देश के युवाओं में नशे की आदत में भी बढ़ोतरी हो रही है। बात बात पर क्रोधित होना इसी दिशा की ओर इंगित करता हैं कि आज युवा दिशाहीन और दिग्भ्रमित हो बैठा हैं। युवा किसी जोश के साथ नहीं वरन किसी मदहोशी में जीने को बाध्य दिखाई पड़ते हैं।
ऐसी स्थिति कैसे पैदा हो गई जहाँ देश को दिशा दिखाने वाले युवा ही इस स्थिति में पहुंच गए। अगर हम बीते चार सालों के आकड़े और स्थितियों पर गौर करे तो पाएंगे कि धीरे-धीरे राजनीति में स्वतंत्र युवाओं के योगदान को नाकारा गया हैं।
भारत के उम्रदराज लोगों में सत्ता की लोलुप्ता इतनी ज्यादा हैं कि उन्होंने भारत के युवाओं को देश का नेतृत्व देना नकार दिया हैं। बेरोजगारी को बढ़ावा देने वाली नीतियों ने युवाओं के सामने आपने भविष्य के सवाल के अलावा कोई सवाल ही नहीं छोड़ा हैं।
उस पर शिक्षित युवा को ये जुमला देना कि आप कुछ नहीं कर पाए तो पकौड़े बेचें। युवा आज अपने को ठगा सा महसूस कर रहा हैं। बढ़चढ़कर सामाजिक कार्यों में योगदान करने वाले युवा को देश के भीतर ही राजनीतिक दल अपने मोहरों की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।
घड़ी-घड़ी देश की राजनीति में अपने छोटे-छोटे आंदोलनों के माध्यम से देश में अपनी उपस्थिति दर्ज करने वाले युवाओं को उनके गढ़ में ही जकड़ दिया गया। पूरे चार साल विश्वविद्द्यालयों में युवा आपस में ही लड़ते नजर आए। कभी स्थितियां ऐसा भी आभास दे गई कि कोई सोची समझी साजिश के तहत युवाओं की स्वतंत्रता छीन रहा हैं, और उन्हें उन्ही के सीखने के स्थान पर जकड़ कर बाँध रहा हैं।
आज बीते चार सालों में युवाओं का जितना बुरा हाल हुआ हैं उतना शायद भारत के इतिहास में कभी न हुआ हो।



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