बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

भविष्य की चिंता किए बगैर तत्कालीन लाभ के लिए राजनीति करना देश की आर्थिक और सामाजिक क्षति के लिए हमेशा से जिम्मेदार रही हैं। देश के नीति निर्माताओं ने आजादी के बाद से ही लम्बी अवधि में होने वाले फायदों को दरकिनार कर दिया और तत्कालीन लाभ के लिए देश को विभिन्न समुदायों की प्रयोगशाला बना दिया। जिनमें संगठित होकर वोट देने वाले समुदाय को सबसे ज्यादा लाभान्वित किया जाए। आज देश को आजादी के लगभग 70 सालों बाद भी इसी दुर्व्यवस्था का सामना करना पड़ रहा हैं। आज जब सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश पर असम की राज्य सरकार ने नागरिकों की गणना का आंकड़ा जारी किया, तो पूरा देश अचम्भे में पड़ गया कि किस प्रकार राजनीतिक दलों ने भारत की असमित्ता के साथ खिलवाड़ किया है।

40 लाख अवैध नागरिकों के ये आंकड़े केवल यह नहीं बताते कि पूर्वोत्तर राज्यों की किस प्रकार अनदेखी की गई और वहां बाहर से आए नागरिकों को निर्बाध रूप से बसने दिया गया, बल्कि यह भी बताती हैं कि सत्ता में आने के लिए राजनीतिक दल देश में जनसंख्या का अनुपात भी बिगाड़ सकते हैं। अब जब यह आंकड़े सामने आ गए हैं, तो इसे राजनीतिक लाभ और हानि से ऊपर उठ कर देखना चाहिए। पर विडम्बना देखिए कि आंकड़ों को आए कुछ घंटे भी नहीं हुए की राजनीतिक दलों ने इसे फायदे और नुकसान के चश्मे से देखना शुरू कर दिया।

देश ने सीमाओं पर कई लड़ाइयां देखी हैं और आज भी चुनौतियां जस की तस खड़ी हैं; ऐसे में देश की सीमाओं को घुसपैठ से रोकने के लिए बहुत पहले पुख्ता इंतजाम कर लिया जाना चाहिए था पर ऐसा हुआ नहीं और आज देश को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा हैं। एक ओर देश की बढ़ती जनसँख्या बड़ी समस्या बनी हुई है। ऐसे में, सीमावर्ती क्षेत्रों पर स्थित देशों से इतने बड़े पैमाने पर आने वाले शरणार्थियों का बोझ देश के लिए उठाना नामुमकिन हैं।

हाल फिलहाल में रोहंगिया मुसलमानों के मुद्दे पर भी कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पाई थी और ऐसी कार्यवाहियों में परिणाम कितने लम्बे अंतराल पर नजर आते हैं, यह जानना कोई बड़ी बात नहीं हैं। तो ऐसे में राजनीति में फंसे इन अवैध नागरिकों का मुद्दा देश में यह स्पष्ट रूप से साबित कर देगा कि सरकारें बिना लम्बी सोच और मसौदों के चल रही हैं, जिनमें देश की सीमाओं की सुरक्षा और घुसपैठ रोकने का भी माद्दा नहीं है।
■संपादकीय 

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