मुख्य रूप से कृषि पर आधारित इस राज्य की अर्थव्यवस्था में लोगों में हुनर की कमी तो नहीं हैं, पर पैसों और उद्योग धंधों के आभाव से गरीबी के कारण किसान अपनी भूमि औने-पौने दाम में बेचकर दूसरे राज्यों में नौकरी के लिए पलायन कर जाते हैं। खनिज सम्पदा से परिपूर्ण इस राज्य के झारखण्ड के भाग को सन 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय अलग कर दिया गया। ये ऐसा समय था जब बिहार में अपराध अपने चरम पर था। भ्रष्टाचार और कालाबाजारी आज भी बिहार की स्थिति को बद से बदतर बनाता जा रहा हैं।
इस नितांत पिछड़े राज्य को विशेष राज्य का दर्जा काफी पहले मिल जाना चाहिए था, पर केंद्र ने इसे कभी महत्ता दी ही नहीं। वोट की राजनीति के बीच फंसे इस राज्य के नागरिक कभी अपनी चुनी सरकार, तो कभी केंद्र की ओर देखते हैं, पर उनके लिए कार्य करने वाला कोई नहीं हैं। सन 2013 से नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाने की बात कह रहे हैं, लेकिन केंद्र से नजदीकियों के बाबजूद वो ऐसा करने में सफल नहीं हुए।
क्यों जरुरी हैं बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना
केंद्र सरकार की नीति के अनुरूप हर राज्य को उसकी भौगोलिक स्थिति और आय के श्रोत के आधार पर वर्गीकृत किया गया हैं। इसके अनुरूप ही समय-समय पर केंद्र सरकार राज्यों को अनुदान देकर राज्य के विकास में भागीदारी निभाता आया हैं। जब किसी राज्य की भौगोलिक स्थिति ऐसी हो कि वह राज्य स्वयं अपना विकास करने में सक्षम न हो, तो ये केंद्र सरकार का दायित्व बनता हैं कि वह उस राज्य को ज्यादा से ज्यादा मदद कर वहां की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करे। बिहार राज्य की स्थिति भी वैसी ही हैं एक ओर जहाँ आज भी कोसी नदी बिहार के लिए काल बनी हुई है, तो दूसरी ओर वर्षा के अभाव में समय-समय पर सूखे की स्थिति बनी रहती है। ऐसे में देश में सबसे पिछड़े राज्यों में शुमार इस राज्य को विशेष राज्य का दर्जा काफी पहले मिल जाना चाहिए था।
बिहार के डीएनए में खोट बताने वाली तात्कालीन केंद्र सरकार से ये उम्मीद बेमानी हैं
नीतीश कुमार भले ही आज बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार चला रहे हो। पर यहाँ की आम जनता आज भी मोदी के बिहार के DNA पर किए आक्षेप को नहीं भूली हैं। जिस केंद्र सरकार ने बिहार के डीएनए में खोट बताया हो वो यहाँ की जनता के प्रति कितनी उत्तरदायी हैं, ये यहाँ की जनता अच्छी तरह समझती हैं। इन सब के बावजूद नीतीश कुमार केंद्र की मोदी सरकार से उम्मीद लगाए हुए हैं कि वो एक दिन बिहार की स्थिति को सुधारने के लिए राज्य को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करेगी। जिस प्रकार नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचाने में अपने राज्य को ही भूल गए और बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया, उसी प्रकार जनता भी ये जान चुकी हैं कि नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाने में जितनी दिलचस्पी नहीं रखते हैं, उतनी अपनी कुर्सी बचाने में।
राजनेताओं और कुर्सी के खेल में बिहार की स्थिति बद से बदतर बनती जा रही है। नीतीश से शुरुआती दौर में बिहार की जनता को काफी उम्मीद थी और उन्होंने बिहार की स्थिति बेहतर करने की दिशा में काम भी किया था। मगर बिहार में केंद्र के सहयोग के बिना विकास आसान नहीं। वैसे भी, समय के साथ राज्य से ज्यादा राजनीति की चिंता में बिहार और पिछड़ रहा है, परंतु लोकसभा चुनाव करीब है, तो अभी सिर्फ कुर्सी की चिंता है सो फिलहाल दावतों की चिंता कीजिए और विकास के लिए सही वक्त का इंतजार।
■ सिद्धार्थ सिंह
■ सिद्धार्थ सिंह
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