केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को ध्यान में रखते हुए हिंसा और मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) के मामलों के खिलाफ राज्य सरकारों को सोशल मीडिया सामग्री पर निगरानी रखने और जागरूकता अभियान शुरू करने के लिए प्रत्येक जिले में कम से कम पुलिस अधीक्षक की रैंक के नोडल अधिकारी को नियुक्त करने के लिए कहा है। केंद्रीय गृहमंत्री द्वारा जारी एडवाइजरी में राज्यों से ऐसे संभावित अपराधियों या नफरत भरे भाषण, झूठी खबरों और भड़काऊ भाषण देने वाले संदिग्ध व्यक्तियों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए विशेष कार्य बल (एसटीएफ) गठित करने के लिए कहा गया है। एडवाइजरी में तीन सप्ताह के अंदर ऐसे स्थानों को चिन्हित करने को कहा है, जहां पिछले पांच साल में भीड़ द्वारा हिंसा या हत्या की घटना को अंजाम दिया गया है।
सदन में हुई थी तीखी बहस
मंगलवार को संसद में मौब लिंचिंग से जुड़े विपक्ष के तीखे सवालों का जबाब देते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार देश में हो रही मॉब लिचिंग से जुड़ी घटनाओं पर नजर बनाए हुए हैं। सुरक्षा के मुद्दे पर अगर आवश्यकता पड़ी तो सरकार इसके खिलाफ कठिन कानून बनाने को भी तैयार हैं।
बताते चले कि देश में बढ़ रही मॉब लिचिंग की घटनाओं में ज्यादातर मामले अफवाहों के आधार पर हुई, जिसमें सोशल मीडिया का सबसे बड़ा हाथ है। भीड़ ने ज्यादातर हमले चोरी, बच्चों को अगवा करने, और पशु तस्करी के मामले पर किया है। ताजा मामला राजस्थान में अलवर का है, जहाँ भीड़ ने गौ तस्करी के आरोप में एक व्यक्ति को जान से मार दिया। इसमें पुलिस की भूमिका भी सन्देह के घेरे में है और खबरों के मुताबिक एक पुलिसकर्मी को सस्पेंड भी किया गया है। मामले की जाँच अभी की जा रही है।
हालिया ही इन मुद्दों का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एडवाइजरी जारी की है कि सभी राज्य और पुलिस चीफ इन मामलों को गंभीरता से ले और मॉब लिंचिंग से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अलग से कानून भी बनाने को कहा है। अब जब देश के ज्यादातर हिस्सों में ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं तो इस पर सरकार की तत्परता देखना लाजमी है।
इन सब के बीच गृह मंत्री ने एक बार फिर सदन में अपना बयान दोहराया, जिसमें उन्होंने कहा कि मॉब लिंचिंग की सबसे बड़ी घटना 1984 का सिख दंगा है।
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