असल में आदमी का एक बड़ा अद्भुत तर्क है जो उसके पास होता है वह उसे दिखायी नहीं पड़ता। जो नहीं होता है वह दिखायी पड़ता है...
जब तुम्हारा दांत एक टूट जाएगा, तब तुम्हारी जीभ बार-बार उसी जगह जाएगी। जब तक दांत था, तब तक कभी न गयी। खाली जगह को टटोलेगी। तुम चेष्टा भी करोगे कि जीभ को वहां न ले जाएं, क्या सार है? लेकिन जीभ वहीं-वहीं जाएगी।
आदमी का मन खाली जगह को टटोलता है। भरी जगह के प्रति अंधा है, खाली के प्रति आंखें हैं। जो तुम्हारे पास है, तुमने कभी उसका हिसाब लगाया है? और जब तक तुम्हें वह हिसाब साफ न हो जाए, तुम परमात्मा के दानों का हिसाब न लगा पाओगे। वे अनंत हैं।
लेकिन कम से कम जो तुम्हें मिला है, वहां से तो तुम सोचो। एक क्षण के जीवन के लिए तुम कुछ भी देने को राजी हो जाओगे। लेकिन वर्षों के जीवन के लिए तुमने परमात्मा को धन्यवाद भी नहीं दिया। मरुस्थल में मर रहे होगे प्यासे, तो एक घूंट पानी के लिए तुम कुछ भी देने को राजी हो जाओगे। लेकिन इतनी सरिताएं बह रही हैं, इतने बादल तुम्हारे घर पर घुमड़ते हैं, तुमने एक बार उन्हें धन्यवाद नहीं दिया। अगर सूरज ठंडा हो जाएगा, तो हम सब यहीं के यहीं मुर्दा हो जाएंगे, इसी वक्त! लेकिन हमने कभी उठ कर सुबह सूरज को धन्यवाद न दिया!
तुम्हारे चारों तरफ उसके दानों की वर्षा हो रही है। जैसे हर कृत्य के पीछे उसका हाथ है, वैसे ही हर कृत्य के पीछे उसका दान है। यह पूरा अस्तित्व तुम्हारे लिए खिल रहा है। यह पूरा अस्तित्व उसकी भेंट है। और जब कोई इसको देख पाता है, तब एक नयी तरह की भक्ति का जन्म होता है।
एक है नास्तिक, वह अकड़ा हुआ है अहंकार से। एक है आस्तिक, वह कंप रहा है भय से। वे दोनों ही धार्मिक नहीं हैं। धार्मिक है तीसरा व्यक्ति, जो नाच रहा है अहोभाव से। जो आनंदमग्न है कि जो मिला है वह अपरंपार है। नानक कहते हैं, ‘न उसके कृत्यों का कोई अंत है, न उसके दानों का कोई अंत है।’
■ सौजन्य ओशो फाउंडेशन
जब तुम्हारा दांत एक टूट जाएगा, तब तुम्हारी जीभ बार-बार उसी जगह जाएगी। जब तक दांत था, तब तक कभी न गयी। खाली जगह को टटोलेगी। तुम चेष्टा भी करोगे कि जीभ को वहां न ले जाएं, क्या सार है? लेकिन जीभ वहीं-वहीं जाएगी।
आदमी का मन खाली जगह को टटोलता है। भरी जगह के प्रति अंधा है, खाली के प्रति आंखें हैं। जो तुम्हारे पास है, तुमने कभी उसका हिसाब लगाया है? और जब तक तुम्हें वह हिसाब साफ न हो जाए, तुम परमात्मा के दानों का हिसाब न लगा पाओगे। वे अनंत हैं।
लेकिन कम से कम जो तुम्हें मिला है, वहां से तो तुम सोचो। एक क्षण के जीवन के लिए तुम कुछ भी देने को राजी हो जाओगे। लेकिन वर्षों के जीवन के लिए तुमने परमात्मा को धन्यवाद भी नहीं दिया। मरुस्थल में मर रहे होगे प्यासे, तो एक घूंट पानी के लिए तुम कुछ भी देने को राजी हो जाओगे। लेकिन इतनी सरिताएं बह रही हैं, इतने बादल तुम्हारे घर पर घुमड़ते हैं, तुमने एक बार उन्हें धन्यवाद नहीं दिया। अगर सूरज ठंडा हो जाएगा, तो हम सब यहीं के यहीं मुर्दा हो जाएंगे, इसी वक्त! लेकिन हमने कभी उठ कर सुबह सूरज को धन्यवाद न दिया!
तुम्हारे चारों तरफ उसके दानों की वर्षा हो रही है। जैसे हर कृत्य के पीछे उसका हाथ है, वैसे ही हर कृत्य के पीछे उसका दान है। यह पूरा अस्तित्व तुम्हारे लिए खिल रहा है। यह पूरा अस्तित्व उसकी भेंट है। और जब कोई इसको देख पाता है, तब एक नयी तरह की भक्ति का जन्म होता है।
एक है नास्तिक, वह अकड़ा हुआ है अहंकार से। एक है आस्तिक, वह कंप रहा है भय से। वे दोनों ही धार्मिक नहीं हैं। धार्मिक है तीसरा व्यक्ति, जो नाच रहा है अहोभाव से। जो आनंदमग्न है कि जो मिला है वह अपरंपार है। नानक कहते हैं, ‘न उसके कृत्यों का कोई अंत है, न उसके दानों का कोई अंत है।’
■ सौजन्य ओशो फाउंडेशन
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