किस्से-कहानियों में रह जाएंगे अच्छे सरकारी विद्यालय - Kashi Patrika

किस्से-कहानियों में रह जाएंगे अच्छे सरकारी विद्यालय


एक समय था जब राजकीय सरकारी और अर्ध सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का वो स्तर था कि अच्छे से अच्छा विद्यार्थी इन स्कूलों में एडमिशन पाने के लिए दौड़ लगाता था। इनकी स्वीकार्यता ऐसी थी अगर एक बार आप इन विद्यालयों में एडमिशन पा गए तो माना जाता था कि आप का भविष्य सुरक्षित हैं। ऐसा नहीं था कि उस समय महंगे निजी विद्यालय नहीं हुआ करते थे, पर उनकी फ़ीस ज्यादा होने के साथ उनकी शिक्षा का स्तर सरकारी स्कूलों के आस पास भी नहीं फटकता था। अभिभावक अच्छे सरकारी विद्यालयों के चक्कर लगाना ज्यादा श्रेयकर समझते थे।

कहते हैं कि अनुभव से बड़ी कोई शिक्षा नहीं होती, जो दिन- दुगनी रात चौगुनी बढ़ती हैं। इसी अनुभव के आधार पर लोग बड़ी से बड़ी ऊंचाइया हासिल करते हैं और दूसरों को भी पार लगाते हैं। इन राजकीय सरकारी और अर्धसरकारी विद्यालयों में ऐसे ही अनुभवी शिक्षकों की अधिकता हुआ करती थी। सभी अपने विषय में पारंगत हुआ करते थे और इन विद्यालयों में शिक्षक बनना मानिंद लोगों की प्रेरणा हुआ करती थी। ऐसे अनुभवी और गुणी शिक्षक गणो का सानिध्य हर अभिभावक अपने बच्चों को देना पसंद करते थे और बच्चे भी अच्छी शिक्षा पाकर अपने गुरुजनों और अभिभावक का नाम रौशन करते थे।

समय परिवर्तन और सरकारों की अनदेखी के साथ ये राजकीय सरकारी स्कूल अब बस नाम भर के  रह गए हैं। गिनती के इक्का दुक्का छात्र यहाँ से शिक्षा ग्रहण कर ख्याति पा पाते हैं, बाकी अधिकांशतः विद्यार्थी शिक्षा अभियान का हिस्सा भर बनकर रह जाते हैं। चुनिंदा लोग तो न के बराबर अपने बच्चों को यहाँ भेजना चाहते हैं अब तो हाल ये हो गया हैं कि गरीब घरों के माँ बाप भी अपने बच्चों को निजी  में पढ़ाना ज्यादा पसंद करते हैं। परिवर्तन केवल समाज में नहीं आया है, पर अब निजी विद्यालयों  में पहले की तरह गुणी और अनुभवी शिक्षकों का भी नितांत आभाव हैं। आज के राजकीय विद्यालयों के शिक्षक भी शिक्षा के नाम पर केवल खाना पूर्ति करना ही अधिक श्रेयकर समझते हैं।

अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब अपरोक्ष रूप से भारत में शिक्षा का पूर्ण रूप से बाजारीकरण हो जाएगा और अच्छे सरकारी विद्यालय केवल किस्से कहानियों में रह जाएंगे।
◼️ सिद्धार्थ सिंह  

No comments:

Post a Comment