गंगा बना ले नाली पिया, नाली मा बड़ी आग है - Kashi Patrika

गंगा बना ले नाली पिया, नाली मा बड़ी आग है

बनारसी ज्ञान॥ बनारसी को खोजना हो तो घर से पहले चाय-पान की दुकान पर टटोल लेना चाहिए। अब घर पर बैठ कर दुनिया-जहान के आविष्कार नहीं किए जा सकते और न ही देश की मुश्किलात हल किए जा सकते हैं। मुंह में पान घुलाते आइडियाज कुलबुलाने लगते हैं और फिर उसे थूक झट चाय के साथ चुटकी में समस्या का अंत। इससे आप इस भरम में न पड़ जाएं कि फिर तो आदमी दो मिनट में खाली होकर घर लौट सकता है। तो बात ऐसी है कि दुनियाभर में समस्याओं की भरमार है, सो समस्या कई हो सकती है। दूसरी ये की बनारस में वक्ताओं की कमी नहीं, तीसरे की मामला जड़ से खत्म करना होता है...वगैरह-वगैरह। 

खैर, मित्रगण परेशान हैं गंगा मइया में दिन -ब-दिन बढ़ती गंदगी को लेकर। पाड़ेजी के स्पेशल कमेंट का इंतजार है, क्योंकि देश-राज्य की सत्ता में उनकी निष्ठा भी विशेष है और पैठ भी। हुआ यूं कि कोई अखबार में आज “मैली होती गंगा” की खबर चाट(पढ़) आया था। हालांकि, शासन-प्रशासन, मंत्री-संत्री महाकुंभ से पहले सफाई का भरोसा दे रहे हैं, किंतु अखबार वालों की आदत खराब होती है, आंकड़ों के साथ खबर में ‛बाल की खाल’ निकाल कर रख देते हैं। पाड़ेजी हांफते हुए आते दिखें। आते ही उनकी हालत देखकर पहले बैठने को सब सरक गए, फिर पानी पीकर जब पाड़ेजी थोड़ा सुस्ता लिए, फिर खुद ही बोले, “का बताएं गुरु! आज तो चालान कट गयल। हेलमेट नाही लगायल रहली यार।” पर उनकी बात में नाराजगी नहीं, गर्व था। आगे बताने लगे कि किस तरह बनारस में ट्रैफिक-पुलिस मिलकर यातायात सेफ्टी पर अभियान छेड़ रखा है। वे बता ही रहे थे कि अकुलाए मित्र ने ‛गंगा में बढ़ती गंदगी’ की बात सामने कर दी। उनके बेवकूफाना सवाल पर दूसरों ने आंखें तरेरी, लेकिन भोले मित्र तो बस आज ही मइया को साफ करने पर तुले थे।

तब तक चाय भी आ गई थी, तो एक घूंट भर पाड़ेजी बोले, “योगीजी ने खुद कहा है कि 15 दिसंबर से कोई भी नाला गंगा में नहीं गिरेगा। इसके लिए योजना तैयार है, जिस पर अधिकारी दिन-रात काम में लगे हैं। गंगा सफाई के लिए 17 हजार करोड़ रुपए की व्यवस्था प्रधानमंत्रीजी और गडकरीजी ने कर दी है। उन्होंने अधिकारियों को सख्त निर्देश दे दिया है कि कुंभ से पहले गंगा हर हाल में साफ हो जाएंगी।”

पर मित्र मइया को लेकर कुछ ज्यादा भावुक थे, तो भावनाओं में बह गए और माने नहीं, बोले, “का गुरु, ई सफाई कार्यक्रम त 1989 से ही शुरू भयल हय। तीन दशक भय गयल और 916 करोड़ बह गए, लेकिन मइया रत्ती भर साफ नाही भयलीं।” मित्र भी आज मूड में थे, अखबारी ज्ञान घोट के पी आए थे। अब वे शुद्ध हिंदी पर उतर आए, “साफ होना दूर उल्टे गंगा में गन्दगी का अंबार बढ़ता जा रहा है। करोड़ों लीटर सीवर रोजाना गंगा में गिर रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने तो गंगाजल के पीने लायक होने पर भी आपत्ति जता दी है। आप कह रहे हैं, जो काम बरसों में नहीं हुआ, वो चंद महीनों में पूरा हो जाएगा।”

बातचीत अब बहस की ओर मुड़ते और चाय का स्वाद बिगड़ते देख मंडली में से यादवजी बात खत्म करने के मकसद से बोल पड़े, “अरे यार! गंगा मान लो पूरी तरह नाली में बदल भी गईं, तो कुछ खास नुकसान की बात नहीं है। ताजा जानकारी सामने आई है कि नाले का गैस भी काफी उपयोगी है। और इस गैस का इस्तेमाल भी आसान है। नाली में एक छोटे बर्तन को उल्टा करके रखो, फिर उसमें छेद करके एक पाइप डाल कर गैस का उपयोग किया जा सकता है। इससे ये चाय भी बनाई जा सकती है।”

गंगा सफाई की बात अब आई-गई होकर रह गई, चर्चा के लिए अब नया विषय मिल गया था। फिर माहौल हंसी-ठहाकों से हल्का-फुल्का हो गया और चाय के साथ समोसा भी छनने की तैयारी होने लगी।
सोनी सिंह

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