दिल्ली सो रही हैं उसे सोने दो - Kashi Patrika

दिल्ली सो रही हैं उसे सोने दो

दिल्ली कूड़े के अम्बार में और मुम्बई बरसात में डूब रही हैं : सुप्रीम कोर्ट ने 10 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों पर लगाया जुर्माना 



मंगलवार को एक और ऐतिहासिक दिन था जब देश की सर्वोच्च अदालत ने देश के कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों को 'सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट' की कोई ठोस नीति न बनाने पर फटकार लगाई हैं। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहाँ कि दिल्ली कूड़े के अम्बार में और मुम्बई बरसात के पानी में डूब रही हैं और यहाँ की सरकारें खामोश हैं। 

सर्वोच्च न्यायालय ने यहाँ तक कहाँ कि हर दूसरे रोज हमारे ऊपर जुडिशल एक्टिविज़्म के आरोप लगाए जाते हैं, तो उस समय हम क्या करें जब यहाँ की सरकारें ही कोई काम नहीं करती हैं और अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह ठीक तरीके से नहीं करती हैं। 

13 राज्यों के पास नीति नहीं
आपको जानकर हैरानी होगी कि देश के लगभग 2/3 यानी 13 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं, जिन्होंने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की कोई नीति नहीं बनाई हैं। ये भी तब जब केंद सरकार ने करोड़ो रूपए स्वक्षता अभियान पर पानी की तरह बहाया हैं। 

कूड़े पर इन राज्यों को फटकार
देश की सर्वोच्च अदालत ने बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, जम्मू कश्मीर, पंजाब, पश्चिम बंगाल, केरला, कर्णाटक, लक्षदीव, मेघालय, हिमाचल प्रदेश और पॉन्डिचेरी पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर अभी तक एफिडेविट न जमा करने पर 1-1 लाख रूपए का जुर्माना लगाया हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाने के अंदाज़ में पूछा कि आखिर राजधानी में कूड़ा प्रबंधन की जिम्मेदारी किसकी है, मुख्यमंत्री की या LG की या फिर केंद्र सरकार की? सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली में कूड़े का पहाड़ बन गया है, लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि लोग डेंगू, चिकनगुनिया, और मलेरिया से मर रहे हैं लेकिन कोई राज्य सरकार इसको लेकर गंभीर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि जब संसद द्वारा कोई भी नियम सही तरीके से लागू नही हो पाता तो देश मे कैसे लागू हो सकता है।

सात अगस्त को अगली सुनवाई
अब सुप्रीम कोर्ट सात अगस्त को मामले की सुनवाई करेगा। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा दाखिल 850 पेज के हलफ़नामे को देखकर कहा कि ये खुद में सॉलिड वेस्ट है और हम कचरा ढोने वाले नहीं है। इसमें किसी भी चीज को सारणीबद्ध कर आंकड़ों के जरिए नहीं बताया गया है। जब महकमे के वकील अपने हलफनामे नहीं पढ़कर आते हैं, तो वो हमसे उम्मीद करते हैं कि हम उनका लाया कूड़ा पढ़ें।
■ सिद्धार्थ सिंह

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