अभी जमीर में थोड़ी सी जान बाकी है,
अभी हमारा कोई इम्तिहान बाकी है।
हमारे घर को तो उजड़े हुए जमाना हुआ,
मगर सुना है अभी वो मकान बाकी है।
हमारी उन से जो थी गुफ्तगू वो खत्म हुई,
मगर सुकूत सा कुछ दरमियान बाकी है।
हमारे जेहन की बस्ती में आग ऐसी लगी,
कि जो था खाक हुआ इक दुकान बाकी है।
वो जख्म भर गया अर्सा हुआ मगर अब तक,
जरा सा दर्द, जरा सा निशान बाकी है।
जरा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी,
वो बात खत्म हुई दास्तान बाकी है।
अब आया तीर चलाने का फन तो क्या आया,
हमारे हाथ में खाली कमान बाकी है।
■ जावेद अख्तर
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