बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

वादों-दावों का सीजन लौट आया है, क्योंकि लोकसभा चुनाव आ रहा है। चुनाव दर चुनाव विकास, सुशासन-प्रशासन की सिर्फ बात ही होती है, जमीनी हकीकत देखनी हो, तो मुंबई से लेकर दिल्ली तक जहां भी बारिश हुई है बस आप सड़कों पर निकल जाइए।
सत्ता बदलती है, लेकिन देश के भीतर हालात नहीं बदलते! बारिश शुरू होते ही सड़क और समंदर में फर्क करना मुश्किल हो जाता है, उस पर जानलेवा गड्ढे। अभी इसी महीने, यानी जुलाई 2018 में अकेले मुंबई में 6 लोगों की जान सड़क के गड्ढों की वजह से जा चुकी है, लेकिन राज्य के लोक निर्माण मंत्री चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि सड़क पर लोगों की मौत सिर्फ गड्ढों की वजह से नहीं होती। दिल्ली बारिश के साथ जलमग्न है। राजस्थान, बिहार, आसाम हर जगह एक से हालात।
जानकर आश्चर्य हो सकता है, लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार सड़क पर बने गड्ढों की वजह से होने वाली मौतों में यूपी अव्वल है। पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने दावा किया था कि उन्होंने प्रदेश की सड़कों के 63 प्रतिशत गड्ढों को भर दिया है। अब उन्हीं की सरकार के आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले साल सड़क के गड्ढों की वजह से होने वाली मौतों में यूपी पूरे देश में अव्वल है। यहां कुल 987 लोगों की मौत गड्ढों में गिरकर हुई, जबकि आतंकवाद के चलते इसी साल पूरे देश में कुल 803 जानें गईं।
यूपी के बाद आता है हरियाणा और गुजरात, जो ऐसी मौतों के मामले में क्रमश: दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं। महाराष्ट्र में 2017 में 726 लोगों की मौत इन गड्ढों में गिरकर हुई, जो साल 2016 की के मुकाबले सीधे दोगुनी है।
सभी प्रदेशों की सरकारों ने इस वजह से होने वाली मौतों का जो आंकड़ा केंद्र सरकार को भेजा है, वह बताता है कि साल 2017 में इन गड्ढों ने कुल 3,597 लोगों को स्वर्गवासी बना दिया। वर्ष 2016 में इस वजह से 2,324 लोगों की मौत हुई थी।
कुल मिलाकर, साल दर साल सड़क के गड्ढों की वजह से जान गंवाने वालों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन राजनीतिक दल अपनी-अपनी सरकारों की तारीफ के पुल बांधे जा रहे हैं। इस बीच, एक आम इंसान डर और मजबूरी में घर से निकल रहा है कि गड्ढे में गिरकर आज वो जान न गंवा बैठे। पर उसके पास विकल्प भी तो नहीं है।
■ संपादकीय

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