हमारे देश में एक कहावत मशहूर है, ‛एक तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी’ पंजाब के विधायक और देश की एक बड़ी पार्टी के नेता नवजोत सिंह सिद्धू का कुछ ऐसा ही हाल है। एक तो वे पाकिस्तान के नए पीएम इमरान खान के खिलाड़ी दोस्त बनकर वहां शपथ ग्रहण की शोभा बढ़ाने पहुंच गए। सिद्धू ऐसा करते समय यह भी भूल गए की अब वह एक क्रिकेटर या लाफ्टर शो में आने वाले अभिनेता नहीं बल्कि एक बड़ी पार्टी के नेता हैं। वो भी पाकिस्तान से सटे उस सूबे से जिसने पाकिस्तान की वजह से जाने कितने अपने खोये हैं।
खैर, दोस्ती बड़ी गाढ़ी थी, तो कपिल देव और गावस्कर के न जाने से कुछ सीखना जरूरी नहीं समझा और दावत के लिए पाकिस्तान पहुंच भी गए तो, एक दोस्त बनकर वापस आने की बजाय पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से गलबहियां करने लगे। इतने पर भी दोस्ती से जी नहीं भरा तो, पाक अधिकृत कश्मीर के तथाकथित राष्ट्रपति मसूद खान के बगल में बैठ गए। दोनों को लेकर विवाद उपजना स्वाभाविक था, सो भारत में विरोध के सुर उठने लगे। अपनी गलती न सही कश्मीर के शहीदों के घरवालों की भावनाओं का कद्र कर माफी मांग लेने का बड़प्पन सिद्धू क्यों कर दिखाते, इसलिए अजीबोगरीब बयान देने लगे, ‛पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने उनसे दोनों देशों के बीच अमन की पेशकश की। करतारपुर रूट खोलने का वादा किया। इमरान खान की हुकूमत में भारत-पाकिस्तान के रिश्ते बेहतर होंगे, एक नए युग की शुरुआत होगी।’ अगर पाकिस्तान को रिश्ते सुधारने में दिलचस्पी होगी, तो बातचीत का विकल्प सरकारों के बीच का आपसी मसला होगा, इस पर उन्हें सिद्धू के मध्यस्ता की जरूरत क्यों पड़ी!
फिलहाल, सिद्धू के पाकिस्तान जाने से उपजा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह और पाकिस्तानी जेल में शहीद भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की बहन दलबीर कौर ने पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा के गले लगने को लेकर सिद्धू की आलोचना की है। इन सबके बीच सिद्धू अपनी चूक अगर हुई तो उसकी माफी कश्मीर के शहीदों के परिजनों, देशवासियों से मांगने की बजाय इसकी लीपापोती में जुटे हैं।
कुल मिलाकर सिद्धू के इस गैर जिम्मेदाराना रवैये और उस पर बिना सिर-पैर के बयान से लगता है वे हंसी-ठिठोली के मंच और भारत-पाक के संवेदनशील संबंध के बीच के अंतर को समझ नहीं पाए हैं। तिस पर कांग्रेस की ओर से उनका बचाव किया जाना और आश्चर्यजनक है।
■ संपादकीय
खैर, दोस्ती बड़ी गाढ़ी थी, तो कपिल देव और गावस्कर के न जाने से कुछ सीखना जरूरी नहीं समझा और दावत के लिए पाकिस्तान पहुंच भी गए तो, एक दोस्त बनकर वापस आने की बजाय पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से गलबहियां करने लगे। इतने पर भी दोस्ती से जी नहीं भरा तो, पाक अधिकृत कश्मीर के तथाकथित राष्ट्रपति मसूद खान के बगल में बैठ गए। दोनों को लेकर विवाद उपजना स्वाभाविक था, सो भारत में विरोध के सुर उठने लगे। अपनी गलती न सही कश्मीर के शहीदों के घरवालों की भावनाओं का कद्र कर माफी मांग लेने का बड़प्पन सिद्धू क्यों कर दिखाते, इसलिए अजीबोगरीब बयान देने लगे, ‛पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने उनसे दोनों देशों के बीच अमन की पेशकश की। करतारपुर रूट खोलने का वादा किया। इमरान खान की हुकूमत में भारत-पाकिस्तान के रिश्ते बेहतर होंगे, एक नए युग की शुरुआत होगी।’ अगर पाकिस्तान को रिश्ते सुधारने में दिलचस्पी होगी, तो बातचीत का विकल्प सरकारों के बीच का आपसी मसला होगा, इस पर उन्हें सिद्धू के मध्यस्ता की जरूरत क्यों पड़ी!
फिलहाल, सिद्धू के पाकिस्तान जाने से उपजा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह और पाकिस्तानी जेल में शहीद भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की बहन दलबीर कौर ने पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा के गले लगने को लेकर सिद्धू की आलोचना की है। इन सबके बीच सिद्धू अपनी चूक अगर हुई तो उसकी माफी कश्मीर के शहीदों के परिजनों, देशवासियों से मांगने की बजाय इसकी लीपापोती में जुटे हैं।
कुल मिलाकर सिद्धू के इस गैर जिम्मेदाराना रवैये और उस पर बिना सिर-पैर के बयान से लगता है वे हंसी-ठिठोली के मंच और भारत-पाक के संवेदनशील संबंध के बीच के अंतर को समझ नहीं पाए हैं। तिस पर कांग्रेस की ओर से उनका बचाव किया जाना और आश्चर्यजनक है।
■ संपादकीय
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