आस्था की यात्रा।।
“अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं...” निर्गुण और सगुण दोनों रूपों में भक्तों का मन मोहने वाले मोहन का ही एक रूप
हैं “बद्रीनाथ”। बद्रीनाथ नाम में भी भेद छुपा है, बद्री यानी मां लक्ष्मी और उनके नाथ होने से श्रीहरि कहलाए ‛बद्रीनाथ’।
हिमालय की सुरम्य वादियों में नर और नारायण पर्वत की गोद में बसा“बद्रीनाथ” उत्तराखंड के चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ मंदिर से बर्फ से ढका ऊंचा शिखर ‘नीलकंठ’ दिखता है, यानी विष्णु और महेश संग में यहां विराजते प्रतीत होते हैं। इस धाम के बारे में प्रचलित है कि जो यहां एक बार दर्शन कर लेता है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है-
“जो जाऐ बद्री, वो ना आये ओदरी”
अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे माता के गर्भ में नहीं आना पड़ता है यानी वह सांसारिक आवागमन से छूट कर स्वर्ग में वास करता है।
कथा एक और है कि जब श्रीहरि ढूंढते हुए देवी लक्ष्मी यहां पहुंची, तब बदरी के पेड़ में बैठकर तपस्या में लीन थे,इसलिए लक्ष्मी जी ने उन्हें “बद्रीनाथ” नाम दिया। किस्सों में एक यह है, अलकनंदा नदी के तट पर बसा यह क्षेत्र बदरी ( बेर) के घने वन से आच्छादित है, जिससे प्रभु के इस धाम का नाम बद्रीनाथ धाम पड़ गया।
कथाओं में यह भी है कि गंगा धरती पर अवतरित हुईं, तो उनका वेग इतना तेज था की धरती माता सहन न कर सकी, तो गंगा 12 धाराओं में बट गईं। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से प्रसिद्ध हुई और यह स्थल भगवान श्रीहरि का निवास बन गया।
सोलहवीं सदी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठवाकर वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना करवा दी। भव्य मंदिर का निर्माण 9 वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य द्धारा कराया गया था। मंदिर तीन भागों में विभाजित है।गर्भगृह, दर्शन मण्डप और सभा मण्डप।
बद्रीनाथ में सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है और पूरा इलाका बर्फ से ढक जाता है, इसलिए मंदिर का पर अप्रैल-मई से सितंबर-ऑक्टूबर के बीच खुला रहता है। इस वर्ष 29 अप्रैल से बद्रीनाथ के पट खुल गए हैं।
बद्रीनाथ के लिए सबसे नजदीक स्थित जोली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून है, जो वहां मात्र 314 किमी की दूरी पर स्थित है। देहरादून से भारत के अन्य प्रमुख शहरों के लिए हवाई सेवा उपलब्ध है। बद्रीनाथ से सबसे समीप स्थित अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट इंदिरा गांधी एयरपोर्ट है। उत्तरांचल स्टेट ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन दिल्ली-ऋषिकेश के लिए नियमित तौर पर बस सेवा उपलब्ध कराता है। इसके अलावा प्राइवेट ट्रांसपोर्ट भी बद्रीनाथ सहित अन्य समीपस्थ हिल स्टेशनों के लिए बस सेवा मुहैया कराता है। प्राइवेट टैक्सी और अन्य साधनों को किराए पर लेकर ऋषिकेश से बद्रीनाथ आसानी से पहुंचा जा सकता है।
■ सोनी सिंह
“अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं...” निर्गुण और सगुण दोनों रूपों में भक्तों का मन मोहने वाले मोहन का ही एक रूप
हिमालय की सुरम्य वादियों में नर और नारायण पर्वत की गोद में बसा“बद्रीनाथ” उत्तराखंड के चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ मंदिर से बर्फ से ढका ऊंचा शिखर ‘नीलकंठ’ दिखता है, यानी विष्णु और महेश संग में यहां विराजते प्रतीत होते हैं। इस धाम के बारे में प्रचलित है कि जो यहां एक बार दर्शन कर लेता है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है-
“जो जाऐ बद्री, वो ना आये ओदरी”
अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे माता के गर्भ में नहीं आना पड़ता है यानी वह सांसारिक आवागमन से छूट कर स्वर्ग में वास करता है।
लक्ष्मी संग विराजे नारायण
बद्रीनाथ धाम नाम के पीछे धार्मिक मान्यता यह है कि एक बार श्रीहरि से रूठकर देवी लक्ष्मी मायके चली गईं। तब भगवान विष्णु उन्हें मनाने के लिए इस हिमाच्छादित स्थान पर घोर तपस्या करने लगे। जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई, तो वे श्रीहरि को खोजते हुए यहां पहुंची। बहुत अधिक हिमपात होने से भगवान नारायण उसमें पूरी तरह डूबने लगे। उनकी इस दशा को देखकर माता लक्ष्मी बदरी वृक्ष का रूप धारण कर भगवान के समीप खड़ी हो गईं और समस्त हिमपात को अपने ऊपर सहने लगीं। श्रीहरि कई वर्षों तक तपस्या में लीन रहे और माता लक्ष्मी उनकी धूप, वर्षा और हिमपात से वृक्ष बनकर रक्षा करती रहीं। जब भगवान ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा, लक्ष्मीजी हिमपात से ढकी हुई हैं। श्रीहरि भाव-विभोर हो गए और उन्होंने कहा,“ हे देवी! तुमने भी मेरे बराबर ही तप किया है, सो आज से इस स्थान पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा। और तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है, इसलिए मुझे बदरी के नाथ “बद्रीनाथ” के नाम से जाना जायेगा।कथा एक और है कि जब श्रीहरि ढूंढते हुए देवी लक्ष्मी यहां पहुंची, तब बदरी के पेड़ में बैठकर तपस्या में लीन थे,इसलिए लक्ष्मी जी ने उन्हें “बद्रीनाथ” नाम दिया। किस्सों में एक यह है, अलकनंदा नदी के तट पर बसा यह क्षेत्र बदरी ( बेर) के घने वन से आच्छादित है, जिससे प्रभु के इस धाम का नाम बद्रीनाथ धाम पड़ गया।
शिव के आराध्य बसे शिवभूमि में
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गंगा की एक धारा अलकनंदा के किनारे की यह मनोरम भूमि देवाधिदेव शिव की भूमि (केदार भूमि) के रूप में विख्यात है। श्रीहरि अपने ध्यानयोग के लिए एक स्थान खोज रहे थे और उन्हें शिवभूमि बहुत भा गई। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के पास) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के पास बालक रूप धारण किया और रोने लगे। रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती और शिवजी उस बालक के पास आए और पूछा, ‘ तुम्हें क्या चाहिए।’ बालकरूप धरे श्रीहरि ने तब शिवभूमि (केदार भूमि) का स्थान मांग लिया। भगवान के योग की वह स्थली ही आगे चलकर बद्रीविशाल के नाम से प्रसिद्ध हुई।कई प्रचलित कथाएं
बद्रीनाथ धाम को लेकर कई दंत व धार्मिक कथाएं प्रचलित है। एक धार्मिक कथा के अनुसार नर और नारायण नामक दो ऋषि, जिन्हें भगवान विष्णु का चौथा अवतार भी कहा जाता था, उन्होंने बदरीकाश्रम में शांति पाने के लिए घोर तपस्या की थी। यह भी कहा जाता है की इसी गुफा में “वेदव्यास” ने महाभारत लिखी थी और पांडवो के स्वर्ग जाने से पहले यह जगह उनका अंतिम पड़ाव था।कथाओं में यह भी है कि गंगा धरती पर अवतरित हुईं, तो उनका वेग इतना तेज था की धरती माता सहन न कर सकी, तो गंगा 12 धाराओं में बट गईं। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से प्रसिद्ध हुई और यह स्थल भगवान श्रीहरि का निवास बन गया।
भव्य एवं अलंकृत मंदिर
प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर बेहद विशाल है। इसकी ऊँचाई करीब 15 मीटर है। धार्मिक मान्यताएं कहती हैं कि स्वयं शिव ने बद्रीनारायण की छवि एक काले पत्थर पर शालिग्राम के पत्थर के ऊपर अलकनंदा नदी में खोजी थी। वह मूल रूप से तप्त कुंड के पास एक गुफा में बना हुआ था।सोलहवीं सदी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठवाकर वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना करवा दी। भव्य मंदिर का निर्माण 9 वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य द्धारा कराया गया था। मंदिर तीन भागों में विभाजित है।गर्भगृह, दर्शन मण्डप और सभा मण्डप।
मंदिर में बद्रीश पंचायत
मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां है। इनमें सबसे प्रमुख है भगवान बदरी नारायण एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा है। यहां भगवान विष्णु ध्यानमग्न मुद्रा में सुशोभित है। भगवान नारायण अपनी पत्नी देवी लक्ष्मी, गरुड़, नारद, कुबेर और उद्धव के साथ विराजमान हैं। इसे बद्रीश पंचायत कहा जाता हैं। जिनके दाहिने ओर कुबेर, लक्ष्मी जी, नारायण की मूर्तियां हैं। मंदिर की बाहरी संरचना काफी कुछ मुगल शैली से मिलती-जुलती है। मंदिर का मुख्य द्धार मेहराबनुमा है, जिस तक पहुँचने के लिए सीढियां बनाई गई हैं। और उसके तरफ अलंकृत खंभों के साथ मेहराबे बनाई गई हैं। पूरे मंदिर को गहरे रंगो से सजाया गया है। शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार मंदिर का पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है। बद्रीनाथ मंदिर में वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। यहाँ पितरों के श्राद्ध और तर्पण की भी परंपरा है।दर्शन से पहले तप्त कुंड में स्नान
अलकनंदा के तट पर स्थित अद्भुत गर्म झरना जिसे ‘तप्त कुंड’ कहा जाता है। दर्शन से पहले इसमें स्नान करते हैं। गर्म जल और ठंडे जल को मिलाकर एक अलग कुंड बनाया गया हैं, जिसमें भक्त स्नान करते हैं। स्त्री और पुरुष के लिए अलग-अलग कुंड है। मान्यता है कि इसमें स्नान करने से चर्म रोग से मुक्ति मिलती है। गर्म जल के कुंड में जल इतना गर्म होता हैं कि उसमें चावल भी उबल जाता हैं।धरती पर बसा बैकुण्ठ
अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर एवं नारायण पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित अप्रतिम सौंदर्य से सराबोर “बद्रीनाथ धाम” पृथ्वी का बैकुण्ठ कहा जाता है। स्वयं शिव और उनके आराध्य भगवान नारायण दोनों इस पवित्र स्थली पर साथ-साथ वास करते हैं। पुराणो में बद्रीनाथ को भारत का सबसे प्राचीन क्षेत्र बताया गया है कहते है कि इसकी स्थापना सतयुग में हुई थी। ये पंच-बदरी में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।बद्रीनाथ में सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है और पूरा इलाका बर्फ से ढक जाता है, इसलिए मंदिर का पर अप्रैल-मई से सितंबर-ऑक्टूबर के बीच खुला रहता है। इस वर्ष 29 अप्रैल से बद्रीनाथ के पट खुल गए हैं।
पहुंचने की कवायद
बद्रीनाथ के सबसे समीपस्थ रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जो यहां से तकरीबन 297 किमी. दूर स्थित है। ऋषिकेश भारत के प्रमुख शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली और लखनऊ आदि से सीधे तौर पर रेलवे से जुड़ा है। दिल्ली से रेल द्वारा बद्रीनाथ पहुंचने के लिए दो मार्ग हैं, दिल्ली से ऋषिकेश-287 किमी, दिल्ली से कोटद्वार-300 किमी।बद्रीनाथ के लिए सबसे नजदीक स्थित जोली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून है, जो वहां मात्र 314 किमी की दूरी पर स्थित है। देहरादून से भारत के अन्य प्रमुख शहरों के लिए हवाई सेवा उपलब्ध है। बद्रीनाथ से सबसे समीप स्थित अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट इंदिरा गांधी एयरपोर्ट है। उत्तरांचल स्टेट ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन दिल्ली-ऋषिकेश के लिए नियमित तौर पर बस सेवा उपलब्ध कराता है। इसके अलावा प्राइवेट ट्रांसपोर्ट भी बद्रीनाथ सहित अन्य समीपस्थ हिल स्टेशनों के लिए बस सेवा मुहैया कराता है। प्राइवेट टैक्सी और अन्य साधनों को किराए पर लेकर ऋषिकेश से बद्रीनाथ आसानी से पहुंचा जा सकता है।
■ सोनी सिंह






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