हफ्तेभर की खबरों का लेखाजोखा॥
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने हिंसक भीड़तंत्र की बढ़ती हिंसा और सड़क पर बने गड्ढों के कारण होने वाली मौतों पर चिंता व्यक्त की। ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल ने आम जन की मुसीबत बढ़ाई, तो कवि गोपालदास नीरज ये दुनिया छोड़ नए सफर पर निकल गए। नम आँखों ने शनिवार को उनके आवास पर कवि के अंतिम दर्शन किए।
शह और मात में बिखरा विपक्ष
लोकसभा में टीडीपी द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस की ओर से बिछाए गए चुनावी बिसात पर भाजपा बाजी मारती दिख रही है। सदन में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार को अपने कड़े तेवर से घेरा, लेकिन भाषण के अंत में अप्रत्याशित रूप से सदन में पीएम को झप्पी देकर, फिर आंख मारकर उन्होंने स्वयं को “बचकाना” बना दिया। चर्चा के बाद अपने चिर-परिचित अंदाज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के सारे तीरों का कटाक्ष में ही उत्तर दिया। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए अपनी बात की शुरुआत की, ‛मांझी, न रहबर, न हक में हवाएं, है कश्ती भी जर्जर ये कैसा सफर है’, जो विपक्ष के संख्या बल पर निशाना था। अपने तकरीबन डेढ़ घंटे के भाषण में प्रधानमंत्री ने कांग्रेस और अध्यक्ष राहुल गांधी पर जमकर हमला बोला। अपनी शैली और व्यंगात्मक अंदाज में प्रधानमंत्री ने विपक्ष की ऐसी धज्जियां उड़ाई की लगा, पासा उल्टा पड़ गया। पीएम के वक्तव्य के बाद अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई, जिसमें विपक्ष के उम्मीद से 11 वोट कम मिलें। जो विपक्ष की एकजुटता को संदेह के कठघरे में खड़ा करता है। यानी, अविश्वास के सहारे जनता का विश्वास जीतने की कोशिश कांग्रेस के लिए बेमानी साबित हुई।
विकास छोड़, धर्म की राह
देश का चुनाव एक बार फिर वर्षों पुराने ढर्रे पर जाता हुआ दिख रहा है, जहां जाति-धर्म के इर्दगिर्द ही चुनावी तानाबाना बुनने की तैयारी है। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी द्वारा दिए गए तथाकथित बयान “कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है” को लेकर सियासी गलियारों में भूचाल आया और कांग्रेस एवं भाजपा ने अपनी-अपनी तरह इसे अपने हक में भुनाने का प्रयास किया। वहीँ शशि थरूर समय-समय पर हिंदू पाकिस्तान, हिंदू तालिबान की बात कर माहौल को धार्मिक बनाए रखने की कोशिश में जुटे लग रहे हैं।
बयानबाजी के बीच कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बीबीसी को दिए साक्षात्कार में स्वीकार किया कि उनकी पार्टी के खिलाफ चलाए गए तीखे अभियानों की वजह से ही मुसलमान बीजेपी को वोट नहीं करते। उनका कहना है, “भले ही मुसलमानों ने उन्हें वोट ना किया हो, लेकिन उनकी सरकार हमेशा मुसलमानों के विकास के लिए काम करती रही है।” शुक्रवार को सदन में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान फारुख अब्दुल्ला ने भी मुस्लिम की बात उठाई। वे बोले, “मैं हिंदुस्तानी हूँ, पाकिस्तानी नहीं, मुस्लिमों पर शक मत करिए।” उधर, महागठबंधन में पीएम उम्मीदवार के रूप में बसपा अध्यक्ष मायावती का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है, जो आगामी लोकसभा चुनाव के जातिवादी होने के संकेत हैं। फिलहाल, देश की राजनीति हिंदू-मुस्लिम पर सियासी रोटियां सेंकने की दिशा में बढ़ती जान पड़ती है।
सुप्रीम कोर्ट की “सुप्रीम” चिंता
देश भर में भीड़ द्वारा हो रही हिंसा पर जहां सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सड़क के गड्ढों की वजह से होने वाली मौतों पर चिंता जताई। शीर्ष कोर्ट ने इन मौतों पर त्वरित टिप्पणी करते हुए कहा कि देश में हर साल जितने लोग आतंकी हमलों में नहीं मारे जाते, उनसे कहीं ज्यादा लोग सड़क के गड्ढों की वजह से अपनी जान गवां रहे हैं। गड्ढों की वजह से मौत को एक भयावक स्थिति बताते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी की मौत इस तरह से हो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। यह किसी इंसान की जिंदगी और मौत का गंभीर सवाल है। सुप्रीम कोर्ट की रोड सेफ्टी कमेटी को ये देखने को भी कहा कि क्या गड्ढों की वजह से एक्सीडेंट में जान गवांने वाले लोगों को मुआवजा दिया जा सकता है या नहीँ। कोर्ट ने इस मामले पर दो हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा है।
RTI कानून में संशोधन: सरकार की मंशा पर सवाल
सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून, 2005 से जुड़ा संशोधन विधेयक गुरुवार को राज्यसभा में पेश किया जाना था, लेकिन विपक्ष के विरोध के बाद सरकार इससे पीछे हट गई। इस विधेयक के जरिए सरकार सिर्फ यह चाहती है कि केंद्र और राज्यों के स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्तों (आईसी) की सेवा शर्तों को बदल दिया जाए। सरकार का प्रस्ताव है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के वेतन-भत्ते और सेवा शर्तें तय करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास होना चाहिए।
इस संशोधन विधेयक के मुताबिक किसी सूचना अधिकारी का कार्यकाल पूर्व निर्धारित पांच साल होने के बजाय केंद्र सरकार द्वारा तय होना चाहिए। सरकार की दलील है कि वह मूल आरटीआई कानून की एक विसंगति दूर करना चाहती है, जिसके चलते सूचना अधिकारी का पद चुनाव आयुक्त के पद के समतुल्य हो जाता है। सरकार की दलील चाहे जो हो, लेकिन आरटीआई कानून को ये बदलाव काफी हद तक कमजोर कर देंगे।
आरटीआई से जुड़ा संशोधन विधेयक तैयार करने के दौरान ऐसा भी लगता है कि सरकार उस भावना के विरुद्ध गई है, जिसके तहत संसद ने इस कानून को लागू किया था. 2004 में कानून बनने से पहले संसद की जिस स्थाई समिति ने आरटीआई विधेयक का अध्ययन किया था, उसका भी कहना था, ‘यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सूचना आयोग और उसके अधिकारी स्वतंत्रतापूर्वक काम कर सकें. और इसलिए यह जरूरी है कि इनका दर्जा चुनाव आयुक्त के समकक्ष रखा जाए।’
केंद्र सरकार के इस प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ नागरिक संगठनों के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियां भी खड़ी दिखीं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी एक ट्वीट में लिखा, हर भारतीय को सच्चाई जानने का पूरा अधिकार है। बीजेपी मानती है कि सच्चाई लोगों से छुपा कर रखी जानी चाहिए, वह (बीजेपी) यह भी चाहती है कि सत्तारूढ़ लोगों से कोई सवाल-जवाब न किया जाए। यानी इस संशोधन को लेकर सरकार की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं।
ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल: आम जन परेशान
सरकार के साथ गुरुवार को देर रात तक चली ट्रांसपोर्टरों की बातचीत के बावजूद कोई समाधान ना निकलने के बाद ट्रक ऑपरेटर शुक्रवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। डीजल की कीमतों और टोल फीस में कमी की मांग को लेकर ट्रक और बस ऑपरेटर्स संगठन ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) के नेतृत्व में ट्रांसपोर्टर हड़ताल पर हैं। इस कारण देशभर में करीब 90 लाख ट्रक और 50 लाख बसों के पहिये थम गए है, जिससे शनिवार को जरुरी चीजों की किल्लत के कारण लाखों लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। कुछ जगह बच्चों के स्कूल जाने पर भी बसों की हड़ताल का असर पड़ा। हड़ताल के चलते खाने-पीने और रोजमर्रा के जरूरतों वाले वस्तुओं के दाम बढ़ने की भी आशंका है, जिसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। एक अनुमान के मुताबिक, हड़ताल से रोजाना दो हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
अलविदा “नीरज”: कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे...
बेहतहरीन नगमों की सौगात देने वाले मशहूर गीतकार और पद्मभूषण से सम्मानित कवि गोपालदास नीरज का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए शनिवार सुबह आगरा के बल्केश्वर स्थित आवास पर रखा गया। यहां उन्हें नम आंखों से अंतिम विदाई देने वालों का तांता लग गया। उनके अंतिम दर्शन के लिए उनके आवास पर सपा के शिवपाल सिंह यादव भी पहुंचे। गोपालदास नीरज का गुरुवार शाम दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। 93 वर्ष के सफर में उनकी एक ही तमन्ना रही कि जब जिंदगी दामन छुड़ाए, तो उनके लबों पर कोई नया नगमा हो, कोई नई कविता हो।
नीरज ने हरिवंशराय बच्चन उनकी प्रेरणा थे। गोपाल दास नीरज के लिखे गीत बेहद लोकप्रिय रहे। हिन्दी फिल्मों में भी उनके गीतों ने खूब धूम मचायी। 1970 के दशक में लगातार तीन वर्षों तक उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार प्रदान किया गया। उनके पुरस्कृत गीत हैं, काल का पहिया घूमे रे भइया! (वर्ष 1970, फिल्म: चंदा और बिजली), बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (वर्ष 1971, फिल्म: पहचान), ए भाई! जरा देख के चलो (वर्ष 1972, फिल्म: मेरा नाम जोकर)।
वे पहले शख्स हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया। 1991 में पद्मश्री और 2007 में पद्मभूषण पुरस्कार प्रदान किया गया। 1994 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने ‘यश भारती पुरस्कार’ प्रदान किया। गोपालदास नीरज को विश्व उर्दू पुरस्कार से भी नवाजा गया था। उनके एक दर्जन से भी अधिक कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में ‘दर्द दिया है’ (1956), ‘आसावरी’ (1963), ‘मुक्तकी’ (1958), ‘कारवां गुज़र गया’ (1964), ‘लिख-लिख भेजत पाती’ (पत्र संकलन), पंत-कला, काव्य और दर्शन (आलोचना) शामिल हैं।
अंततः कवि 'नीरज' की बेहद लोकप्रिय रचना ‘कारवां’ की कुछ पंक्तियां
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से,
लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे,
कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे!
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पांव जब तलक उठें कि जिंदगी फिसल गई…
■ सोनी सिंह
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