हफ्ते भर की खबरों का लेखाजोखा॥
आम जन के चश्मे से देखें तो, मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन शोषण के मामले में जैसे-जैसे टुकड़ों में सच सामने आ रहा है। और सीएम नीतीश कुमार ने लंबे समय बाद जिस तरह इस पर अपनी चुप्पी तोड़ी, ऐसा लगता है जैसे किसी सफेदपोश दाग को छुपाने की कोशिश की जा रही है। खैर, जहां हमारे-आपके घरों की महिलाएं-बच्चियां सुरक्षित नहीं, वहां इन अनाथ मासूमों के दर्द का जवाब कौन तलाशता है!!
उधर, एनआरसी का मुद्दा देश के साथ अब विदेश में भी जोर पकड़ रहा है। इन सबके बीच एसी/एसटी एक्ट को लेकर केंद्र सरकार सदन से कोर्ट तक कसरत करती दिख रही है। वहीं, मराठा आरक्षण को राजघरानों का साथ मिल गया, तो जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट को मिलीं पहली महिला जज।
मुजफ्फरपुर मामला: सफेदपोश सच
मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन शोषण मामले के सामने आने के तकरीबन तीन महीने बाद शुक्रवार को सीएम नीतीश कुमार ने चुप्पी तोड़ी और खुद को शर्मसार कह अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी। इस मामले को लेकर को लेकर तेजस्वी यादव आज दिल्ली जंतर-मन्तर पर धरना दे रहे हैं, लेकिन इस मामले में रोज नए खुलासे सामने आ रहे हैं। इन सबमें सरकार के साथ विपक्ष भी साफ-पाक नहीं दिख रहा। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, मुजफ्फरपुर कांड में मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर सेक्स रैकेट चलाता था और उसके तार नेपाल से लेकर बांग्लादेश तक जुड़े हुए थे। वह इसका इस्तेमाल सरकारी फंड और ऑर्डर पाने के लिए करता था। यह रिपोर्ट सीबीआई पिछले हफ्ते केस केन्द्रीय अन्वेषण ब्योर (सीबीआई) को सौंपे जाने से पहले तैयार की गई थी। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि ठाकुर के तार गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) से जुड़े हुए थे और उसके रिश्तेदार और अन्य जानने वाले उसमें महत्वपूर्ण स्थान पर थे। उसने सरकारी अधिकारियों और बैंकरों के साथ मिलकर काफी पैसे अवैध तरीके से कमाए। रिपोर्ट में यह कहा गया- “उसने अपने रूतबे का पूरा इस्तेमाल किया, जिस बात ये साक्ष्य है कि उसे विज्ञापन के प्रावधान के मानकों के अनुरूप खड़े नहीं उतरने के बावजूद ब्रजेश ठाकुर को सरकारी अधिकारियों की सिफारिश पर समस्तीपुर स्थित सहारा ओल्ड एज होम चलाने की जिम्मेदारी दी गई थी।”
रिपोर्ट में आगे कहा गया- “बिहार स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी ने ठाकुर के एक एनजीओ से यह कहा कि वे योजनाओ को बिना प्रक्रिया का पालन किए चलाए, जिनमें विज्ञापन भी शामिल है। ऐसा संदेह है कि ठाकुर इन योजनाओं को पाने के लिए बीआईएसएसीएस के भ्रष्ट अधिकारियों को लड़कियों की सप्लाई करता था।” ख़बरों के अनुसार इस मामले में फरार चल रही मधु कुमार को मुख्य राजदार माना जा रहा है।
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक मधु विशेष लोगों की मदद से भारत से बाहर फरार हो चुकी है और उसके बिना राज से पर्दा उठना मुश्किल है। खबर के अनुसार मधु ब्रजेश ठाकुर की मुख्य वर्कर थी और इससे पहले वह देह व्यापार में शामिल थी। ठाकुर ने उसका इस्तेमाल कर मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान के रेड लाइट इलाके में अपनी पहुंच बनाई और उसे अपने ऑर्गेनाइजेशन वामा शक्ति वाहिनी का कागज पर अहम स्थान दिया। मामले का मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर की दोस्ती के तार आरजेडी से भी जुड़ रहे हैं। यह भी दवा किया जा रहा है कि आरजेडी सरकार में कद्दावर मंत्री रघुनाथ झा और रामनाथ ठाकुर के साथ ठाकुर का गहरा संबंध था। रामनाथ ठाकुर बिहार के पूर्व सीएम स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर के पुत्र हैं और अभी जनता दल यू के सांसद हैं।
सच यह भी है कि समाज कल्याण विभाग ने ब्रजेश ठाकुर को बालिका सुधार गृह चलाने का ठेका 31 अक्टूबर 2013 में दिया। साढे चार वर्षों में सैकड़ों अधिकारी, महिला आयोग के दर्जनों माननीय सदस्यों ने इस सुधार गृह का विजिट किया। करीब-करीब सबने ठाकुर की तारीफ की। किसी न किसी को तो ये महसूस हुआ होगा कि यहां सबकुछ ठीक-ठाक नहीं है. सुधारगृह के अगल-बगल के लोग बताते हैं कि रात में बच्चियों की चीख-पुकार सुनते थे। नीतीश सरकार में मंत्री के पति को भी ब्रजेश का करीबी माना जा रहा है। बहरहाल, मुजफ्फरपुर कांड के जांच की जिम्मेदारी सीबीआई के हवाले है और कब तक सब राजों से परदा उठता है, कहना मुश्किल है।
दलित-स्वर्ण: और बढ़े फासले
एससी-एसटी एक्ट को लेकर केंद्र सरकार संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कसरत करती दिख रही है। माना जा रहा है कि आम चुनाव से पहले सरकार इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनते नहीं देखना चाहती। इसके मद्देनजर अत्याचार निवारण संशोधन अधिनियम शुक्रवार को लोकसभा में पेश हो गया। उम्मीद जताई जा रही की सरकार इस पर सोमवार को चर्चा करा कर विधेयक को पारित करा लेगी और दूसरे ही दिन उसे राज्यसभा भेजा जा सकता है। वहीँ, सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार ने कहा कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी एसटी) के लोग अपने आप में पिछड़े हैं। वे दशकों से भेदभाव और छुआछूत का शिकार रहे हैं। उन्हें बराबरी पर लाने के लिए आरक्षण दिया जाता है। उनके पिछड़ेपन के अलग से आंकड़े जुटाने की जरूरत नहीं है। बहरहाल, सच यह है कि आधुनिक समाज में भी एससी/एसटी की स्थिति में खास बदलाव नहीं आया है, बल्कि आरक्षण को लेकर दिलों में दूरियां बढ़ी ही है। सबसे पहले दलित ऐक्ट वर्ष 1989 में आया था, इससे पहले एक और ऐक्ट था, जिसे प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट ऐक्ट कहते हैं। 1955 में बना यह कानून मूलत: छुआछूत के विरुद्ध था, वर्ष 1989 का ऐक्ट अत्याचार के विरुद्ध। वर्ष 1989 के दलित ऐक्ट को वर्ष 2015 में फिर से संशोधित करके और सख्त किया गया। यहां देश और दलित की प्रगति के अंतर्विरोध को देख लें।
हालात समझने की कोशिश करें, तो आरक्षण के कारण दलितों में एक मध्य वर्ग की झलक दिखने लगी थी, गैर दलितों के एक हिस्से को यह खलने लगा। दलितों पर दो-तरफा हमले शुरू हो गए। हिंसक वारदातें तथा दलित अफसरों की गोपनीय रिपोर्ट पर लाल स्याही की वारदातें। दलितों पर हमले रोकने के लिए वर्ष 1989 में दलित ऐक्ट आया और दलित अफसरों के प्रमोशन में रोडे़ अटकाने के विरुद्ध नब्बे के दशक में प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था करनी पड़ी। इसके बाद 1989 और 2015 में 26 वर्षों का अंतराल है। वर्ष 1991 में आर्थिक सुधार शुरू हुए, दलितों की स्थिति में भी सुधार हुआ। इससे दलितों के खिलाफ माहौल कुछ ज्यादा ही बनने लग गया, इसे देखते हुए 2015 में दलित ऐक्ट को और कड़ा करना पड़ा। परिणामतः वर्ष 1950 और 2014 के बीच 65 वर्षों का अंतराल है। इस दौरान भारत समृद्धिशाली बना, जाति व्यवस्था कमजोर पड़ गई, दलितों में एक सशक्त मध्यवर्ग बना, तथा व्यापक दलित समाज सवर्ण सत्ता से मुक्त हो गया। इन 64 वर्षों में सवर्णों के बीच से एक अंडर क्लास पैदा हुआ, जिसकी सुधि किसी ने नहीं ली। सवर्णों का यही तबका गुस्से में निराश बैठा था। यह तबका अब हिंसक बन बैठा, जो समय-समय पर इस तबके पर निकलता रहता है। यानी एससी/एसटी और सामान्य वर्ग के बीच दूरियां पटने की बजाय बढ़ती गई।
मराठा मांग: आरक्षण का आवरण
महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर सड़क पर हैं। गुरुवार को मराठा समाज को मराठा राजघरानों के वंशजों का भी समर्थन मिल गया। महाराष्ट्र की राजनीतिक पार्टियां मराठाओं को नाराज नहीं करना चाहती। महाराष्ट्र सरकार भी इस मुद्दे पर मराठाओं को समझाने के प्रयास में जुटी है और विपक्ष मुद्दा बनाकर सरकार को बेदखल करने की जुगत में है।
इन सबके बीच, सांगली-मिराज-कुपवाड नगर पालिका के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 78 में से 41 सीटों पर जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत हासिल किया। जलगांव में हुए नकरपालिका के चुनाव में बीजेपी ने 75 में से 41 सीटों पर जीत दर्ज कर अपना परचम लहराया है। 1 अगस्त को हुए नगरपालिका के इस चुनाव का गुरुवार को परिणाम घोषित किया गया। सांगली में पहले कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सत्ता थी। कांग्रेस को 20 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 15 सीटें मिली हैं। एक अगस्त को हुए चुनाव में शिवसेना ने अपने दम पर 57 सीटों पर उम्मीदवार खडे किये थे लेकिन एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सकी।
एनआरसी: हिंदुस्तानी कौन!
असम एनआरसी मुद्दे पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में बयान देते हुए लोगों को आश्वस्त करने का प्रयास किया कि डरने की जरूरत नहीं है। आज इस मुद्दे को लेकर अमेरिका में विरोध की ख़बरें भी आईं। हालांकि, आश्वासनों के बावजूद असम के उन निवासियों और उनके परिवार वालों में डर तो है! उधर, सांप्रदायिक विशेष का वोट लेने की राजनीति में एक बड़े तबके का वोट गवांने की चिंता हो रही है, जिससे राजनीतिक दल नित अपने बयान बदल रहे हैं। इन सबमें यह भी सच है कि जिनका नाम एनआरसी में दर्ज नहीं हो पाया है, वर्तमान में वह सन्देह के घेरे में है और उसे स्वयं को भारतीय साबित करने की मशक्कत करनी होगी।
बारिश से यूपी में फिलहाल राहत नहीं
उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में बारिश के कारण बुरा हाल है। मौसम विभाग के अनुसार फिलहाल बारिश से राहत मिलने के आसार नहीं है। उत्तर प्रदेश में दक्षिण-पश्चिम मानसून की सक्रियता के चलते वर्षा से जुड़े हादसों में बीते 24 घंटों में 17 और लोगों की जान चली गयी, जबकि पांच अन्य घायल हो गए। बारिश की वजह से अब तक मरने वालों की संख्या 180 तक पहुंच गई है। वाराणसी में गंगा नदी खतरे के निशान पर आ गई है। इलाहबाद में भी गंगा और यमुना में लगातार बढ़ रहा जलस्तर धीरे-धीरे खतरे के निशान की ओर बढ़ रहा है। हालांकि, इसके बीच एक राहत की खबर यह है कि अगस्त-सितंबर में अच्छी बारिश होने की उम्मीद है, जिससे खेती के लिए अच्छी खबर है।
गीता मित्तल बनीं जम्मू-कश्मीर की पहली महिला जज
न्यायमूर्ति गीता मित्तल को जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके साथ ही राज्य के उच्च न्यायालय की अध्यक्षता करने वाली वह पहली महिला न्यायाधीश बन गयी हैं। न्यायमूर्ति गीता मित्तल अब तक दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश थीं। गुरूवार को न्यायमूर्ति सिंधु शर्मा जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनीं।
अंततः राहत इंदौरी की पंक्ति,
आँख में पानी रखो, होठों पे चिंगारी रखो,
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो।
■ सोनी सिंह
आम जन के चश्मे से देखें तो, मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन शोषण के मामले में जैसे-जैसे टुकड़ों में सच सामने आ रहा है। और सीएम नीतीश कुमार ने लंबे समय बाद जिस तरह इस पर अपनी चुप्पी तोड़ी, ऐसा लगता है जैसे किसी सफेदपोश दाग को छुपाने की कोशिश की जा रही है। खैर, जहां हमारे-आपके घरों की महिलाएं-बच्चियां सुरक्षित नहीं, वहां इन अनाथ मासूमों के दर्द का जवाब कौन तलाशता है!!
उधर, एनआरसी का मुद्दा देश के साथ अब विदेश में भी जोर पकड़ रहा है। इन सबके बीच एसी/एसटी एक्ट को लेकर केंद्र सरकार सदन से कोर्ट तक कसरत करती दिख रही है। वहीं, मराठा आरक्षण को राजघरानों का साथ मिल गया, तो जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट को मिलीं पहली महिला जज।
मुजफ्फरपुर मामला: सफेदपोश सच
मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन शोषण मामले के सामने आने के तकरीबन तीन महीने बाद शुक्रवार को सीएम नीतीश कुमार ने चुप्पी तोड़ी और खुद को शर्मसार कह अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी। इस मामले को लेकर को लेकर तेजस्वी यादव आज दिल्ली जंतर-मन्तर पर धरना दे रहे हैं, लेकिन इस मामले में रोज नए खुलासे सामने आ रहे हैं। इन सबमें सरकार के साथ विपक्ष भी साफ-पाक नहीं दिख रहा। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, मुजफ्फरपुर कांड में मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर सेक्स रैकेट चलाता था और उसके तार नेपाल से लेकर बांग्लादेश तक जुड़े हुए थे। वह इसका इस्तेमाल सरकारी फंड और ऑर्डर पाने के लिए करता था। यह रिपोर्ट सीबीआई पिछले हफ्ते केस केन्द्रीय अन्वेषण ब्योर (सीबीआई) को सौंपे जाने से पहले तैयार की गई थी। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि ठाकुर के तार गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) से जुड़े हुए थे और उसके रिश्तेदार और अन्य जानने वाले उसमें महत्वपूर्ण स्थान पर थे। उसने सरकारी अधिकारियों और बैंकरों के साथ मिलकर काफी पैसे अवैध तरीके से कमाए। रिपोर्ट में यह कहा गया- “उसने अपने रूतबे का पूरा इस्तेमाल किया, जिस बात ये साक्ष्य है कि उसे विज्ञापन के प्रावधान के मानकों के अनुरूप खड़े नहीं उतरने के बावजूद ब्रजेश ठाकुर को सरकारी अधिकारियों की सिफारिश पर समस्तीपुर स्थित सहारा ओल्ड एज होम चलाने की जिम्मेदारी दी गई थी।”
रिपोर्ट में आगे कहा गया- “बिहार स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी ने ठाकुर के एक एनजीओ से यह कहा कि वे योजनाओ को बिना प्रक्रिया का पालन किए चलाए, जिनमें विज्ञापन भी शामिल है। ऐसा संदेह है कि ठाकुर इन योजनाओं को पाने के लिए बीआईएसएसीएस के भ्रष्ट अधिकारियों को लड़कियों की सप्लाई करता था।” ख़बरों के अनुसार इस मामले में फरार चल रही मधु कुमार को मुख्य राजदार माना जा रहा है।
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक मधु विशेष लोगों की मदद से भारत से बाहर फरार हो चुकी है और उसके बिना राज से पर्दा उठना मुश्किल है। खबर के अनुसार मधु ब्रजेश ठाकुर की मुख्य वर्कर थी और इससे पहले वह देह व्यापार में शामिल थी। ठाकुर ने उसका इस्तेमाल कर मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान के रेड लाइट इलाके में अपनी पहुंच बनाई और उसे अपने ऑर्गेनाइजेशन वामा शक्ति वाहिनी का कागज पर अहम स्थान दिया। मामले का मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर की दोस्ती के तार आरजेडी से भी जुड़ रहे हैं। यह भी दवा किया जा रहा है कि आरजेडी सरकार में कद्दावर मंत्री रघुनाथ झा और रामनाथ ठाकुर के साथ ठाकुर का गहरा संबंध था। रामनाथ ठाकुर बिहार के पूर्व सीएम स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर के पुत्र हैं और अभी जनता दल यू के सांसद हैं।
सच यह भी है कि समाज कल्याण विभाग ने ब्रजेश ठाकुर को बालिका सुधार गृह चलाने का ठेका 31 अक्टूबर 2013 में दिया। साढे चार वर्षों में सैकड़ों अधिकारी, महिला आयोग के दर्जनों माननीय सदस्यों ने इस सुधार गृह का विजिट किया। करीब-करीब सबने ठाकुर की तारीफ की। किसी न किसी को तो ये महसूस हुआ होगा कि यहां सबकुछ ठीक-ठाक नहीं है. सुधारगृह के अगल-बगल के लोग बताते हैं कि रात में बच्चियों की चीख-पुकार सुनते थे। नीतीश सरकार में मंत्री के पति को भी ब्रजेश का करीबी माना जा रहा है। बहरहाल, मुजफ्फरपुर कांड के जांच की जिम्मेदारी सीबीआई के हवाले है और कब तक सब राजों से परदा उठता है, कहना मुश्किल है।
दलित-स्वर्ण: और बढ़े फासले
एससी-एसटी एक्ट को लेकर केंद्र सरकार संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कसरत करती दिख रही है। माना जा रहा है कि आम चुनाव से पहले सरकार इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनते नहीं देखना चाहती। इसके मद्देनजर अत्याचार निवारण संशोधन अधिनियम शुक्रवार को लोकसभा में पेश हो गया। उम्मीद जताई जा रही की सरकार इस पर सोमवार को चर्चा करा कर विधेयक को पारित करा लेगी और दूसरे ही दिन उसे राज्यसभा भेजा जा सकता है। वहीँ, सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार ने कहा कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी एसटी) के लोग अपने आप में पिछड़े हैं। वे दशकों से भेदभाव और छुआछूत का शिकार रहे हैं। उन्हें बराबरी पर लाने के लिए आरक्षण दिया जाता है। उनके पिछड़ेपन के अलग से आंकड़े जुटाने की जरूरत नहीं है। बहरहाल, सच यह है कि आधुनिक समाज में भी एससी/एसटी की स्थिति में खास बदलाव नहीं आया है, बल्कि आरक्षण को लेकर दिलों में दूरियां बढ़ी ही है। सबसे पहले दलित ऐक्ट वर्ष 1989 में आया था, इससे पहले एक और ऐक्ट था, जिसे प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट ऐक्ट कहते हैं। 1955 में बना यह कानून मूलत: छुआछूत के विरुद्ध था, वर्ष 1989 का ऐक्ट अत्याचार के विरुद्ध। वर्ष 1989 के दलित ऐक्ट को वर्ष 2015 में फिर से संशोधित करके और सख्त किया गया। यहां देश और दलित की प्रगति के अंतर्विरोध को देख लें।
हालात समझने की कोशिश करें, तो आरक्षण के कारण दलितों में एक मध्य वर्ग की झलक दिखने लगी थी, गैर दलितों के एक हिस्से को यह खलने लगा। दलितों पर दो-तरफा हमले शुरू हो गए। हिंसक वारदातें तथा दलित अफसरों की गोपनीय रिपोर्ट पर लाल स्याही की वारदातें। दलितों पर हमले रोकने के लिए वर्ष 1989 में दलित ऐक्ट आया और दलित अफसरों के प्रमोशन में रोडे़ अटकाने के विरुद्ध नब्बे के दशक में प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था करनी पड़ी। इसके बाद 1989 और 2015 में 26 वर्षों का अंतराल है। वर्ष 1991 में आर्थिक सुधार शुरू हुए, दलितों की स्थिति में भी सुधार हुआ। इससे दलितों के खिलाफ माहौल कुछ ज्यादा ही बनने लग गया, इसे देखते हुए 2015 में दलित ऐक्ट को और कड़ा करना पड़ा। परिणामतः वर्ष 1950 और 2014 के बीच 65 वर्षों का अंतराल है। इस दौरान भारत समृद्धिशाली बना, जाति व्यवस्था कमजोर पड़ गई, दलितों में एक सशक्त मध्यवर्ग बना, तथा व्यापक दलित समाज सवर्ण सत्ता से मुक्त हो गया। इन 64 वर्षों में सवर्णों के बीच से एक अंडर क्लास पैदा हुआ, जिसकी सुधि किसी ने नहीं ली। सवर्णों का यही तबका गुस्से में निराश बैठा था। यह तबका अब हिंसक बन बैठा, जो समय-समय पर इस तबके पर निकलता रहता है। यानी एससी/एसटी और सामान्य वर्ग के बीच दूरियां पटने की बजाय बढ़ती गई।
मराठा मांग: आरक्षण का आवरण
महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर सड़क पर हैं। गुरुवार को मराठा समाज को मराठा राजघरानों के वंशजों का भी समर्थन मिल गया। महाराष्ट्र की राजनीतिक पार्टियां मराठाओं को नाराज नहीं करना चाहती। महाराष्ट्र सरकार भी इस मुद्दे पर मराठाओं को समझाने के प्रयास में जुटी है और विपक्ष मुद्दा बनाकर सरकार को बेदखल करने की जुगत में है।
इन सबके बीच, सांगली-मिराज-कुपवाड नगर पालिका के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 78 में से 41 सीटों पर जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत हासिल किया। जलगांव में हुए नकरपालिका के चुनाव में बीजेपी ने 75 में से 41 सीटों पर जीत दर्ज कर अपना परचम लहराया है। 1 अगस्त को हुए नगरपालिका के इस चुनाव का गुरुवार को परिणाम घोषित किया गया। सांगली में पहले कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सत्ता थी। कांग्रेस को 20 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 15 सीटें मिली हैं। एक अगस्त को हुए चुनाव में शिवसेना ने अपने दम पर 57 सीटों पर उम्मीदवार खडे किये थे लेकिन एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सकी।
एनआरसी: हिंदुस्तानी कौन!
असम एनआरसी मुद्दे पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में बयान देते हुए लोगों को आश्वस्त करने का प्रयास किया कि डरने की जरूरत नहीं है। आज इस मुद्दे को लेकर अमेरिका में विरोध की ख़बरें भी आईं। हालांकि, आश्वासनों के बावजूद असम के उन निवासियों और उनके परिवार वालों में डर तो है! उधर, सांप्रदायिक विशेष का वोट लेने की राजनीति में एक बड़े तबके का वोट गवांने की चिंता हो रही है, जिससे राजनीतिक दल नित अपने बयान बदल रहे हैं। इन सबमें यह भी सच है कि जिनका नाम एनआरसी में दर्ज नहीं हो पाया है, वर्तमान में वह सन्देह के घेरे में है और उसे स्वयं को भारतीय साबित करने की मशक्कत करनी होगी।
बारिश से यूपी में फिलहाल राहत नहीं
उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में बारिश के कारण बुरा हाल है। मौसम विभाग के अनुसार फिलहाल बारिश से राहत मिलने के आसार नहीं है। उत्तर प्रदेश में दक्षिण-पश्चिम मानसून की सक्रियता के चलते वर्षा से जुड़े हादसों में बीते 24 घंटों में 17 और लोगों की जान चली गयी, जबकि पांच अन्य घायल हो गए। बारिश की वजह से अब तक मरने वालों की संख्या 180 तक पहुंच गई है। वाराणसी में गंगा नदी खतरे के निशान पर आ गई है। इलाहबाद में भी गंगा और यमुना में लगातार बढ़ रहा जलस्तर धीरे-धीरे खतरे के निशान की ओर बढ़ रहा है। हालांकि, इसके बीच एक राहत की खबर यह है कि अगस्त-सितंबर में अच्छी बारिश होने की उम्मीद है, जिससे खेती के लिए अच्छी खबर है।
गीता मित्तल बनीं जम्मू-कश्मीर की पहली महिला जज
न्यायमूर्ति गीता मित्तल को जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके साथ ही राज्य के उच्च न्यायालय की अध्यक्षता करने वाली वह पहली महिला न्यायाधीश बन गयी हैं। न्यायमूर्ति गीता मित्तल अब तक दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश थीं। गुरूवार को न्यायमूर्ति सिंधु शर्मा जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनीं।
अंततः राहत इंदौरी की पंक्ति,
आँख में पानी रखो, होठों पे चिंगारी रखो,
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो।
■ सोनी सिंह
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