"मोदी चिंतन सब करें, भरमाए जग माहि" - Kashi Patrika

"मोदी चिंतन सब करें, भरमाए जग माहि"

प्रधानमंत्रीजी को बनारस से गए कुछ ही घंटे बीते हैं। जेहन में उनकी छवि ताजा ही है पाड़ेजी के। आज तो बैठकी के खर्चे की आर्थिक जिम्मेदारी भी उन्होंने सहर्ष ही अपने कंधे पर ले ली है। 
किसी ने पांडेजी की चुटकी ली, “आज तो पाड़े कउनो बात के बुरा न मनिहै। काहे न आज समोसा भी छान लेहल जाए।” पांड़ेजी ने कुल्ली फेंकते हुए हामी में सिर हिलाया और अपने ही ख्यालों में जैसे बुदबुदाए, “मिर्जापुर में ठेठ भाषा में क्या दहाड़े ‛गुरू’ मोदीजी। फिर उन्होंने प्रधानमंत्री के शब्दों को मद्धिम आवाज में बुदबुदाया, ‛आज मिर्जापुर में हमरे बदे बहुत गर्व का बात बा जगतजननी माई विंध्यवासिनी के गोदी में तोहई सबके देखी के हमके बहुत खुशी बा… तुम सबे हमें बहुत देर से जोहत रह… एकरे खातिर हम पांव छुई के प्रणाम करत हई… आज इतना भीड़ देखिके हमके विश्वास होई गवा कि माई विंध्यवासिनी क कृपा हमरे ऊपर बना बा और आप लोगन क कृपा से आगे भी अइसही बना रहे...’ उसके बाद पाड़ेजी थोड़े उच्च स्वर में बोले, अब कउनो माई का लाल... 74 सीट पक्की समझो।”

पाड़ेजी की खुशी में मित्रमंडली भी खुश। एक तो सबको उनसे खासा लगाव है, तिस पर किसी राजनीतिक दल से किसी का कोई बन्धुत्व भी नहीँ है, सो दुनिया-जहान की पॉलिटिक्स पर बिना लागलपेट यह खुला मंच है। हां, पाड़ेजी की बात अलग है, वो ठहरे मोदीजी के परम भक्त। भक्ति भी ऐसी-वैसी नहीं, “श्रीराम” के जमाने से चली आ रही अंध-भक्ति। लेकिन मित्रों की खातिर बात पूरी सुनकर ही तर्कसंगत उत्तर देते हैं। 
बैठकी अभी ही जमी ही थी। रिमझिम फुहार के बीच पाड़ेजी की बात और समोसा का लुत्फ उठाने के मूड में थे सभी। लेकिन, होनी को कुछ और ही मंजूर था, सो ‛रंग में भंग डालने’ आज कई दिनों के बाद मास्टरजी उधर आ निकले। (मास्टरजी, प्राइमरी के शिक्षक हैं। अंग्रेज के जमाने से उनके पहनावे-ओढ़ावे में अंतर नहीँ आया है, खादी का ढीला कुर्ता-पायजामा। और अपने नाम-उपनाम की जगह मास्टरजी कहलाना पसंद करते हैं। आदमी थोड़े पेचीदा हैं, आसानी से सन्तुष्ट नहीं होते।) 
“क्या चल रहा है?” मास्टरजी ने खुद को बैठकी से जोड़ा। आइए...आइए। न चाहते हुए भी उनके लिए बेंच पर जगह बनाई गई। 
मास्टरजी बुदबुदाए, “क्या आएं, भाई। पढ़ाई को तो मजाक बना दिया है इन नेता लोगों ने। बच्चों के भविष्य को भी सब राजनीति में झोंकने पर तुले हैं। स्कूल बंद कर दिया बेवजह, बताओ। प्रधानमंत्री की रैली में सुरक्षा करनी थी, तो ठहरा दिए गए स्कूल में...।” किसी ने समोसा मास्टरजी की ओर बढ़ाया, लेकिन ‛न’ में सिर हिलाते हुए वे आगे बोले, “पहले ही स्कूलों में सौ ठो मुसीबत है। किसी तरह पढ़ाई होती है, जिस पर ये सब...। सोचा जगन्नाथजी के दर्शन कर आएं, तो उहा भी सड़क पर घूमते-घूमते सिर नाच जाए। इतनी देर में तो इलाहाबाद जाकर कुंभ नहा आते।” 
अब तक मौन बैठे पाड़ेजी का धैर्य जवाब दे गया, बोले, “मोदीजी तो शनि-रवि थे, तो बच्चों का ऐसा क्या नुकसान हुआ। रही बात सड़क की, तो विकास के लिए टाइम भी लगता है और थोड़ी मुश्किल भी उठानी पड़ती है। वो प्रधानमंत्री होकर रात को विकास देखने खुद बनारस की सड़क पर निकल सकते हैं, आप थोड़ी देर अपनी साइकिल पर नहीं बैठ सकते। ये क्या बात हुई... ये पुल, कॉरिडोर क्या जादुई छड़ी घुमाकर बनेगा।” पाड़ेजी धारा प्रवाह बोले जा रहे थे, “मिर्जापुर में लोगों से उनकी भाषा में बोले...आज के दौर में इतने बढ़िया प्रधानमंत्री मिलेंगे...!”
मास्टरजी जैसे पहले से ही भरे थे और अपनी गुबार निकालने के लिए किसी को तलाश रहे थे। “बहुत बढ़िया बोले। बोलने की कला अपने साथियों को भी सिखा देते। तो, जुएल उरांव आदिवासियों को ‛विजय माल्या’ जैसे बनने की नसीहत न देते। यूपी में ही ले लो कोई विधायक कहता है कि भगवान राम आ जाएं तो भी बलात्कार नहीं रुकने वाला, कोई मदरसे के बच्चों को शर्ट-पैंट पहनाने की वकालत करता है...रोज कोई न कोई बिन सिर-पैर की बयान देता रहता है। होमवर्क न करने पर तो हम बच्चों को भी छड़ी से सूत (पीट) देते हैं। एक-एक को सुधार दें, हमें मौका मिले तो... ”मास्टरजी के सिर पर मास्टरी सवार हो गई लगता था...। सभी भौचक से उनकी ओर देख रहे थे। 
तनिक देर को तो, पाड़ेजी की भी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई, फिर जैसे नींद से जागे, "आपकी क्लास में गिनकर 40-50 छात्र होंगे, उतने संभल जाते हैं। अब मोदीजी पर अपने क्लास के बच्चों के साथ ही 1.25 करोड़ लोगों की जिम्मेदारी है, तो कहीं चूक भी जाते हैं।” 
तब तक चाय वाला लड़का आया और बोला, “एक तो बादर आंख-मिचौली करत हय, दू बूंद टपका के भाग जात ह, ऊमस से बुरा हाल होत ह भाय। उ पर आप लोग इ का बात से ताप बढ़ावत हैं। आपौ मास्टरजी, तनिक चाय पी के सुस्ता लें।” 
मास्टरजी के चेहरे पर कुछ मुस्कान आई और पाड़ेजी की ओर देख कर बोले, “तुम्हें कोई नहीं समझा सकता पाड़े। तुम्हारे लिए ही कबीर जी कह गए...
“प्रेम गली अति सांकरी, तामे दो न समाहिं”। तुम्हरी मोदीजी के प्रति समर्पण से नेता लोग कुछ सीख लेते और पूरी भक्ति से देश का भला चाहते तो अमेरिकी डालर तो क्या, अमेरिका को भी पछाड़ देते।
 सोनी सिंह 

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