वैसे तो पिछले चार सालों में देश में बहुत कुछ बदल गया है। नहीं बदली हैं तो बस आम आदमी की जिंदगी। बदलती भी कैसे उसके न तो पैसों में ही कुछ इजाफा हुआ हैं कि वो कुछ सुकून के पल खरीद ले और न रुतबा ही बढ़ा कि अपनी ख्वाबगाह को ही सजाए।आज मौका भी हैं और दस्तूर भी। किशोर कुमार के जन्मदिन पर उन्हीं के गाए एक गाने की कुछ पंक्तिया "मझदार में नैय्या डोले, तो माझी पार लगाए। माझी जो नाव डुबोये उसे कौन बचाये" बहुत कुछ कह जाती हैं। खैर, ये राजनीतिक टिप्पणी बहुतों के गले नहीं उतरेगी, तो क्यों न कुछ सपने ही बुने जाएं। हो सकता हैं इनसे ही किसी जरूरतमंद को कुछ राहत मिले...
गरीबी का पैमाना घटाइये, गरीबी मिटाइये
यूं तो अपने देश का हर नागरिक दिल का राजा है, फिर चाहे उसकी जेब में जीने लायक भी पैसे हो न हो। पिछली केंद्र सरकार के कार्यकाल में एक आंकड़ा आया था, जिसने लोगों के होश उड़ा दिए थे। संसद से लेकर गली
मोहल्लों तक सरकार की भद्द हो गई थी। पर समय के साथ सब भूल गए। 2013 में प्लानिंग कमीशन के एक आंकड़े पर खूब चर्चा हुई थी, जिसमे प्रतिदिन 33 रुपय कमाने वाले व्यक्ति को गरीब नहीं माना जा सकता। अब पिछली सरकार ने ये कैसे जाना कि 33 रुपय में एक परिवार भरण-पोषण कर सकता हैं ये तो वही जाने। पर वर्तमान केंद्र सरकार इससे कही आगे निकल गई और उसने नियमतः गरीबी को जड़ से मिटा दिया। एक सभा में सरकार के एक समर्थक ने जोर-शोर से कहा कि गरीबी एक व्यवसाय है। इसे रोजगार की श्रेणी में भी रखा जा सकता हैं। लो अब तो मिट गई गरीबी।
मोहल्लों तक सरकार की भद्द हो गई थी। पर समय के साथ सब भूल गए। 2013 में प्लानिंग कमीशन के एक आंकड़े पर खूब चर्चा हुई थी, जिसमे प्रतिदिन 33 रुपय कमाने वाले व्यक्ति को गरीब नहीं माना जा सकता। अब पिछली सरकार ने ये कैसे जाना कि 33 रुपय में एक परिवार भरण-पोषण कर सकता हैं ये तो वही जाने। पर वर्तमान केंद्र सरकार इससे कही आगे निकल गई और उसने नियमतः गरीबी को जड़ से मिटा दिया। एक सभा में सरकार के एक समर्थक ने जोर-शोर से कहा कि गरीबी एक व्यवसाय है। इसे रोजगार की श्रेणी में भी रखा जा सकता हैं। लो अब तो मिट गई गरीबी।
वैसे इसमें बुनने लायक सपने भी हैं गरीब को जीवन से कुछ ज्यादा नहीं चाहिए। दो जून की रोटी और सोने के लिए जमीन और ऊपर खुला आसमान। आज की युवा पीढ़ी को इतनी फैंटसी लाइफ मिल जाए तो वो तख्तो ताज़ छोड़ दे।
चाँद पर भारत अपना चंद्रयान-2 भेजेगा
यूं तो आपको देश में बहुत से ऐसे महारथी मिल जाएंगे जो आप को जुबानी पूरे ब्रह्माण्ड की सैर करवा दे। पर
हम बात कर रहें हैं वास्तविकता की। अक्टूबर, 2008 में अपने पहले चंद्र मिशन चंद्रयान -1 की सफलता के बाद इसरों जोर शोर से चन्द्रमा पर अपने चद्रयान-2 को भेजने की तैयारी कर रहा हैं। यह अभियान पहले के मुकाबले इस तरह अलग हैं कि इसमें पहली बार चद्रयान -2 से इसरों चंद्रमा के लिए ऑर्बिटर, रोवर और लैंडर ले जाएगा।वैसे तो इस यान का प्रक्षेपण पहले हो जाना चाहिए था पर अभी भी इस पर कुछ परिक्षण करना बाकी हैं तो इसरों ने इसका प्रक्षेपण कुछ समय के लिए टाल दिया हैं।
हम बात कर रहें हैं वास्तविकता की। अक्टूबर, 2008 में अपने पहले चंद्र मिशन चंद्रयान -1 की सफलता के बाद इसरों जोर शोर से चन्द्रमा पर अपने चद्रयान-2 को भेजने की तैयारी कर रहा हैं। यह अभियान पहले के मुकाबले इस तरह अलग हैं कि इसमें पहली बार चद्रयान -2 से इसरों चंद्रमा के लिए ऑर्बिटर, रोवर और लैंडर ले जाएगा।वैसे तो इस यान का प्रक्षेपण पहले हो जाना चाहिए था पर अभी भी इस पर कुछ परिक्षण करना बाकी हैं तो इसरों ने इसका प्रक्षेपण कुछ समय के लिए टाल दिया हैं।
अब जब लगभग सभी देश अंतरिक्ष में जीवन तलाशने में जुटे हैं तो अपने देश की ये उपलब्धि वाकई कबीले तारीफ हैं। हो सकता हैं कि पैसों की कमी से कुछ लोग वहां न जा पाए पर वहां की किस्से कहानियां तो सुन ही सकते हैं।
तकनीकी का खेल खिलाड़ी जाने
गाहे बगाहे आप को कोई न कोई मिल ही जाता होगा जो आप को अपने कंप्यूटर,स्मार्ट फोन, इंटरनेट और डाटा की सुरक्षा का लेक्चर देता होगा। अब उसकी तकनीक आपसे से बेहतर है, तो उसने आप को समझया। जब आप
की तकनीक अच्छी हुई तो आप ने किसी और को समझाया। आम बात हैं। पर वर्तमान में साइबर सुरक्षा पर
लम्बी-चौड़ी बात करने वाली और डिजिटल इण्डिया को बढ़ावा देने वाली केंद्र सरकार यूआईडीएआई के मुद्दे पर घिरती नजर आ रही हैं। इस बार तकनीकी के महारथियों ने सरकार को ऐसा चकमा दिया है कि सरकार भी जनता से अपनी साइबर जानकारी को सुरक्षित रखने की अपील करती नजर आ रही हैं।
लम्बी-चौड़ी बात करने वाली और डिजिटल इण्डिया को बढ़ावा देने वाली केंद्र सरकार यूआईडीएआई के मुद्दे पर घिरती नजर आ रही हैं। इस बार तकनीकी के महारथियों ने सरकार को ऐसा चकमा दिया है कि सरकार भी जनता से अपनी साइबर जानकारी को सुरक्षित रखने की अपील करती नजर आ रही हैं।
मामला इतना होता तो ठीक था पर विपक्ष ने तकनीकी के ही एक और मामले पर चुनाव आयोग से गुहार लगाई हैं। मामला ईवीएम की जगह बैलट पेपर से 2019 के लोकसभा चुनाव करवाने का हैं। इससे आगे बढ़ते हुए अगर अख़बारों की माने तो इस बार रूस भी भारत के लोकसभा चुनावों में दिलचस्पी ले रहा हैं। माना ये जा रहा हैं कि रूस इंटरनेट के जरिये भारत के चुनावों को प्रभावित करने की फिराक में हैं। अब इतने सारे बवालों के बीच हम तो इतना ही कह सकते हैं कि तकनीकी का खेल खिलाड़ी जाने।
वैसे आज इसमें कोई छुपी हुई बात नहीं हैं कि पूरा भारत इंटरनेट पर ही अपने सपने बुन रहा हैं। तो आप भी सपनों का बुनना जारी रखे यही हमारी आप से दरख्वास्त हैं।
■सिद्धार्थ सिंह
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