क्या अर्थव्यवस्था का पैमाना ये हो सकता हैं कि हमारा देश किसी दूसरे छोटे देश से प्रतिस्पर्धा में आगे निकल गया है। अगर ऐसा सत्य होता, तो भारत कब का विकसित देश बन गया होता। आखिर भारत के 2 प्रतिशत से भी कम लोग वही जीवनचर्या अपनाते हैं, जो किसी विकसित देश का नागरिक अपनाता हैं। तो क्या हमें भारत के 98 % लोगों को भूल जाना चाहिए, जिनमें लगभग 26 से ज्यादा प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिन्हें दो जून की रोटी भी नसीब नहीं हैं।
हालिया आए सर्वे की रिपोर्ट जिसमें फ़्रांस को भारत ने अर्थव्यवस्था के मामले में पीछे छोड़ दिया हैं को जिस प्रकार से प्रचारित किया जा रहा हैं, उससे तो ऐसा ही लगता हैं कि अब केंद्र सरकार की नीतिया केवल 2 % लोगों के लिए बनाई जा रही हैं और उनके अच्छे परिणाम आने पर सरकार केवल उन्हीं को प्रसारित करने में लग जाती हैं।
देश नित नई समस्याओं से जूझ रहा हैं और सरकार खामोश हैं। ऐसे में, इस रिपोर्ट को प्रचारित करना गरीबों और माध्यम वर्ग के साथ खिलवाड़ लगता हैं। हालिया भारत की हालत इतनी खराब हैं कि सरकारी बैंकिंग व्यवस्था टूटने के कगार पर हैं, NPA को कैसे कम किया जाए, इस पर सरकार कुछ भी नहीं कर पा रही हैं, गरीबी के आंकड़ों में थोड़ी सी वृद्धि देखि गई हैं, माध्यम वर्ग बचत नहीं कर पा रहा हैं और कुछ चुनिंदा लोगों के पास सारा पैसा एकत्रित होने से माध्यम वर्ग की माली हालात दिनों दिन बिगड़ती जा रही हैं। जनसँख्या के असामान्य वितरण को ठीक करने के लिए सरकार ने एक तो कोई कदम नहीं उठाए और जो उठाए भी हैं उसका कोई परिणाम नहीं निकला हैं। किसानों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही हैं और प्राईवेट कंपनियां किसानों की भूमि हथियाती जा रही हैं। कल ही महाराष्ट्र में 7 किसानों ने आत्महत्या किया हैं। बड़े शहरों के साथ साथ अब छोटे और मझोले शहर भी कूड़े का ढेर होते जा रहे हैं। देश में पेयजल की निकट भविष्य में बड़ी कमी होने वाली हैं, जिसके आसार अभी से दिख रहे हैं जब शिमला में लोगों ने पानी के लिए लम्बी लाइने लगाना शुरू कर दिया हैं।
देश का भविष्य माने जाने वाले युवाओं की स्थिति तो इतनी बदतर हैं कि एक ओर जहाँ उनके लिए सरकार नौकरिया नहीं सृजित कर पा रही हैं, तो दूसरी ओर युवाओं में नशे की लत और आत्महत्या की प्रवित्ति बढ़ती जा रही हैं। GST के जरिये देश के संघीय ढांचे के साथ जम कर खिलवाड़ किया गया हैं, जिसके दुष्परिणाम जल्द ही धरातल पर नजर आने लगेंगे।
इस सब के बीच भी सरकार अगर खामोश हैं और अपनी खोखली विकास की बंसी बजा रही हैं, तो भारत का भविष्य क्या होने वाला हैं, इसे समझना मुश्किल नहीं हैं। जल्द ही पूरी अर्थव्यवस्था कुछ चुनिंदा लोगों के हाथ में होगी और देश अपरोक्ष रूप से उनका गुलाम होगा।
■संपादकीय
हालिया आए सर्वे की रिपोर्ट जिसमें फ़्रांस को भारत ने अर्थव्यवस्था के मामले में पीछे छोड़ दिया हैं को जिस प्रकार से प्रचारित किया जा रहा हैं, उससे तो ऐसा ही लगता हैं कि अब केंद्र सरकार की नीतिया केवल 2 % लोगों के लिए बनाई जा रही हैं और उनके अच्छे परिणाम आने पर सरकार केवल उन्हीं को प्रसारित करने में लग जाती हैं।
देश नित नई समस्याओं से जूझ रहा हैं और सरकार खामोश हैं। ऐसे में, इस रिपोर्ट को प्रचारित करना गरीबों और माध्यम वर्ग के साथ खिलवाड़ लगता हैं। हालिया भारत की हालत इतनी खराब हैं कि सरकारी बैंकिंग व्यवस्था टूटने के कगार पर हैं, NPA को कैसे कम किया जाए, इस पर सरकार कुछ भी नहीं कर पा रही हैं, गरीबी के आंकड़ों में थोड़ी सी वृद्धि देखि गई हैं, माध्यम वर्ग बचत नहीं कर पा रहा हैं और कुछ चुनिंदा लोगों के पास सारा पैसा एकत्रित होने से माध्यम वर्ग की माली हालात दिनों दिन बिगड़ती जा रही हैं। जनसँख्या के असामान्य वितरण को ठीक करने के लिए सरकार ने एक तो कोई कदम नहीं उठाए और जो उठाए भी हैं उसका कोई परिणाम नहीं निकला हैं। किसानों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही हैं और प्राईवेट कंपनियां किसानों की भूमि हथियाती जा रही हैं। कल ही महाराष्ट्र में 7 किसानों ने आत्महत्या किया हैं। बड़े शहरों के साथ साथ अब छोटे और मझोले शहर भी कूड़े का ढेर होते जा रहे हैं। देश में पेयजल की निकट भविष्य में बड़ी कमी होने वाली हैं, जिसके आसार अभी से दिख रहे हैं जब शिमला में लोगों ने पानी के लिए लम्बी लाइने लगाना शुरू कर दिया हैं।
देश का भविष्य माने जाने वाले युवाओं की स्थिति तो इतनी बदतर हैं कि एक ओर जहाँ उनके लिए सरकार नौकरिया नहीं सृजित कर पा रही हैं, तो दूसरी ओर युवाओं में नशे की लत और आत्महत्या की प्रवित्ति बढ़ती जा रही हैं। GST के जरिये देश के संघीय ढांचे के साथ जम कर खिलवाड़ किया गया हैं, जिसके दुष्परिणाम जल्द ही धरातल पर नजर आने लगेंगे।
इस सब के बीच भी सरकार अगर खामोश हैं और अपनी खोखली विकास की बंसी बजा रही हैं, तो भारत का भविष्य क्या होने वाला हैं, इसे समझना मुश्किल नहीं हैं। जल्द ही पूरी अर्थव्यवस्था कुछ चुनिंदा लोगों के हाथ में होगी और देश अपरोक्ष रूप से उनका गुलाम होगा।
■संपादकीय
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