रमन का परिवार छोटा और सुखी परिवार कहा जा सकता था। परिवार में उसके दो पुत्र और एक पुत्रि थी , उसकी...
रमन का परिवार छोटा और सुखी परिवार कहा जा सकता था। परिवार में उसके दो पुत्र और एक पुत्रि थी , उसकी बूढ़ी माँ और आज्ञाकारिणी पत्नी थी। उसके पिता जी जब वह स्वमं कक्षा सात का विद्यार्थी था उसी साल हृदयाघात से स्वर्ग सिधार गये थे। तब वह गाँव चला गया जहां माता ने परिवार की सेवा करते हुए उसको पाला और उसकी पढ़ाई पूरी करवाई। परिवार में उसको सबका स्नेह मिलता रहे जिससे के उसका मनोभाव अच्छा रहे , पिता के जाने के बाद उसको एकाकीपन न घेर ले, जिसके लिए उसकी माता जी हमेशा परिवार की सेवा में लगी रहती थीं। रमन भी तेजस्वी था उसने डॉक्टरी की पढ़ाई सरकारी संस्थान से करी औऱ अंततः शहर कूच कर गया औऱ आज उसका आलीशान मकान तो है ही मकान में किसी भी भौतिक सुविधा की कोई कमी नहीं। उसपर उसके बच्चें भी मेधावी है औऱ पत्नी भी गऊ समान मिली है। यह रमन की प्रौढ़ आँखे देखती थीं।
अब चलिए रमन की बूढ़ी माँ की बूढ़ी, थकी आँखों से परिवार को देखें। उनका कमरा एक कोने में है, जिसमे सारी सुविधाएं है, पर आँखों की रौशनी कम हो चली है औऱ सुनने की क्षमता भी। दीवार पर लगे बड़े से एलसीडी को न तो वो देखती हैं औऱ न ही सुनती हैं। उनके लिए गाड़ी औऱ ड्राइवर भी है, लेकिन चलने में असमर्थ वह, किसी भी हालत में बस ड्राइवर के भरोसे बाहर नहीं जाती, औऱ जाए भी क्या जब घर के रसोई से लेकर नहाने तक का सामान रमन स्वमं बच्चों के साथ ले आता है। इसी तरह उनको रमन ने जो भी सुविधाएं दी हैं सब उनके लिए व्यर्थ है। गऊ जैसे बहु भी रमन के लिए गऊ है पर उनके लिए लात मारने वाली गैय्या है। बच्चे जो मेधावी हैं, दादी माँ के पास दो पल नहीं रुकते, अपने-अपने कमरो में जमे रहते हैं जब तक के रमन घर न आये।
माँ को अपना गांव औऱ उसकी घिसी-पिटी सामाजिक व्यवस्था बहुत याद आती थी। सास की साँसे चलने तक़ वह सर्वेसर्वा थी। पति पहले पुत्र था ये बात उसने गांठ बांध ली थी। ससुर हो चाहे जेठ-जेठानी बड़े हैं तो कर्तव्य आपका बनता है औऱ उसी तरह फ़र्ज़ वो निभाते हैं। मन बहुत बार रो देता था, पर टूटता नहीं था। भीड़ बहुत लगती थी पर कभी जानलेवा अकेलापन नहीं लगता था।
बूढ़ी माँ को पोते-पोती, लड़के-बहू का प्यार चाहिए। घर की मुखिया होने का अभिमान चाहिए न के सुविधाओ से अटा पड़ा एक कमरा।
-अदिति-
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