बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और धुर विरोधी साम्यवादी संगठन के मुखिया सीताराम येचुरी को संघ के कार्यक्रम में बुलाए जाने की अटकलों के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक बार फिर चर्चा में है। गौर करें तो, बीते कुछ सालों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने जिस तरह से अपनी गतिविधियों में इजाफा किया हैं वो इस बात का द्योतक आवश्य है कि इसकी लोकप्रियता में कई गुना इजाफा हुआ हैं। इस लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि केंद्र से राज्यों तक सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग इससे जुड़े हैं और बड़ी संख्या में संघ से जुड़े और जुड़ने वाले लोगों में इजाफा हुआ हैं। बीते साल पर ही अगर गौर किया जाए, तो इससे जुड़ने वाले सदस्यों में 200 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। किसी एक विचारधारा से जुड़े लोगों की इतनी बड़ी संख्या भारत में शायद आजादी के बाद पहली बार हुई है, जब उस वक्त सत्ता का अर्थ कांग्रेस हुआ करती थी।

वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अनुमानित रूप में 39 देशों में कार्यरत है, जिससे जुड़े सदस्यों की संख्या 50 लाख से भी ज्यादा है। यह संख्या केवल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की है। अगर इसमें इससे जुड़े अनुसांगिक संगठनों को जोड़ दिया जाए, तो यह संख्या इतनी बढ़ जाती हैं कि लगभग भारत में हर घर में कोई न कोई एक सदस्य सीधे या अपरोक्ष रूप से इससे जुड़ा हुआ है। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज देश में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने शासन के सामानांतर वो मुकाम हासिल कर लिया है कि उसकी भागीदारी सत्ता के साथ-साथ देश में सामाजिक हर क्रियाकलापों में हैं।

हालिया जून 2018 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम में जाना इस ओर इशारा करता है कि अभी इसकी लोकप्रियता में और इजाफा होना है। इस बात का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता हैं कि अब संघ ने अपने कार्यक्रम में अपने धुर विरोधी साम्यवादी संगठन के मुखिया सीताराम येचुरी को बुलाने का फैसला लिया है। यह बुलावा कई मायने में अहम् है, जहाँ एक ओर यह इस बात को स्पष्ट कर देता है कि संघ स्पष्ट रूप से राजनीतिक रूप में अपने सामानांतर कई विचारधाराओं से काफी आगे निकल चुका है, तो दूसरी ओर यह इस बात की पुष्टि भी करता है कि राजनीति से परे सामाजिक रूप में भी संघ ने अब विभिन्न विचारधाराओं को अपने अंदर समाहित करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।

2019 के केंद्र के चुनाव सामाजिक रूप में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए भी कई मायने में महत्वपूर्ण हैं। अगर प्रधानमंत्री मोदी एक बार फिर से देश की सर्वोच्च गद्दी पर बैठते हैं, तो जहाँ एक ओर यह भारत में बड़े पैमाने पर हो रहे निजीकरण की नीति पर मुहर लगा देगा, तो वही दूसरी ओर यह चुनाव यह भी सुनिश्चित कर देगा कि अब देश धुर हिन्दुत्व की विचारधारा पर आगे बढ़ चुका होगा और जिसका अगुआ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ होगा।
■ संपादकीय 

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