काशी सत्संग: जोगाजोग और संजोग - Kashi Patrika

काशी सत्संग: जोगाजोग और संजोग


अप्रैल 2009 का समय था। मैं दिल्ली से विमान से वापस आ रहा था। मेरे साथ रामकृष्ण मिशन के कोई साधु थे और बगल में अमेरिका से आ रहा कोई पत्रकार था। पत्रकार ने साधु का साक्षात्कार लेना प्रारंभ किया।
पत्रकार- महाराज, आपके पिछले वाले प्रवचन में आपने बोला, जोगाजोग और संजोग। इसके बारे में आप मुझे समझा सकते हैं? मैं थोड़ा भ्रमित हूं। जानना चाहता हूं।
साधु ने हंसकर उस प्रश्न से हटकर पत्रकार से पूछा- क्या आप न्यूयॉर्क से हैं?
पत्रकार ने कहा- हां
साधु- घर में कौन--कौन हैं?
पत्रकार को लगा साधु उसके प्रश्न का समाधान नहीं करना चाहते हैं। क्योंकि यह कोई सांदर्भिक प्रश्न नहीं था।
तो पत्रकार ने कहा- मां चल बसी है। पिताजी हैं। तीन भाई और एक बहन हैं। सभी की शादियां हो गईं।
साधु ने हंसकर फिर पूछा- तुम अपने पिता से बात करते हो?
पत्रकार को थोड़ा बुरा लगा।
साधु- तुमने उनसे पिछली बार कब बात की?
पत्रकार ने अपनी अंदर के आहतभाव को दबाकर कहा- शायद एक महीना पहले।
साधु ने फिर पूछा- तुम्हारे भाई-बहन कभी कभार मिलते होंगे? तुम लोगों का पारिवारिक मिलन पिछली बार कब हुई?
इस बात पर पत्रकार के माथे से पसीना छूटा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि पत्रकार साधु का साक्षात्कार ले रहा था या साधु पत्रकार का। मुझे लग रहा था कि साधु ही पत्रकार का साक्षात्कार ले रहे थे।
पत्रकार ने आहे भरते कहा- हम लोग पिछले क्रिसमस पर मिले, दो साल पहले।
साधु ने पूछा- कितने दिन तक तुम लोग साथ रहे?
पत्रकार ने अपने माथे का पसीना पोछते हुए कहा- तीन दिन।
साधु- तुम अपने पिता के साथ कितने दिन, कितना समय तक साथ बिताया? उनके बगल में बैठ कर?
पत्रकार इस बात पर बहुत ही शर्मिंदा होकर अपने कागज पर कुछ लिखता हुआ दिखाई दिया।
साधु ने पूछा- क्या तुम लोगों ने साथ खाना खाया? क्या तुमने उनसे पूछा कि वह कैसे हैं? तुम्हारी माता के गुजर जाने के बाद उनका समय कैसे बीत रहा है?
तब मैंने देखा कि वह पत्रकार रो रहा है। उसके आंखों से आंसू निकल रहे हैं।
साधु ने पत्रकार का हाथ पकड़कर कहा- देखो, बुरा ना मानना। तुम्हें दुःखी होने की आवश्यकता नहीं है। मुझे क्षमा करो यदि मैंने अनजाने तुम्हारी भावनाओं को आहत किया तो। पर यही तुम्हारे प्रश्न का समाधान था। तुमने जोगाजोग और संजोग के लिए पूछा। तुम्हें भी तुम्हारे पिता के साथ जोगाजोग है संजोग नहीं है। तुम लोग उनसे संजोग नहीं रखते। साथ बैठना, साथ खाना खाना, एक दूसरे को प्यार से छूना, हाथ मिलाना, आंखों में आंखें मिला कर देखना, कुछ समय साथ बिताना, यही संजोग है। तुम्हारे भाई-बहन में जोगाजोग है पर एक दूसरे के साथ संजोग नहीं है।
इस बात पर पत्रकार ने अपनी आंखें पोंछकर कहा-- आपने मुझे बहुत अनमोल पाठ पढ़ाया है। सीख दी है। बहुत धन्यवाद।
यही आजकल की सच्चाई है। घर में हो या समाज में, सभी के पास बहुत सारे जोगाजोग है, पर संजोग किसी का नहीं है। किसी के बीच बातचीत नहीं होती है। सब अपने-अपने दुनिया में खोए हैं। चलिए, हम लोग जोगाजोग नहीं संजोग का व्यवस्था करते हैं। एक दूसरे की परवाह करते हैं। साझा करते हैं और एक दूसरे के साथ समय बिताते हैं।
ऊं तत्सत...

No comments:

Post a Comment