गुरु पूर्णिमा के बाद ग्रहण की रात बीतते ही गंगा मइया मानो चल पड़ीं देश-दुनिया के पाप धुलने। घंट-घड़ियालों के बीच हर हर महादेव के उदघोष ने काशी में सावन का शंखनाद कर दिया। इस बीच आई कांवरियों की टोली ने देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न करने के लिए ‛बोल बम’ के जयकारे लगाए। बादल भी यूं बरसे जैसे देवराज इंद्र समस्त देवताओं के साथ बाबा विश्वनाथ के दरबार में पधारे हैं।
प्रथम जलाभिषेक किया यदुवंशियों ने
काशी विश्वनाथ मंदिर में यादव बंधुओं ने गंगा जल से बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक किया, जबकि अन्य शिव मंदिरों में दूध व गंगा जल से अभिषेक किया गया। इसके अतिरिक्त मदार की माला, बेल पत्र भी काशी विश्वनाथ को अर्पित कर लोगों ने सुख व शांति की प्रार्थना की। जिले के सभी शिवालयों में शिव भक्तों की लंबी कतार लगी रही। धार्मिक मान्यताओं की माने तो सारनाथ स्थित सारंगनाथ मंदिर को भगवान शिव का ससुराल माना जाता है। पुराने लोग यह भी कहते हैं कि सावन के समय भगवान शिव खुद अपने ससुराल चले जाते हैं, हालांकि इस बात का कही लिखित प्रमाण नहीं मिलता है।
हजारों साल पुरानी परंपरा
पहले सोमवार को परंपरानुसार काशी के यादव बंधु अपने पारंपरिक वेष-भूषा में हर साल सबसे पहले भगवान विश्वनाथ का पवित्र गंगाजल से सामूहिक अभिषेक करते हैं। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर सहित शहर के हर शिवालयों में जाकर पतित पावनी माता गंगा के जल से शिवलिंगों का जलाभिषेक करते हैं।
हजारों-हजार लीटर गंगाजल से जलाभिषेक की परंपरा सावन का पहला सोमवार विशेष रूप से दर्शनीय है।
शिव का जलाभिषेक और कृष्ण
कहते हैं कि, द्वापरयुग में एक बार धरती पर प्रलय जैसी स्थिति पैदा हो गई। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी और गऊ माताएं भी अकाल मौत को प्राप्त होने लगीं। ऐसी स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने हाथों से प्रलयनाथ और विश्वनाथ महादेव शिव का दुग्धभिषेक किया। इससे शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और प्रलय लीला की समाप्ति हुई। इसके बाद हर वर्ष श्रावण मास में यदुवंशियों द्वारा शिव का दुग्धाभिषेक किया जाने लगा। कुछ काल के लिए भगवान शिव का सामूहिक दुग्धाभिषेक बंद हो गया और तकरीबन पांच हजार वर्ष पूर्व धरती पर एकबार फिर प्रलयलीला शुरू हुई। इस बार ब्राह्मणों और ऋषियों ने भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण कराते हुए एक बार फिर यादव बंधुओं का आह्वान किया। लेकिन, बड़े पैमाने पर गोवंश की हानि होने के कारण दूध का आभाव हो गया। तब भोले भंडारी का गंगाजल से अभिषेक करना शुरू किया गया और यह परंपरा आज भी कायम है।
ब्रिटिश को भी झुकना पड़ा
कहा जाता है कि अंग्रेजी शासनकाल में इस परंपरा में रुकावट आई थी लेकिन काशी की जनता की भारी मांग को देखते हुए ब्रिटिश हुकूमत को झुकना पड़ा और इस परंपरा को फिर से पुनर्जीवित किया गया। इसके बाद सन 1932 से यह परंपरा अनवरत है।
काशी में कांवड़ियों का मेला
वाराणसी में सावन के पहले सोमवार को बाबा विश्वनाथ के दर्शन-पूजन के लिए
कांवड़ियों का सैलाब उमड़ा पड़ा। रविवार को भी काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास हजारों श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए अपनी बारी का इंतजार करते दिखे। सोमवार को बाबा के दर्शन के लिए शिवभक्त मंदिर पहुंचने के प्रमुख रास्तों के किनारे कतारों में रात से ही खड़े होने लगे।
सुरक्षा चाक-चौबंद
पुलिस की ओर से सुरक्षा के चाकचौबंद इंतजाम किए गए हैं। सीसीटीवी और ड्रोन कैमरों से चप्पे-चप्पे की पर नजर रखी जा रही है। यातायात पुलिस विशेष निगरानी कर रही है। सड़कों पर अनावश्यक ठहराव करने वाले वाहन चालकों समझाने के साथ-साथ कानूनी कार्रवाई जा रही है।
बंद रहेंगे स्कूल-कॉलेज
सावन में कांवरियों की शहर में भीड़ को देखते हुए सावन के हर सोमवार को जिले में शहरी क्षेत्र के इंटर तक के सभी स्कूल, कॉलेज बंद रहेंगे। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार बेसिक शिक्षा परिषद, यूपी बोर्ड, सीबीएसई, आईसीएसई बोर्ड सहित सभी पर यह लागू होगा।
■ काशी पत्रिका
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