़ भी हो। तो आइये चलिए अपने इस घुमक्कड़ साथी के साथ चम्बा की खूबसूरत वादियों में।

चम्बा बर्फ़बारी का दृश्य 

हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में स्थित चंबा एक मनोरम स्थल है। रावी नदीं के किनारे बसे चम्बा की खूबसूरती देखते ही बनती है। ९९६ मीटर की ऊंचाई पर बसा यह शहर वर्ष पर्यन्त ठंडा बना रहता है। ऐतिहासिक अभिलेखों ने चंबा क्षेत्र के इतिहास को दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में कोलिअन जनजातियों के इतिहास की तारीख दी थी, इस क्षेत्र को औपचारिक रूप से मारु राजवंश द्वारा शासित किया गया था, जो लगभग ५०० ईस्वी से राजा मारू से शुरू हुआ था, जो भरमौर की प्राचीन राजधानी से शासित था, भरमौर चंबा शहर से ६५ किलोमीटर (४० मील) की दूरी पर स्थित है। ९२० में, राजा साहिल वर्मन (या राजा साहिल वर्मा) ने अपनी बेटी चंपावती के विशिष्ट अनुरोध के बाद राज्य की राजधानी चंबा को स्थानांतरित कर दिया, जिन्होंने आगे एक बच्चे पं० शिव कुमार उपमन्यु को गोद भी लिया चम्बा का चम्पावती के नाम रखा गया है। राजा मारू के समय से, इस राजवंश के ६७ राजाओं ने चंबा पर शासन किया अंततः अप्रैल १९४८ में  चंबा का भारतीय संघ के साथ विलय हुआ,


रावी नदीं के किनारे से चम्बा का दृश्य 
चंबा में घूमने लायक स्थल :

यूं तो पूरा चंबा ही अत्यंत मनोहारी दृश्यों से भरा हुआ है पर यहाँ पर मंदिरों की बहुतायत है। यहाँ की मिनिऐचर पेंटिंग्स विश्व प्रसिद्द है।

चम्पावती मंदिर 

राजा साहिल वर्मा ने चम्पावती की याद में इस सुन्दर शिखर युक्त मंदिर का निर्माण करवाया था। यह महिसासुरमर्दिनि को समर्पित मंदिर यहाँ के लक्ष्मी नारायण मंदिर के ही समान है।

चम्पावती मंदिर 

लक्ष्मीनारायण मंदिर

लक्ष्मीनारायण मंदिर चम्बा का सबसे विशाल और पुराना मंदिर है। कहा जाता है कि सवसे पहले यह मन्दिर चम्बा के चौगान में स्थित था भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर राजा साहिल वर्मन ने 10 वीं शताब्दी में बनवाया था। यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है। मंदिर में एक विमान और गर्भगृह है मंदिर की छतरियां और पत्थर की छत इसे बर्फबारी से बचाती है।

लक्ष्मीनारायण मंदिर 
चौगान चौगान1 किलोमीटर लंबा और 75 मीटर चौड़ा खुला घास का मैदान है। चौगान में प्रतिवर्ष मिंजर मेले का आयोजन किया जाता है। एक सप्ताह तक चलने वाले इस मेले में स्थानीय निवासी रंग बिरंगी वेशभूषा में आते हैं। इस अवसर पर यहां बड़ी संख्या में सांस्कृतिक और खेलकूद की गतिविधियां आयोजित की जाती हैं।

चौगान से चंबा की खूबसूरत वादियों का दृश्य 

चामुन्डा देवी मंदिर 

चामुन्डा देवी मंदिर मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है जहां से चंबा की स्लेट निर्मित छतों और रावी नदी व उसके आसपास का सुन्दर नजारा देखा जा सकता है। मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है और देवी दुर्गा को समर्पित है। मंदिर के दरवाजों के ऊपर, स्तम्भों और छत पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। मंदिर के पीछे शिव का एक छोटा मंदिर है। मंदिर चंबा से तीन किलोमीटर दूर चंबा-जम्मुहार रोड़ के दायीं ओर है। भारतीय पुरातत्व विभाग मंदिर की देखभाल करता है।

चामुंडा देवी मंदिर 

अखंड चंडी महल

अखंड चंडी महल का निर्माण राजा उमेद सिंह ने १७४८ से १७६४ ने करवाया था। महल का पुनरोद्धार राजा शाम सिंह के कार्यकाल में ब्रिटिश इंजीनियरों की मदद से किया गया। १८७९ में कैप्टन मार्शल ने महल में दरबार हॉल बनवाया। बाद में राजा भूरी सिंह के कार्यकाल में इसमें जनाना महल जोड़ा गया। महल की बनावट में ब्रिटिश और मुगलों का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। १९५८ में शाही परिवारों के उत्तराधिकारियों ने हिमाचल सरकार को यह महल बेच दिया। बाद में यह महल सरकारी कॉलेज और जिला पुस्तकालय के लिए शिक्षा विभाग को सौंप दिया गया।

अखंड चंडी महल के भीतर का दृश्य 

चंबा अमृतसर से २४० किमी दूर है और यहाँ पहुँचने का सुगम वायु मार्ग है। पठानकोट यहाँ से सबसे नजदीक का रेलवे स्टेशन है जो यहाँ से १४० किमी की दुरी पर स्थित है।

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