जन्मदिन विशेष॥ अंग्रेजों के विरुद्ध डटकर खड़े हुए भारत के महान सपूत चंद्रशेखर आजाद आज भी भारतीयों के हृदय में जीवित हैं। उनकी देशभक्ति से अभिभूत हो उन्हें “आजाद” की उपाधि बनारस में ही मिली। इतना ही नहीं उनकी आंखों ने आजादी का सपना भी बनारस में ही बुना।
शिवपुर सेंट्रल जेल में पड़े थे कोड़े
वर्तमान में शिवपुर में स्थित सेंट्रल जेल में आज भी वह जगह मौजूद है, जहां चंद्रशेखर आजाद को 15 कोड़े मारने की सजा दी गई थी। जेलर आजाद की पीठ पर कोड़े बरसाता रहा और वह भारत माता की जयकार करत रहे। यही वजह थी कि पूरी काशी में बालक आजाद की बहादुरी के चर्चे थे। जब वह जेल
से छूटे तो गेट पर मौजूद काशीवासियों ने उन्हें कंधे पर उठा लिया।
ज्ञानवापी में मिला नाम 'आजाद'
जेल से आने के बाद बहादुरी के चर्चे पूरे वाराणसी में थे। इसके बाद ज्ञानवापी में हुई काशीवासियों की सभा में चंद्रेशखर तिवारी का नामकरण चंद्रशेखर आजाद किया गया। लहुराबीर इलाके में उनके नाम पर आजाद पार्क है। तो वाराणसी के सेंट्रल जेल के बाहर ठीक उसी बैरक के सामने आजाद की सात फीट ऊंची मेटल की प्रतिमा हालही में लगाई गई, जिस बैरक में मार खाने के बाद उन्हें उपनाम ‛आजाद’ मिला।
काशी में क्रांति का बीजारोपण
उन्नाव के बदरका में सीतारात तिवारी के घर 23 जुलाई 1906 को जन्मे चंद्रशेखर आजाद का काशी से गहरा नाता था। क्रांतिकारियों के गढ़ बनारस में चंद्रशेखर किशोरावस्था में ही संस्कृत की पढ़ाई करने अपने फूफा के यहां आ गए थे। पढ़ाई के दौरान ही वह क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए थे। निशानेबाजी में निपुण चंद्रशेखर का मन किशोरावस्था में ही सशस्त्र कांति की ओर मुड़ गया था। बनारस में ही मन्मथनाथ गुप्ता और प्रणवेश चटर्जी के संपर्क के जरिए चंद्रशेखर सबसे पहले क्रांतिकारी दल के सदस्य बने थे, जिसे हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ के नाम से पुकारा जाता था।
शिवपुर सेंट्रल जेल में पड़े थे कोड़े
वर्तमान में शिवपुर में स्थित सेंट्रल जेल में आज भी वह जगह मौजूद है, जहां चंद्रशेखर आजाद को 15 कोड़े मारने की सजा दी गई थी। जेलर आजाद की पीठ पर कोड़े बरसाता रहा और वह भारत माता की जयकार करत रहे। यही वजह थी कि पूरी काशी में बालक आजाद की बहादुरी के चर्चे थे। जब वह जेल
से छूटे तो गेट पर मौजूद काशीवासियों ने उन्हें कंधे पर उठा लिया।
ज्ञानवापी में मिला नाम 'आजाद'
जेल से आने के बाद बहादुरी के चर्चे पूरे वाराणसी में थे। इसके बाद ज्ञानवापी में हुई काशीवासियों की सभा में चंद्रेशखर तिवारी का नामकरण चंद्रशेखर आजाद किया गया। लहुराबीर इलाके में उनके नाम पर आजाद पार्क है। तो वाराणसी के सेंट्रल जेल के बाहर ठीक उसी बैरक के सामने आजाद की सात फीट ऊंची मेटल की प्रतिमा हालही में लगाई गई, जिस बैरक में मार खाने के बाद उन्हें उपनाम ‛आजाद’ मिला।
काशी में क्रांति का बीजारोपण
उन्नाव के बदरका में सीतारात तिवारी के घर 23 जुलाई 1906 को जन्मे चंद्रशेखर आजाद का काशी से गहरा नाता था। क्रांतिकारियों के गढ़ बनारस में चंद्रशेखर किशोरावस्था में ही संस्कृत की पढ़ाई करने अपने फूफा के यहां आ गए थे। पढ़ाई के दौरान ही वह क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए थे। निशानेबाजी में निपुण चंद्रशेखर का मन किशोरावस्था में ही सशस्त्र कांति की ओर मुड़ गया था। बनारस में ही मन्मथनाथ गुप्ता और प्रणवेश चटर्जी के संपर्क के जरिए चंद्रशेखर सबसे पहले क्रांतिकारी दल के सदस्य बने थे, जिसे हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ के नाम से पुकारा जाता था।
■ काशी पत्रिका
No comments:
Post a Comment