आज रक्षाबंधन का त्यौहार पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। ऐसे में, एक धार्मिक प्रसंग से जानने की कोशिश करते है कि इस पवित्र परम्परा की शुरुआत कैसे हुई तथा राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त क्या है...
यह कथा तब की है, जब दानवीर राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहें थे और नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये वामन अवतार लिया और तीन पग में उनका सब कुछ ले लिया। भगवान ने राजा बलि को पाताल लोक का राज्य रहने के लिए दिया, तब उसने प्रभु से कहा कि मैं पाताल लोक में रहने के लिये तैयार हूँ, पर मेरी भी एक शर्त है। श्रीनारायण ने जब वरदान का वचन दिया, तब राजा बलि ने उनसे कहा- ‛मैं जब सोने जाऊँ, जब सोकर उठूं, हर समय मैं जिधर भी नजर जाये, उधर आपको ही देखूं।’ श्रीनारायण ने अपना माथा ठोक लिया और बोले-इसने तो मुझे पहरेदार बना दिया। पर कर भी क्या सकते थे वचन जो दे चुके थे।
अब श्रीनारायण हर घड़ी राजा बलि के यहाँ रहते। उधर बैकुंठ में लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी। एक दिन जब नारद जी आए, तो लक्ष्मी जी ने कहा- नारद जी आप तो तीनों लोकों में घूमते हैं। क्या नारायण को कहीं देखा आपने? नारद जी ने लक्ष्मी जी को बताया कि श्रीनारायण पाताल लोक में हैं और राजा बलि के पहरेदार बने हुये हैं।
यह सुनकर लक्ष्मी जी ने कहा- आप ही राह दिखाये की प्रभु कैसे मिलेंगे? नारद जी ने कहा- आप राजा बलि को भाई बना लीजिय और उनसे रक्षा का वचन लेकर फिर नारायण को माँग लीजिए। नारदजी के कहे अनुसार लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोती हुई बलि ने यहां पहुंची। बलि ने उनसे रोने का कारण पूछा, तो लक्ष्मी जी बोलीं- मेरा कोई भाई नहीं है, इसलिए मैं दुखी हूँ। तब बलि बोले- तुम मेरी बहन बन जाओ। लक्ष्मी जी खुशी-खुशी राजी हो गईं और उन्होंने बलि को रक्षासूत्र बांध कर वचन माँगा। राजा बलि इसके लिए तैयार हो गए। तब लक्ष्मी जी ने उनसे कहा-मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये। बलि सब बात समझ गए, लेकिन उन्होंने श्रीनारायण को मुक्त कर दिया। तभी से रक्षाबन्धन की प्रथा शुरू हुआ, ऐसा माना जाता है।
इसी लिये जब कलावा बाँधते समय मंत्र बोला जाता है-
“येन बद्धो राजा बलि, दानबेन्द्रो महाबला, तेन त्वाम प्रपद्यये रक्षे माचल माचल:”
रक्षा बन्धन अर्थात वह बन्धन जो हमें आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से, रोग- ऋण से सुरक्षा प्रदान करे।
राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त
सुबह 7:43 बजे से 9:18 बजे तक चर,
सुबह 9:18 बजे से लेकर 10:53 बजे तक लाभ,
सुबह 10:53 बजे से लेकर 12:28 बजे तक अमृत,
दोपहर 2:03 बजे से लेकर 3:38 बजे तक शुभ,
सायं 6:48 बजे से लेकर 8:13 बजे तक शुभ,
रात्रि 8:13 बजे से लेकर 9:38 बजे तक अमृत,
रात्रि 9:38 बजे से लेकर 11:03 बजे तक चर,
इन मुहूर्तों में राखी बांधी जा सकती है। अमृत मुहूर्त के समय राखी बाँधना बहुत ही फलदायी माना जाता है। इसलिए कोशिश करें कि इसी समय अपने भाई को राखी बाँधें।
■ काशी पत्रिका
यह कथा तब की है, जब दानवीर राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहें थे और नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये वामन अवतार लिया और तीन पग में उनका सब कुछ ले लिया। भगवान ने राजा बलि को पाताल लोक का राज्य रहने के लिए दिया, तब उसने प्रभु से कहा कि मैं पाताल लोक में रहने के लिये तैयार हूँ, पर मेरी भी एक शर्त है। श्रीनारायण ने जब वरदान का वचन दिया, तब राजा बलि ने उनसे कहा- ‛मैं जब सोने जाऊँ, जब सोकर उठूं, हर समय मैं जिधर भी नजर जाये, उधर आपको ही देखूं।’ श्रीनारायण ने अपना माथा ठोक लिया और बोले-इसने तो मुझे पहरेदार बना दिया। पर कर भी क्या सकते थे वचन जो दे चुके थे।
अब श्रीनारायण हर घड़ी राजा बलि के यहाँ रहते। उधर बैकुंठ में लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी। एक दिन जब नारद जी आए, तो लक्ष्मी जी ने कहा- नारद जी आप तो तीनों लोकों में घूमते हैं। क्या नारायण को कहीं देखा आपने? नारद जी ने लक्ष्मी जी को बताया कि श्रीनारायण पाताल लोक में हैं और राजा बलि के पहरेदार बने हुये हैं।
यह सुनकर लक्ष्मी जी ने कहा- आप ही राह दिखाये की प्रभु कैसे मिलेंगे? नारद जी ने कहा- आप राजा बलि को भाई बना लीजिय और उनसे रक्षा का वचन लेकर फिर नारायण को माँग लीजिए। नारदजी के कहे अनुसार लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोती हुई बलि ने यहां पहुंची। बलि ने उनसे रोने का कारण पूछा, तो लक्ष्मी जी बोलीं- मेरा कोई भाई नहीं है, इसलिए मैं दुखी हूँ। तब बलि बोले- तुम मेरी बहन बन जाओ। लक्ष्मी जी खुशी-खुशी राजी हो गईं और उन्होंने बलि को रक्षासूत्र बांध कर वचन माँगा। राजा बलि इसके लिए तैयार हो गए। तब लक्ष्मी जी ने उनसे कहा-मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये। बलि सब बात समझ गए, लेकिन उन्होंने श्रीनारायण को मुक्त कर दिया। तभी से रक्षाबन्धन की प्रथा शुरू हुआ, ऐसा माना जाता है।
इसी लिये जब कलावा बाँधते समय मंत्र बोला जाता है-
“येन बद्धो राजा बलि, दानबेन्द्रो महाबला, तेन त्वाम प्रपद्यये रक्षे माचल माचल:”
रक्षा बन्धन अर्थात वह बन्धन जो हमें आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से, रोग- ऋण से सुरक्षा प्रदान करे।
राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त
सुबह 7:43 बजे से 9:18 बजे तक चर,
सुबह 9:18 बजे से लेकर 10:53 बजे तक लाभ,
सुबह 10:53 बजे से लेकर 12:28 बजे तक अमृत,
दोपहर 2:03 बजे से लेकर 3:38 बजे तक शुभ,
सायं 6:48 बजे से लेकर 8:13 बजे तक शुभ,
रात्रि 8:13 बजे से लेकर 9:38 बजे तक अमृत,
रात्रि 9:38 बजे से लेकर 11:03 बजे तक चर,
इन मुहूर्तों में राखी बांधी जा सकती है। अमृत मुहूर्त के समय राखी बाँधना बहुत ही फलदायी माना जाता है। इसलिए कोशिश करें कि इसी समय अपने भाई को राखी बाँधें।
■ काशी पत्रिका
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