बुझते हुए दीये से ये पूछेगा कौन,
रौशन थे तो जो बैठा था ,
उठकर गया वो साथ,क्यूँ
अँधेरा देख कर।
मर्ज़ी है फ़िर के परिंदा है, पंख है,
बंधकर तू रहगया फ़िर उठता नहीं है क्यों,
बदल कर ज़रा देख,
कही पुराना जो पर गया,
दुनियां नई है आज,
फ़िर पूछेगा तुझको कौन।
तू प्यार जिसको कहता रहा,
वो मतलब से अपने मिलता रहा,
तू जल चुका जिसके लिए,
वो अंधेरा देख उठ चला,
फ़िर तू जला किसके लिए,
बुझते हुए दीये से आख़िर,ये;
पूछेगा कौन।
-अदिति-
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