कोई आरजू नहीं है, कोई मु़द्दा नहीं है,
तेरा गम रहे सलामत, मेरे दिल में क्या नहीं है।
कहां जाम-ए-गम की तल्खी, कहाँ जिन्दगी का रोना,
मुझे वो दवा मिली है, जो निरी दवा नहीं है।
तू बचाए लाख दामन, मेरा फिर भी है ये दावा,
तेरे दिल में मैं ही मैं हूँ, कोई दूसरा नहीं है।
तुम्हें कह दिया सितमगर, ये कुसूर था जबां का,
मुझे तुम मुआफ कर दो, मेरा दिल बुरा नहीं है।
मुझे दोस्त कहने वाले, जरा दोस्ती निभा ले,
ये मुतालबा है हक का, कोई इल्तिजा नहीं है।
ये उदास-उदास चेहरे, ये हसीं-हसीं तबस्सुम,
तेरी अंजुमन में शायद, कोई आईना नहीं है।
मेरी आंख ने तुझे भी, बाखुदा 'शकील' पाया,
मैं समझ रहा था मुझसा, कोई दूसरा नहीं है।
■ शकील बदायूँनी
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