मैं दिल पे जब्र करूँगा तुझे भुला दूँगा,
मरूँगा खुद भी तुझे भी कड़ी सजा दूँगा।
ये तीरगी मिरे घर का ही क्यूँ मुकद्दर हो,
मैं तेरे शहर के सारे दिए बुझा दूँगा।
हवा का हाथ बटाऊँगा हर तबाही में,
हरे शजर से परिंदे मैं खुद उड़ा दूँगा।
वफा करूँगा किसी सोगवार चेहरे से,
पुरानी कब्र पे कतबा नया सजा दूँगा।
इसी ख्याल में गुजरी है शाम-ए-दर्द अक्सर,
कि दर्द हद से बढ़ेगा तो मुस्कुरा दूँगा।
तू आसमान की सूरत है गर पड़ेगा कभी,
जमीं हूँ मैं भी मगर तुझ को आसरा दूँगा।
बढ़ा रही हैं मिरे दुख निशानियाँ तेरी,
मैं तेरे खत, तिरी तस्वीर तक जला दूँगा।
बहुत दिनों से मिरा दिल उदास है 'मोहसिन',
इस आइने को कोई अक्स अब नया दूँगा।
■ मोहसिन नकवी
मरूँगा खुद भी तुझे भी कड़ी सजा दूँगा।
ये तीरगी मिरे घर का ही क्यूँ मुकद्दर हो,
मैं तेरे शहर के सारे दिए बुझा दूँगा।
हवा का हाथ बटाऊँगा हर तबाही में,
हरे शजर से परिंदे मैं खुद उड़ा दूँगा।
वफा करूँगा किसी सोगवार चेहरे से,
पुरानी कब्र पे कतबा नया सजा दूँगा।
इसी ख्याल में गुजरी है शाम-ए-दर्द अक्सर,
कि दर्द हद से बढ़ेगा तो मुस्कुरा दूँगा।
तू आसमान की सूरत है गर पड़ेगा कभी,
जमीं हूँ मैं भी मगर तुझ को आसरा दूँगा।
बढ़ा रही हैं मिरे दुख निशानियाँ तेरी,
मैं तेरे खत, तिरी तस्वीर तक जला दूँगा।
बहुत दिनों से मिरा दिल उदास है 'मोहसिन',
इस आइने को कोई अक्स अब नया दूँगा।
■ मोहसिन नकवी
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