भाजपा के विजय रथ को रोकने और अपनी खोई राजनीतिक जमीन वापस पाने की कांग्रेस की अकुलाहट दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इसी के साथ बैठकों के जरिए गठबंधन की जुगत और सीटों पर मंथन का दौर भी बढ़ रहा है। पिछले हफ्ते कोर कमेटी के गठन में चेहरों के बदलाव में भी यह परिलक्षित हुआ। अब कांग्रेस वर्किंग कमेटी में लक्ष्य 2019 को लेकर गहन मंथन हुआ, जिसमें पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये ‘मिशन 300’ का प्लान पेश किया है। चिदंबरम का मानना है कि तकरीबन 270 सीटें ऐसी हैं, जहां क्षेत्रीय दलों के साथ रणनीतिक गठबंधन की मदद से 150 सीटें जीती जा सकती हैं। चिदंरबरम फॉर्मूले के तहत कांग्रेस 300 सीटों पर अकेले और 250 सीटों पर रणनीतिक गठबंधन के साथ चुनाव लड़े। यानी जिन राज्यों में वह मजबूत स्थिति में है वहां भाजपा से सीधा मुकाबला करे, लेकिन जिन राज्यों में उसकी स्थिति नंबर 4 की हो, वहां क्षेत्रीय दलों को भाजपा से टक्कर के लिये आगे बढ़ाए और खुद पीछे रह कर समर्थन करे। या तो यह फॉर्मूला हो सकता है कि जिन राज्यों में कांग्रेस मजबूत स्थिति या फिर नंबर दो पर हो वहां संख्या में 150 का इजाफा कर ले, तो बाकी 150 सीटों का बचा हुआ काम क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पूरा कर सकते हैं, जिससे 272 के ‘मैजिक फिगर’ को यूपीए-3 पार कर सकती है।
खैर, कांग्रेस का यह फॉर्मूला 1977 जैसा है। फर्क सिर्फ इतना है कि तब कांग्रेस के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुट हुआ था। कांग्रेस अपनी जमीन बचाने के लिए 1977 की वहीं तस्वीर दोहराना चाहती है। क्षेत्रीय दलों की ओर से भी हाँ और न की स्थिति बनी हुई है, लेकिन गठबंधन तो चुनाव बाद भी कर्नाटक के तर्ज पर किया जा सकता है। फिलहाल, कांग्रेस का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत का फॉर्मूला बनाना है, ताकि भाजपा को केंद्र की सत्ता में आने से रोका जा सके। उधर, अवसरवादी राजनीति भी शुरू हो गई है और सियासी दलों की दोस्ती-दुश्मनी फायदे के हिसाब से बन-बिगड़ रही है।
कुल मिलाकर, लोकसभा चुनाव के पहले वोटो की जुगत में नित नए समीकरण बनते-बिगड़ते रहेंगे।
■ संपादकीय
खैर, कांग्रेस का यह फॉर्मूला 1977 जैसा है। फर्क सिर्फ इतना है कि तब कांग्रेस के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुट हुआ था। कांग्रेस अपनी जमीन बचाने के लिए 1977 की वहीं तस्वीर दोहराना चाहती है। क्षेत्रीय दलों की ओर से भी हाँ और न की स्थिति बनी हुई है, लेकिन गठबंधन तो चुनाव बाद भी कर्नाटक के तर्ज पर किया जा सकता है। फिलहाल, कांग्रेस का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत का फॉर्मूला बनाना है, ताकि भाजपा को केंद्र की सत्ता में आने से रोका जा सके। उधर, अवसरवादी राजनीति भी शुरू हो गई है और सियासी दलों की दोस्ती-दुश्मनी फायदे के हिसाब से बन-बिगड़ रही है।
कुल मिलाकर, लोकसभा चुनाव के पहले वोटो की जुगत में नित नए समीकरण बनते-बिगड़ते रहेंगे।
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