बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

प्रणब मुखर्जी द्वारा संघ का न्यौता स्वीकार करने के साथ शुरू हुए सियासत और कांग्रेस के अंदर मची उथल-पुथल दोनों का आखिर पटापेक्ष हुआ। संघ के मंच से प्रणब ने किसी का महिमामंडन न करते हुए सिर्फ राष्ट्रहित, राष्ट्रभक्ति की बात की, जिसे हर कांग्रेसी अपने विचार बताकर इतरा रहा है! संघ को सांप्रदायिक कठघरे में खड़ा करने वाली कांग्रेस क्या सचमुच सबको समभाव से देखती है? यदि ऐसा है, तो तथाकथित सेक्युलर कांग्रेस को पूर्व राष्ट्रपति के विवेक पर शक क्यों हुआ!आखिर जिस व्यक्ति ने रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री, विदेश मंत्री के बाद राष्ट्रपति का कार्यकाल अत्यंत गरिमा से पूर्ण किया हो, क्या उन्होंने यह निमंत्रण बिना सोचे-समझे स्वीकार किया होगा? वैसे भी, “अनेकता में एकता” हमारे देश का गौरव है, जिसका जिक्र प्रणब मुखर्जी ने भी किया। बौखलाहट में कांग्रेसियों को इतना भी स्मरण नहीं रहा कि राष्ट्रपति पद का निर्वहन करने के बाद प्रणब किसी दल विशेष का नहीं, बल्कि पूरे समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। विडंबना है कि जो लोग उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा आतंकवादी विचारों के संगठन पीएफआइ की सभा में केरल जाने को सेक्युलर मानते हैं, वे ही प्रणब के आरएसएस के कार्यक्रम में जाने पर आपत्ति उठाते हैं!

इस दौरान, संघ के संगठन पर तमाम तरह के आरोप लगाते हुए उसे गांधीजी के हत्यारे के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा, पर क्या कांग्रेस गांधीजी के विचारों पर चलती है, उनका सम्मान करती है? अगर ऐसा है तो प्रणब के संघ जाने पर उसे आपत्ति न होती, क्योंकि जब एकता-अखंडता की बात होती है, तब सभी विचारधाराओं को समझने का प्रयास होता है, सम्मान होता है। फिर संघ के सकारात्मक स्वरूप को कांग्रेस ने प्रस्तुत क्यों नहीँ किया? आरएसएस द्वारा देशभर में 1.75 लाख सेवा प्रकल्प चलाये जा रहे हैं, जिसमें रक्त बैंक, नेत्र बैंक, सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, कैंसर शोध एवं चिकित्सा केंद्र हैं। संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार के पूर्वजों के गांव कंदकुर्त्ती (तेलंगाना) में हेडगेवार वंश के छोटे-सामान्य घर को अब एक स्मारक का रूप देकर वहां केशव शिशु मंदिर चलाया जा रहा है, जहां हिंदू-मुस्लिम बच्चे एक साथ पढ़ते हैं।

कांग्रेस ने इसका भी जिक्र नहीँ किया, जब पचास के आसपास पंडित नेहरू अपनी पहली लंदन यात्रा पर गए, तो वहां के भारतीय मूल के नागरिकों ने उनकी पाकिस्तान नीति तथा हिंदुओं के प्रति भेदभाव के विरुद्ध लंदन में विरोध-प्रदर्शन की योजना बनाई। उस समय आरएसएस के सरसंघचालक श्री गुरुजी ने कहा कि भारत के बाहर देश के प्रधानमंत्री का सम्मान राष्ट्र का सम्मान है। उनके खिलाफ एक भी शब्द न बोला जाए, जो कहना है, भारत में आकर कहो। 1962 में चीनी हमला हुआ, तब आरएसएस ने सैनिकों तथा नागरिकों की जो सहायता की, उसकी प्रशंसा में नेहरू सरकार ने संघ के स्वयंसेवकों को पूर्णगणवेश में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल किया था, जबकि उसी दौरान युद्ध के समय चीन का समर्थन करने के राष्ट्र-विरोधी कार्य के अपराध में 250 से ज्यादा कम्युनिस्ट नेताओं को गिरफ्तार किया गया था।

दिलचस्प यह रहा कि संघ के मंच से प्रणब मुखर्जी द्वारा दिए सारगर्भित राष्ट्रहित की बात को भी कांग्रेस अपना गुणगान समझ रही है। प्रणब ने आज के कांग्रेस की नहीँ वैचारिक धनी कांग्रेस की बात की। उन्होंने वैचारिक अस्पृश्यता के विरुद्ध बौद्धिक सत्याग्रह की बात उठाई जो हर भारतीय, राजनीतिक दल के लिए सीख है कि वैचारिक विविधता होते हुए भी संगठित होकर देश का विकास संभव है। कुल मिलाकर, संघ कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति ने वैचारिक छुआछूत का नफरत भरा ढांचा ढहा दिया और कांग्रेस को भी अपने अंदर झांकने की मौन सलाह दे डाली।
संपादकीय

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