मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला,
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला।
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे,
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला।
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था,
फिर उस के बा'द मुझे कोई अजनबी न मिला।
खुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैंने,
बस एक शख्स को माँगा मुझे वही न मिला।
बहुत अजीब है ये कुर्बतों की दूरी भी,
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला।
■ बशीर बद्र
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