सदन में “हीरो” टीडीपी - Kashi Patrika

सदन में “हीरो” टीडीपी


आंकड़ों में बीजेपी की आज सदन में जीत पक्की है, लेकिन उसके सहयोगी दल द्वारा ही सदन में सरकार के विरुद्ध “अविश्वास प्रस्ताव” लाना इस ओर इशारा करता है कि केंद्र ने सहयोगियों की किस कदर अनदेखी की। नीतीश कुमार ने राजनीतिक मजबूरी में भले चुप्पी साध ली, लेकिन “विशेष राज्य” की मांग पर भरोसा टूटने के बाद टीडीपी ने जो कदम उठाया वह टीडीपी का कद कांग्रेस के सामने भी ऊँचा करती है। यानी बीजेपी या कांग्रेस आज सदन में कुछ भी बोले, हीरो तो टीडीपी है...

राज्यों से केंद्र का रिश्ता कमजोर
“सबका साथ, सबका विकास” मौजूदा हालात में लगता है कि केंद्र सरकार अपना यह वादा भूल गई है, क्योंकि राज्यों के विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता। और भिन्न परिस्थितियों में किसी राज्य को विशेष दर्जा दिया जाना जरूरी है, तो केंद्र इस पर तानाशाही रवैया क्यों बनाए है! हद तो यह है कि अपने सहयोगियों की बात की अनदेखी कर न बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिला, न आंध्र को। परिणामस्वरूप टीडीपी ने केंद्र को “अविश्वास” के कठघरे में खड़ा कर दिया। यहाँ टीडीपी की जितनी प्रशंसा की जाए कम हैं, क्योंकि नीतीश कुमार राजनीतिक मजबूरी में फंस खुलकर केंद्र का विरोध नहीं कर पा रहे हैं।

तानाशाही की ओर लोकतंत्र!
आज जहाँ देश में तेजी से लोकतान्त्रिक मूल्यों पर हमले हो रहे हैं, वहां सरकार का ही अविश्वास प्रस्ताव से गुजरना बहुत कुछ कहता हैं। हो सकता हैं आप सत्ता पक्ष को ज्यादा पसंद करते हों, पर सत्य यही हैं कि लोकतंत्र की कसौटी पर मोदी सरकार तानाशाही रवैया अपनाए हुए हैं। किसी भी मुद्दे पर एक व्यक्ति की राय लोकतंत्र पर हावी होती जा रही हैं। जहाँ एक समय संख्या बल से ज्यादा लोगों को साधना महत्वपूर्ण था फिर चाहे वो विपक्ष ही क्यों न हो; वहां नरेंद्र मोदी ने दिखा दिया कि अगर आप के पास संख्या बल है, तो आप नेता प्रतिपक्ष के सैद्धांतिक पद का भी लोप कर सकते हैं।

लोकायुक्त पर विपक्ष अनुपस्थित
लोकायुक्त के मुद्दे पर कल ही संपन्न हुई एक बैठक में सरकार के बुलाने के बावजूद बैठक में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का न उपस्थित होना बहुत कुछ कहता हैं। आज केंद्र सरकार के तानाशाही रवैये की वजह से सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच की डोर टूट चुकी हैं।

आंकड़ों के खेल में भले जीते, सिद्धान्त में हारी बीजेपी
केंद्र सरकार लीक से हटकर व्यक्ति  केंद्रित होता जा रहा है और इसे लेकर भाजपा के बाहर ही नहीं, बल्कि भीतर भी आवाज उठती रही है। यही वजह है कि भाजपा के सहयोगी टीडीपी के द्वारा ही सदन में सरकार के खिलाफ “अविश्वास प्रस्ताव” लाया गया है। यह विपक्ष की सरकार के ऊपर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से पहले ही मिली एक सैद्धांतिक जीत है, जिसे नकारा नहीं जा सकता।

संख्या बल पर मोदी सरकार आज अविश्वास प्रस्ताव को पार कर लेगी, लेकिन मूल्यों पर सैद्धांतिक रूप से वो सदन में जितने पीछे है, क्या इस बार प्रधानमंत्री उस खाई को पाटने में सफल होंगे!

■■ सिद्धार्थ सिंह

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