शिव हैं पहले योगी - Kashi Patrika

शिव हैं पहले योगी

योग का जन्म मानव सभ्यता के उदय से भी काफी पहले हुआ माना जाता है और देवाधिदेव शिव को योग का जनक। इसलिए योग विद्या में शिव को पहले योगी या आदि योगी तथा पहले गुरू या आदि गुरू के रूप में माना जाता है...


शिव कहते हैं 'मनुष्य पशु है'- इस पशुता को समझना ही योग और तंत्र का प्रारम्भ है। योग में मोक्ष या परमात्मा प्राप्ति के तीन मार्ग हैं- जागरण, अभ्यास और समर्पण। तंत्रयोग है समर्पण का मार्ग। जब शिव ने इस  परम सत्य को जाना तो उन्होंने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु वह मार्ग बताया।

वामो मार्ग: परमगहनो योगितामप्यगम्य:' 
शिव कहते हैं- वाम मार्ग अत्यन्त गहन है और योगियों के लिए भी अगम्य है।

शिव ने पार्वती को दिया ज्ञान
'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है। '‍विज्ञान भैरव तंत्र' और 'शिव संहिता' में उनकी संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है। भगवान शिव के योग को तंत्र या वामयोग कहते हैं। इसी की एक शाखा हठयोग की है। मेरुतंत्र में भगवान शिव कहते हैं- 'वामो मार्ग: परमगहनो योगितामप्यगम्य:' अर्थात वाम मार्ग अत्यन्त गहन है और योगियों के लिए भी अगम्य है।

सप्तऋषि का हठ

योग विद्या के मुताबिक 15 हजार साल से भी पहले शिव ने सिद्धि प्राप्त की और हिमालय पर एक प्रचंड और भाव-विभोर कर देने वाला नृत्य किया। इसे देखकर सात ऋषियों की दिलचस्पी जागी और उन्होंने शिव से यह रहस्य बताने की प्रार्थना की। शिव ने उनकी बात नहीं मानी और कहने लगे, 'मूर्ख हो तुम लोग! अगर तुम अपनी इस स्थिति में लाखों साल भी गुजार दोगे, तो भी इस रहस्य को नहीं जान पाआगे। इसके लिए बहुत ज्यादा तैयारी की आवश्यकता है। ऋषि भी हठी थे, उन्होंने शिव की बात को उन्होंने चुनौती की तरह लिया और तैयारी शुरू कर दी। दिन, सप्ताह, महीने, साल गुजरते गए और ये लोग तैयारियां करते रहे, लेकिन शिव थे कि उन्हें नजरअंदाज करते जा रहे थे। 84 साल की लंबी साधना के बाद ग्रीष्म संक्रांति के शरद संक्रांति में बदलने पर पहली पूर्णिमा का दिन आया, जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायण में चले गए। पूर्णिमा के इस दिन आदियोगी शिव ने इन सात तपस्वियों को देखा तो पाया कि साधना करते-करते वे इतने पक चुके हैं कि ज्ञान हासिल करने के लिए तैयार हैं। अब उन्हें और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था।

हठ से हारे भोलेनाथ
शिव ने इन सातों का अगले 28 दिनों तक बेहद गहराई से आकलन किया और अगली पूर्णिमा पर इनका गुरु बनने का निर्णय लिया। इस तरह शिव ने स्वयं को आदिगुरु में रूपांतरित कर लिया। तभी से इस दिन को गुरु पूर्णिमा कहा जाने लगा। केदारनाथ से थोड़ा ऊपर जाने पर एक झील है, जिसे कांति सरोवर कहते हैं। इस झील के किनारे शिव दक्षिण दिशा की ओर मुड़ कर बैठ गए और अपनी कृपा उन सात लोगों पर बरसानी शुरू कर दी। इस तरह योग विज्ञान का संचार होना शुरू हुआ।

अगस्त्य मुनि ने किया योग का प्रचार
आज हम उन सात तपस्वियों को 'सप्तऋषि' के नाम से जानते हैं। इन सातों ऋषियों को विश्व के अलग-अलग हिस्सों में भेजा गया, ताकि ये अपना ज्ञान आम आदमी तक पहुंचा सकें. उनमें से अगस्त्य मुनि ने भारतीय उपमहाद्वीप में योग का प्रसार किया।
■ काशी पत्रिका


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