पाकिस्तान में सपन्न हुआ आम चुनाव और उसमें इमरान खान की पार्टी को मिली बढ़त बहुत कुछ बयां करती है। यह इस ओर साफ इशारा है कि पाकिस्तानी युवा नई सोच और विकास चाहता है या यूं कहे पाकिस्तानी अपने देश में अमन चाहता है। यहीँ वजह है कि धार्मिक रुझान रखने वाली पार्टियों और कट्टरपंथ की तरफ रुझान रखने वाली पार्टियों को चुनाव में अधिक फायदा होता नहीं पहुंचा। लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद को भले वहां की सरकार अब तक संरक्षण देती रही हो, लेकिन वहां की आम जनता ने उसे और उसकी नई पार्टी अल्लाह हू अकबर तहरीक पार्टी को नकार दिया। इतना ही नहीं अल्लाह हू अकबर तहरीक पार्टी की ओर से चुनाव में खड़े किये गए कुल 265 उम्मीदवारों में एक को भी जीत हासिल नहीं हुई।
गौरतलब है कि इमरान खान ने भी बड़ी जीत के बाद जनता को सम्बोधित करते हुए आर्थिक, सामाजिक सुधार की ही बात की। भारत के साथ अच्छे व्यापारिक रिश्ते एवम् बातचीत की भी बात कही। इमरान का पीएम बनना लगभग तय माना जा रहा है और राजनीतिक जानकारों को उम्मीद है कि क्रिकेटर के तौर पर भारत से भली-भांति परिचित इमरान भारत से सम्बंध सुधारने की दिशा में काम करेंगे। हालांकि, अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। पर यह तय है कि पाकिस्तानी आवाम अब स्ट्रीम लाइन में आना चाहता है और आतंकवाद की छवि तोड़कर रोजगार, बुनियादी सुविधाएं, तरक्की करना चाहता है। इमरान खान की तुलना कुछ लोग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कर रहे है और भारतीय जनता पार्टी के “सबका साथ, सबका विकास” के नारे की तरह इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान को विकास का सपना दिखकर सत्ता में आई है। यही वजह है कि वहां की जनता ने धार्मिक मानी जाने वाली पार्टियों के गठबंधन मुत्ताहिदा मजलिसे-अमल को भी दस से कम सीट दी। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग (नवाज) भी सत्ता के लिए आंकड़े नहीं जुटा सकी।
बहरहाल, पाक के हालात कि तुलना भारत से की जाए तो, तस्वीर थोड़ी बदल रही है। पिछले लोकसभा चुनाव 2014 में यहां विकास के आधार पर जनता ने प्रधानमंत्री को बड़े अंतर से सत्ता दी थी, लेकिन आगामी लोकसभा के करीब पहुंच विकास की राह छोड़ सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव को धार्मिक रंग देने की कोशिश में जुटी हैं। विडम्बना ही है कि भारत को देखकर पाकिस्तान तरक्की, रोजगार, विकास चाहता है। वहीं भारतीय आवाम धर्म-सम्प्रदाय में बंटकर मॉब लिचिंग जैसे कृत्य से देश की तस्वीर कलुषित करना चाहता है। काश! हम सब मिलकर सारे जहां से अच्छे हिंदुस्तान के निवासियों को भी सबसे अच्छा और नेक इंसान बना सकते!!
■ संपादकीय
गौरतलब है कि इमरान खान ने भी बड़ी जीत के बाद जनता को सम्बोधित करते हुए आर्थिक, सामाजिक सुधार की ही बात की। भारत के साथ अच्छे व्यापारिक रिश्ते एवम् बातचीत की भी बात कही। इमरान का पीएम बनना लगभग तय माना जा रहा है और राजनीतिक जानकारों को उम्मीद है कि क्रिकेटर के तौर पर भारत से भली-भांति परिचित इमरान भारत से सम्बंध सुधारने की दिशा में काम करेंगे। हालांकि, अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। पर यह तय है कि पाकिस्तानी आवाम अब स्ट्रीम लाइन में आना चाहता है और आतंकवाद की छवि तोड़कर रोजगार, बुनियादी सुविधाएं, तरक्की करना चाहता है। इमरान खान की तुलना कुछ लोग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कर रहे है और भारतीय जनता पार्टी के “सबका साथ, सबका विकास” के नारे की तरह इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान को विकास का सपना दिखकर सत्ता में आई है। यही वजह है कि वहां की जनता ने धार्मिक मानी जाने वाली पार्टियों के गठबंधन मुत्ताहिदा मजलिसे-अमल को भी दस से कम सीट दी। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग (नवाज) भी सत्ता के लिए आंकड़े नहीं जुटा सकी।
बहरहाल, पाक के हालात कि तुलना भारत से की जाए तो, तस्वीर थोड़ी बदल रही है। पिछले लोकसभा चुनाव 2014 में यहां विकास के आधार पर जनता ने प्रधानमंत्री को बड़े अंतर से सत्ता दी थी, लेकिन आगामी लोकसभा के करीब पहुंच विकास की राह छोड़ सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव को धार्मिक रंग देने की कोशिश में जुटी हैं। विडम्बना ही है कि भारत को देखकर पाकिस्तान तरक्की, रोजगार, विकास चाहता है। वहीं भारतीय आवाम धर्म-सम्प्रदाय में बंटकर मॉब लिचिंग जैसे कृत्य से देश की तस्वीर कलुषित करना चाहता है। काश! हम सब मिलकर सारे जहां से अच्छे हिंदुस्तान के निवासियों को भी सबसे अच्छा और नेक इंसान बना सकते!!
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