देश की मौजूदा राजनीति और नीतिकार अपनी नैतिकता को कबका ताक पर रख चुके हैं। आधुनिक परिपेक्ष में मीडिया भी इसी दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है। चैनलों की “टीआरपी बढ़ाने” के लिए गरमा-गरम बहस के बीच मर्यादाओं को तार-तार होते आसानी से देखा जा सकता है, लेकिन प्रिंट मीडिया भी अब अफवाहों और झूठ को परोसने में गुरेज नहीं करती। ताजा मामले में एक उर्दू अखबार के खबर की प्रमाणिकता संदेह के घेरे में है। 12 जुलाई को उर्दू अखबार ‘इंकलाब’ में एक आर्टिकल में राहुल गांधी को कोट करते हुए लिखा गया कि ‘अगर भाजपा कहती है कि कांग्रेस मुस्लिमों की पार्टी है, तो ठीक है। कांग्रेस मुस्लिमों की पार्टी है, क्योंकि मुस्लिम कमजोर हैं और कांग्रेस हमेशा कमजोर लोगों के साथ खड़ी होती है।’
यहां से राहुल गांधी का यह तथाकथित बयान अन्य जगहों पर आया।
बीजेपी ने फटाफट बयान लपका और फिर देश की सियासत में भूचाल आ गया। शनिवार को आजमगढ़ की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बयान को उठाते हुए कहा, ‘मैंने अखबार में पढ़ा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी कहा है। वह यह भी बताएं कि कांग्रेस केवल मुस्लिम पुरुषों की पार्टी है या मुस्लिम महिलाओं की भी?’ प्रधानमंत्री के इस बयान पर कांगेस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उनसे माफी मांगने की बात कही है।
बहरहाल, बात यह है कि जिस मीटिंग के हवाले से यह खबर आई, वहां मौजूद कई लोगों का दावा है कि राहुल गांधी ने ऐसी कोई बात नहीं कही। “इकबाल” की रिपोर्ट के मुताबिक, राहुल गांधी ने मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों के साथ एक मीटिंग में यह बात कही। किंतु, मीटिंग में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दीकी ने ट्विटर पर ‛इंकलाब' की इस रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, 'यह पूरी तरह झूठ है और अखबार की तरफ से शर्मनाक तरीके से तोड़ा-मरोड़ा गया है।’
वहीं, इतिहासकार एस इरफान हबीब ने भी ट्विटर पर कहा कि 13 जुलाई को वह इस मीटिंग में मौजूद थे और मीटिंग में ऐसी कोई बात नहीं हुई। मीटिंग में मौजूद सुप्रीम कोर्ट के वकील फुजैल अहम अयूबी का भी कहना है कि राहुल गांधी ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया।जेएनयू के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस में फैकल्टी गजाला जमील ने भी कहा कि बैठक में राहुल गांधी ने साफ तौर पर कहा कि वह मुस्लिमों को समान नागरिक के तौर पर देखते हैं, न ज्यादा, न कम। इसके अलावा लेखक और एक्टिविस्ट फाराह नकवी भी बैठक में मौजूद थीं। उन्होंने भी राहुल गांधी के कथित बयान से इनकार किया है।
ऐसे में, अखबार की खबर ही प्रमाणिकता के कठघरे में है, जिसे लेकर ज़ुबानी जंग जारी है। खबरों की प्रस्तुति का नया ढंग राजनीतिक गलियारों से होते हुए मीडिया की आत्मा में रचने-बसने लगा है। जहां, “सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय” काफी पीछे छूट गया है। खैर, मीडिया, राजनीति या अधिकारी पर इसका दोष मढ़ना उचित नहीं है, क्योंकि समाज के अन्य वर्ग और भद्रजन को भी मसालेदार खबरे ही अच्छी लगती हैं, सो जो बिकता है, वहीं समाचार बनता है और आचार, विचार, व्यवहार ताक पर रख दिया जाता है।
■ संपादकीय
यहां से राहुल गांधी का यह तथाकथित बयान अन्य जगहों पर आया।
बीजेपी ने फटाफट बयान लपका और फिर देश की सियासत में भूचाल आ गया। शनिवार को आजमगढ़ की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बयान को उठाते हुए कहा, ‘मैंने अखबार में पढ़ा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी कहा है। वह यह भी बताएं कि कांग्रेस केवल मुस्लिम पुरुषों की पार्टी है या मुस्लिम महिलाओं की भी?’ प्रधानमंत्री के इस बयान पर कांगेस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उनसे माफी मांगने की बात कही है।
बहरहाल, बात यह है कि जिस मीटिंग के हवाले से यह खबर आई, वहां मौजूद कई लोगों का दावा है कि राहुल गांधी ने ऐसी कोई बात नहीं कही। “इकबाल” की रिपोर्ट के मुताबिक, राहुल गांधी ने मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों के साथ एक मीटिंग में यह बात कही। किंतु, मीटिंग में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दीकी ने ट्विटर पर ‛इंकलाब' की इस रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, 'यह पूरी तरह झूठ है और अखबार की तरफ से शर्मनाक तरीके से तोड़ा-मरोड़ा गया है।’
वहीं, इतिहासकार एस इरफान हबीब ने भी ट्विटर पर कहा कि 13 जुलाई को वह इस मीटिंग में मौजूद थे और मीटिंग में ऐसी कोई बात नहीं हुई। मीटिंग में मौजूद सुप्रीम कोर्ट के वकील फुजैल अहम अयूबी का भी कहना है कि राहुल गांधी ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया।जेएनयू के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस में फैकल्टी गजाला जमील ने भी कहा कि बैठक में राहुल गांधी ने साफ तौर पर कहा कि वह मुस्लिमों को समान नागरिक के तौर पर देखते हैं, न ज्यादा, न कम। इसके अलावा लेखक और एक्टिविस्ट फाराह नकवी भी बैठक में मौजूद थीं। उन्होंने भी राहुल गांधी के कथित बयान से इनकार किया है।
ऐसे में, अखबार की खबर ही प्रमाणिकता के कठघरे में है, जिसे लेकर ज़ुबानी जंग जारी है। खबरों की प्रस्तुति का नया ढंग राजनीतिक गलियारों से होते हुए मीडिया की आत्मा में रचने-बसने लगा है। जहां, “सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय” काफी पीछे छूट गया है। खैर, मीडिया, राजनीति या अधिकारी पर इसका दोष मढ़ना उचित नहीं है, क्योंकि समाज के अन्य वर्ग और भद्रजन को भी मसालेदार खबरे ही अच्छी लगती हैं, सो जो बिकता है, वहीं समाचार बनता है और आचार, विचार, व्यवहार ताक पर रख दिया जाता है।
■ संपादकीय
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