वैसे तो सरकार के काम और उसकी योजनाओं की जमीनी सच्चाई जनता के सामने रखना मीडिया का काम है। ऐसे में कुछ रिपोर्ट सकारात्मक होती है, तो कुछ नकारात्मक भी होती हैं। नकारात्मक रिपोर्ट सामने रखते ही सरकार समर्थक हो-हल्ला और हाय तौबा मचाने लगते हैं। अब अपनी चुनी हुई सरकार के खिलाफ सुनना किसे अच्छा लगेगा। हो भी क्यों न! जनाब सच किसे भाता है। ख़ैर, जो सच हैं उसे दिखाना मीडिया का कर्तव्य है, ताकि लोकतंत्र सुचारु रूप से चलता रहे। तो क्यों न आज सरकार की कुछ योजनाओं के विषय में ही बात हो जाए...
उज्ज्वला योजना
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना भारत सरकार की महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक है। योजना को पूर्ण रूप से महिलाओं को ध्यान में रख कर बनाया गया है। ये एक समाज कल्याण योजना है। योजना को हरी झंडी
प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी ने 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बालिया जिले में दी। योजना में ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य को सर्वोपरी रखा गया है। योजना में गैर परम्परागत उर्जा के साधनों के उपयोग को बढ़ावा देना है। योजना का मुख्य उद्देश्य निम्न वर्ग की 5 करोड़ महिलाओं को LPG गैस कनेक्शन देना है ताकि सभी महिलाएं एलपीजी इंधन का उपयोग कर सकें।योजना को तीन सालों, वित्तीय वर्ष 2016-17, 2017-18 और 2018-19 में पूरा किया जाएगा। प्रत्येक एलपीजी कनेक्शन के लिए 1600 रुपए की सरकारी सहायता प्रदान की जाएगी। कनेक्शन BPL परिवारों की महिलाओं के नाम पर दिया जाएगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2018 तक प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के अंतर्गत 3.7 करोड़ गरीब महिलाओं एलपीजी के कनेक्शन दिए गए हैं। गांव के लोग खर्च बचाने की नीयत से एक सिलेंडर को साल-साल भर चलाते हैं। लेकिन इस बचत की वजह से गैस उपभोक्ताओं को दूसरी मुश्किल उठानी पड़ती है। अगर तीन महीने से ज्यादा वक्त तक सिलेंडर नहीं लिया जाए तो गैस कंपनियां ऐसे एलपीजी कनेक्शन को इनएक्टिव मोड यानी निष्क्रिय गैस कनेक्शन की सूची में डाल देती हैं। ऐसे उपभोक्ताओं को फिर से सिलेंडर लेने में अड़चन आती है। एक बार किसी एलपीजी कनेक्शन के इनएक्टिव कैटेगरी में चले जाने के बाद सिलेंडर लेने के लिए गैस एजेंसी जाकर दोबारा से कागजी खानापूर्ति करनी पड़ती है। ग्रामीण उपभोक्ता अक्सर इस स्थिति में अपना गैस कनेक्शन दोबारा चालू नहीं करवा पाते। इस वजह से बड़ी संख्या में एलपीजी कनेक्शन इनएक्टिव हो जाते हैं। ऐसे उपभोक्ताओं की बड़ी संख्या है, जिनके नाम से गैस कनेक्शन रजिस्टर्ड तो हैं लेकिन वो एक्टिव नहीं हैं। यानी एक बार गैस सिलेंडर ले लिया पर सिलेंडर का रेगुलर इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। अप्रैल 2016 तक ऐसे करीब 3.55 करोड़ उपभोक्ता पाए गए, जिनके नाम से गैस कनेक्शन है, लेकिन वो एक्टिव नहीं है।अप्रैल 2017 तक ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या बढ़कर 3.58 करोड़ पहुंच गई। और जनवरी 2018 तक इनका आंकड़ा बढ़कर 3.82 करोड़ हो गया। ऐसे इनएक्टिव कनेक्शन की संख्या उज्ज्वला योजना के अंतर्गत बांटे गए कुल कनेक्शन के बराबर है। तो आप ने अगर सारा माजरा पढ़ लिया हैं तो आप मीडिया को खुले तौर पर अभिशप्त कहने को स्वतंत्र हैं।
मुद्रा योजना
मुद्रा योजना में मई 2018 तक 12.61 करोड़ रुपये का लोन दिया जा चुका है। विशेषज्ञों की माने तो इस योजना
में बाटे गए लोन में एक खामी है। योजना में 5 लाख रुपये से ज्यादा लोन लेने वाले लोगों की संख्या कुल संख्या का महज 1.3 % हैं जिसमें रोजगार उत्पन्न करने की क्षमता है। 2017-18 में दिए गए 2,53,677.10 करोड़ रुपये लोन में पाने वाले 4.81 करोड़ हैं, जिसका औसत 52,700 रुपये है। यह इतनी कम हैं जिससे कोई भी व्यक्ति ऐसा व्यवसाय नहीं शुरू कर सकता जिससे रोजगार उत्पन्न किया जा सके। विशेषज्ञ की माने तो 50,000 रुपये में कोई व्यक्ति अपने और अपने परिवार के लिए कोई व्यवसाय नहीं खड़ा कर सकता, तो दूसरों को रोजगार देना तो बड़ी बात हैं। खैर अब सरकारी योजना है और लोगों को लोन भी मिल रहा हैं तो क्यों न एक बार आप भी प्रयास कर के देख लें।
अब किसी को भला लगे या बुरा, काम है तो सभी को पूरी ईमानदारी से करना चाहिए। अब हम सरकार भी नहीं कि अपनी जिम्मेदारियों के पूरा न होने का ठीकरा विपक्ष के सिर फोड़ दें और न ही विपक्ष हैं कि सत्ता पाने के लिए वादों की फेहरिस्त पकड़ा दें।
■सिद्धार्थ सिंह
उज्ज्वला योजना
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना भारत सरकार की महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक है। योजना को पूर्ण रूप से महिलाओं को ध्यान में रख कर बनाया गया है। ये एक समाज कल्याण योजना है। योजना को हरी झंडी
प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी ने 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बालिया जिले में दी। योजना में ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य को सर्वोपरी रखा गया है। योजना में गैर परम्परागत उर्जा के साधनों के उपयोग को बढ़ावा देना है। योजना का मुख्य उद्देश्य निम्न वर्ग की 5 करोड़ महिलाओं को LPG गैस कनेक्शन देना है ताकि सभी महिलाएं एलपीजी इंधन का उपयोग कर सकें।योजना को तीन सालों, वित्तीय वर्ष 2016-17, 2017-18 और 2018-19 में पूरा किया जाएगा। प्रत्येक एलपीजी कनेक्शन के लिए 1600 रुपए की सरकारी सहायता प्रदान की जाएगी। कनेक्शन BPL परिवारों की महिलाओं के नाम पर दिया जाएगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2018 तक प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के अंतर्गत 3.7 करोड़ गरीब महिलाओं एलपीजी के कनेक्शन दिए गए हैं। गांव के लोग खर्च बचाने की नीयत से एक सिलेंडर को साल-साल भर चलाते हैं। लेकिन इस बचत की वजह से गैस उपभोक्ताओं को दूसरी मुश्किल उठानी पड़ती है। अगर तीन महीने से ज्यादा वक्त तक सिलेंडर नहीं लिया जाए तो गैस कंपनियां ऐसे एलपीजी कनेक्शन को इनएक्टिव मोड यानी निष्क्रिय गैस कनेक्शन की सूची में डाल देती हैं। ऐसे उपभोक्ताओं को फिर से सिलेंडर लेने में अड़चन आती है। एक बार किसी एलपीजी कनेक्शन के इनएक्टिव कैटेगरी में चले जाने के बाद सिलेंडर लेने के लिए गैस एजेंसी जाकर दोबारा से कागजी खानापूर्ति करनी पड़ती है। ग्रामीण उपभोक्ता अक्सर इस स्थिति में अपना गैस कनेक्शन दोबारा चालू नहीं करवा पाते। इस वजह से बड़ी संख्या में एलपीजी कनेक्शन इनएक्टिव हो जाते हैं। ऐसे उपभोक्ताओं की बड़ी संख्या है, जिनके नाम से गैस कनेक्शन रजिस्टर्ड तो हैं लेकिन वो एक्टिव नहीं हैं। यानी एक बार गैस सिलेंडर ले लिया पर सिलेंडर का रेगुलर इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। अप्रैल 2016 तक ऐसे करीब 3.55 करोड़ उपभोक्ता पाए गए, जिनके नाम से गैस कनेक्शन है, लेकिन वो एक्टिव नहीं है।अप्रैल 2017 तक ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या बढ़कर 3.58 करोड़ पहुंच गई। और जनवरी 2018 तक इनका आंकड़ा बढ़कर 3.82 करोड़ हो गया। ऐसे इनएक्टिव कनेक्शन की संख्या उज्ज्वला योजना के अंतर्गत बांटे गए कुल कनेक्शन के बराबर है। तो आप ने अगर सारा माजरा पढ़ लिया हैं तो आप मीडिया को खुले तौर पर अभिशप्त कहने को स्वतंत्र हैं।
मुद्रा योजना
मुद्रा योजना में मई 2018 तक 12.61 करोड़ रुपये का लोन दिया जा चुका है। विशेषज्ञों की माने तो इस योजना
में बाटे गए लोन में एक खामी है। योजना में 5 लाख रुपये से ज्यादा लोन लेने वाले लोगों की संख्या कुल संख्या का महज 1.3 % हैं जिसमें रोजगार उत्पन्न करने की क्षमता है। 2017-18 में दिए गए 2,53,677.10 करोड़ रुपये लोन में पाने वाले 4.81 करोड़ हैं, जिसका औसत 52,700 रुपये है। यह इतनी कम हैं जिससे कोई भी व्यक्ति ऐसा व्यवसाय नहीं शुरू कर सकता जिससे रोजगार उत्पन्न किया जा सके। विशेषज्ञ की माने तो 50,000 रुपये में कोई व्यक्ति अपने और अपने परिवार के लिए कोई व्यवसाय नहीं खड़ा कर सकता, तो दूसरों को रोजगार देना तो बड़ी बात हैं। खैर अब सरकारी योजना है और लोगों को लोन भी मिल रहा हैं तो क्यों न एक बार आप भी प्रयास कर के देख लें।
अब किसी को भला लगे या बुरा, काम है तो सभी को पूरी ईमानदारी से करना चाहिए। अब हम सरकार भी नहीं कि अपनी जिम्मेदारियों के पूरा न होने का ठीकरा विपक्ष के सिर फोड़ दें और न ही विपक्ष हैं कि सत्ता पाने के लिए वादों की फेहरिस्त पकड़ा दें।
■सिद्धार्थ सिंह
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