भारत की अर्थव्यवस्था दिनों दिन पटरी से उतरती जा रही हैं। तत्कालीन वस्तुओं के दामों में वृद्धि तो इसी ओर संकेत करती हैं। नोटबंदी के बाद बड़े पैमाने पर हुई निजी नौकरियों में छटनी अभी तक वापस नहीं हुई हैं। छोटे और मझोले सभी प्रकार के व्यापारी बाजार के मंद होने की बात कर रहे हैं। इसका एक संकेत यह भी हैं कि अगर अर्थव्यवस्था संभलती हैं तो बड़े पैमाने पर नौकरियों का सृजन होता हैं जो अब तक दिखाई नहीं दे रहा हैं। फिर रूपये में गिरावट भी एक पैमाना हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं हैं।
हालिया दिनों में भारत ने चीन से आपसी सम्बन्ध बढ़ाने और विशेषकर व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने में जिस नरमी का संकेत दिया हैं वो तो यही दर्शाता हैं कि धीरे-धीरे ही सही तत्कालीन सरकार अर्थव्यवस्था पर कुछ ख़ास न कर पाने की स्थिति में चीन के सामने घुटने टेक रही हैं। पहली बार भारत ने ताईवान को चीन का आधिकारिक हिस्सा माना हैं वो भी तब जब चीन की तरफ से भारत के लिए किसी मुद्दे पर नरमी के कोई संकेत नहीं हैं। कुछ दिनों पहले ही चीनी वस्तुओं का विरोध करने वाली सरकार ने चीन के बैंक को भारत में खोलने की अनुमति दे दी हैं।
वर्ल्ड बैंक की 2017 की रिपोर्ट में भारत को छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में दर्शाया गया हैं जिसने फ़्रांस को पीछे छोड़ दिया हैं। अब सवाल ये उठता हैं कि जब भारत की अंदरूनी स्थिति ही ख़राब हैं तो वैश्विक रिपोर्ट में इसे फ़्रांस से आगे क्यों दर्शाया गया हैं। तो वास्तविकता ये हैं कि रिपोर्ट केवल आकड़ों का खेल हैं जिसमे सिर्फ बढ़ोतरी को दर्शाया जाता हैं। ऐसे में ये सत्य हैं कि पिछले चार सालों में भारत में कुछ मुट्ठी भर चुनिंदा लोगों के मुनाफे में भारी वृद्धि दर्ज की गई हैं। भारत में धन का एक बड़ा संचय इन्ही लोगों के हाथ में जा पंहुचा हैं। अगर कहा जाए कि आज भारत की अर्थव्यवस्था इन्ही लोगों के दम पर चल रही हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
वैसे इस रिपोर्ट का भारत की वास्तविक अर्थव्यवस्था पर तो कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। हां, इतना जरूर हैं कि ये रिपोर्ट तत्कालीन सरकार के दिनोंदिन गिरते ग्राफ को फिर से एक बार आंकड़ों में ही सही संजीविनी जरूर दे जाएगी।
हालिया दिनों में भारत ने चीन से आपसी सम्बन्ध बढ़ाने और विशेषकर व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने में जिस नरमी का संकेत दिया हैं वो तो यही दर्शाता हैं कि धीरे-धीरे ही सही तत्कालीन सरकार अर्थव्यवस्था पर कुछ ख़ास न कर पाने की स्थिति में चीन के सामने घुटने टेक रही हैं। पहली बार भारत ने ताईवान को चीन का आधिकारिक हिस्सा माना हैं वो भी तब जब चीन की तरफ से भारत के लिए किसी मुद्दे पर नरमी के कोई संकेत नहीं हैं। कुछ दिनों पहले ही चीनी वस्तुओं का विरोध करने वाली सरकार ने चीन के बैंक को भारत में खोलने की अनुमति दे दी हैं।
वर्ल्ड बैंक की 2017 की रिपोर्ट में भारत को छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में दर्शाया गया हैं जिसने फ़्रांस को पीछे छोड़ दिया हैं। अब सवाल ये उठता हैं कि जब भारत की अंदरूनी स्थिति ही ख़राब हैं तो वैश्विक रिपोर्ट में इसे फ़्रांस से आगे क्यों दर्शाया गया हैं। तो वास्तविकता ये हैं कि रिपोर्ट केवल आकड़ों का खेल हैं जिसमे सिर्फ बढ़ोतरी को दर्शाया जाता हैं। ऐसे में ये सत्य हैं कि पिछले चार सालों में भारत में कुछ मुट्ठी भर चुनिंदा लोगों के मुनाफे में भारी वृद्धि दर्ज की गई हैं। भारत में धन का एक बड़ा संचय इन्ही लोगों के हाथ में जा पंहुचा हैं। अगर कहा जाए कि आज भारत की अर्थव्यवस्था इन्ही लोगों के दम पर चल रही हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
वैसे इस रिपोर्ट का भारत की वास्तविक अर्थव्यवस्था पर तो कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। हां, इतना जरूर हैं कि ये रिपोर्ट तत्कालीन सरकार के दिनोंदिन गिरते ग्राफ को फिर से एक बार आंकड़ों में ही सही संजीविनी जरूर दे जाएगी।
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