ईश्वर को खोजते लोग मेरे पास आते हैं। मैं उनसे कहता हूं कि ईश्वर प्रतिक्षण और प्रत्येक स्थान पर है। उसे खोजने कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है। जागो और देखो। और जागकर जो भी देखा जाता है, वह परमात्मा ही है...
सूफी कवि हाफिज अपने गुरु के आश्रम में था। और भी बहुत से शिष्य वहीं थे। एक रात्रि गुरु ने शिष्यों को शांत ध्यानस्थ बैठने को कहा। आधी रात गये गुरु ने धीमे से बुलाया, ''हाफिज!'' सुनते ही तत्क्षण हाफिज उठकर आया। गुरु जी ने उसे जो बताना था, बताया। फिर थोड़ी देर बाद उसने किसी और को बुलाया। लेकिन आया हाफिज ही। इस भांति दस बार उसने बुलाया। लेकिन बार-बार आया हाफिज ही। क्योंकि, शेष सब तो सो रहे थे।
परमात्मा भी प्रतिक्षण प्रत्येक को बुला रहा है- सब दिशाओं से, सब मार्गो से उसकी ही आवाज आ रही है। लेकिन, हम तो सोये हुए हैं। जो जागता है, वह उसे सुनता है; और जो जागता है, केवल वही उसे पाता है। इसलिए कहता हूं कि ईश्वर की फिक्र मत करो। उसकी चिंता व्यर्थ है। चिंता करो स्वयं को जगाने की। निद्रा में जो हम जान रहे हैं, वह ईश्वर का ही विकृत रूप है। यह विकृत अनुभव ही संसार है। जागते ही संसार नहीं पाया जाता है और जो पाया जाता है, वही सत्य है। लेकिन, हम स्वप्न में हैं और इसलिए 'जो है' वह दिखाई नहीं पड़ता है।
स्वप्नों को छोड़ो। संसार को नहीं, स्वप्न को छोड़ना ही संन्यास है। और, जो स्वप्नों को छोड़ने में समर्थ हो जाता है, वह पाता है कि वह तो स्वयं ही सत्य है।
■ (सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल)
सूफी कवि हाफिज अपने गुरु के आश्रम में था। और भी बहुत से शिष्य वहीं थे। एक रात्रि गुरु ने शिष्यों को शांत ध्यानस्थ बैठने को कहा। आधी रात गये गुरु ने धीमे से बुलाया, ''हाफिज!'' सुनते ही तत्क्षण हाफिज उठकर आया। गुरु जी ने उसे जो बताना था, बताया। फिर थोड़ी देर बाद उसने किसी और को बुलाया। लेकिन आया हाफिज ही। इस भांति दस बार उसने बुलाया। लेकिन बार-बार आया हाफिज ही। क्योंकि, शेष सब तो सो रहे थे।
परमात्मा भी प्रतिक्षण प्रत्येक को बुला रहा है- सब दिशाओं से, सब मार्गो से उसकी ही आवाज आ रही है। लेकिन, हम तो सोये हुए हैं। जो जागता है, वह उसे सुनता है; और जो जागता है, केवल वही उसे पाता है। इसलिए कहता हूं कि ईश्वर की फिक्र मत करो। उसकी चिंता व्यर्थ है। चिंता करो स्वयं को जगाने की। निद्रा में जो हम जान रहे हैं, वह ईश्वर का ही विकृत रूप है। यह विकृत अनुभव ही संसार है। जागते ही संसार नहीं पाया जाता है और जो पाया जाता है, वही सत्य है। लेकिन, हम स्वप्न में हैं और इसलिए 'जो है' वह दिखाई नहीं पड़ता है।
स्वप्नों को छोड़ो। संसार को नहीं, स्वप्न को छोड़ना ही संन्यास है। और, जो स्वप्नों को छोड़ने में समर्थ हो जाता है, वह पाता है कि वह तो स्वयं ही सत्य है।
■ (सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल)
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