पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मंच पर राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर बात की, जिससे बेचैन कांग्रेसियों ने चैन की सांस ली। संघ के दीक्षांत समारोह में दिए अपने भाषण में प्रणब ने कहा कि नफरत और असहिष्णुता हमारी राष्ट्रीय पहचान को धुंधला कर देगी। करीब 30 मिनट के भाषण के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, लोकमान्य तिलक, सुरेंद्र नाथ बैनर्जी और सरदार पटेल का जिक्र किया। इससे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा- प्रणब को हमने क्यों बुलाया, ये चर्चा आज हर ओर हो रही है। लेकिन, भारत में जन्मा हर पुत्र भारत पुत्र है।
प्रणब मुखर्जी के भाषण की 5 बड़ी बातें-
'मैं यहां राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता पर अपनी बात साझा करने आया हूं। तीनों को अलग-अलग रूप में देखना मुश्किल है। देश यानी एक बड़ा समूह जो एक क्षेत्र में समान भाषाओं और संस्कृति को साझा करता है। राष्ट्रीयता देश के प्रति समर्पण और आदर का नाम है।’’
प्रणब मुखर्जी ने कहा, जैसा गांधी जी ने बताया है भारतीय राष्ट्रीयता ना बहुत खास है और ना किसी को नुकसान पहुंचाने वाली है. पंडित नेहरू ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीयता राजनीति और धर्म से ऊपर है। यह आजादी से पहले था और आज भी यह सच है।
आधुनिक भारत की अवधारणा कई विचारकों ने दिया है। हमारी राष्ट्रीयता लंबे समय से चली आ रही विविधता की वजह से आई है। आधुनिक भारत का धारणा अलग-अलग भारतीय नेताओं से मिली है। यह किसी एक धर्म या जाति से बंधा हुआ नहीं है।
करीब 1800 साल से कई भारतीय यूनिवर्सिटी छात्रों को आकर्षित करते रहे हैं। हम पूरी दुनिया को अपना परिवार मानते हैं। भारत की ताकत सहिष्णुता से आता है। हमारा मानना है कि सदियों से जुड़ती आ रही सभ्यता से ही हमारी राषट्रीय पहचान बनी है।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि अलग-अलग धर्म होने के बावजूद 1648 में यहां एक ही भाषा का इस्तेमाल होता था। हर धर्म के लोग एक ही भाषा में बात करते थे। भारत का समाज खुला है और सिल्क रूट के जरिए यह दूसरे देशों से जुड़ा रहा है। कई विदेशी यात्री यहां आए और उन्होंने भारत के बारे में अपने विचार रखे हैं। लोगों ने यहां के प्रशासन और शिक्षा की काफी तारीफ की है।
जब मैं अपनी आंखें बंद करता हूं तो भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक का सपना आता है। त्रिपुरा से लेकर द्वारका. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी। इससे मैं बेहद खुश होता हूं। अनेक धर्म, भाषाएं, जाति और सब एक ही संविधान के दायरे में हैं। इससे भारत बनता है। 122 भाषाएं, 1600 बोलियां, 7 बड़े धर्म, 3 बड़े एथनिक ग्रुप एक ही सिस्टम के दायरे में हैं. एक ही संविधान से सबकी पहचान हैं। सब भारतीय हैं। इन सबसे भारत बनता है। सार्वजनिक जीवन में बातचीत जरूरी है। हम सिर्फ बातचीत से जटिल समस्याओं का हल निकाल सकते हैं।



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