बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

किसी घटना पर बयान देना और सुर्खिया बटोरना ही अब राजनेताओं की दैनिक दिनचर्या बनकर रह गया हैं। प्रबंध में एक बात कही जाती हैं कि किसी भी प्रकार का प्रचार सही हैं। आज भारत की पूरी शासन प्रणाली ही इसके अधीन हो गई हैं। कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली समेत 13 राज्यों को कूड़े के निस्तारण तंत्र को सुधारने के लिए फटकार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने तो कई राज्यों पर जुर्माना भी लगाया। अपनी बात कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया कि हम मामले में हस्तक्षेप करते हैं तो हम परतोहमत लगाई जाती है, पर देश में व्यवस्था नाम की कोई चीज है भी या नहीं! सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि दिल्ली और मुंबई कूड़े के ढेर होते जा रहे हैं और प्रशासन खामोश है।

इस सब के बाबजूद मामला जस का तस रहा। सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए फिर से दिल्ली सरकार को फटकार लगते हुए कहा हैं कि कूड़े का प्रबंधन अगर आम लोगों को परेशान करने के लिए हैं तो क्यों न कूड़ा एलजी के घर के सामने फेंका जाए। सर गंगा राम हॉस्पिटल के एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज भारत में स्मोकिंग नहीं, बल्कि वायु प्रदुषण लंग कैंसर का सबसे बड़ा कारण हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा दिल्ली में स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही हैं और यह किसी एमरजेंसी से कम नहीं हैं तो सरकार इसे इतनी आसानी से कैसी ले सकती हैं।

दिल्ली सरकार की ओर से जबाब देते हुए एएसजी पिंकी आनंद ने कहा कि स्थिति एक रात में नहीं बदल सकती। हमने उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली में नए कूड़ा निस्तारण घर बनाने का प्रयास शुरू किया है,जो अगले साल दिसंबर तक पूरा होगा। दक्षिणी दिल्ली में हर रोज केवल आधे कूड़े का ही निस्तारण हो पा रहा है, बाकि आधा कूड़ा यूँ ही किसी डम्पिंग ग्राउंड पर फेक दिया जाता हैं।

ऐसा नहीं हैं कि कार्य करने से पूरा नहीं होगा, पर समय का ध्यान शासन प्रणाली केवल चुनावों के हिसाब से लगाती हैं। जब भी चुनाव आते हैं तो व्यवस्था चाक-चौबंध कर दी जाती, बाकि सारा समय केवल और केवल सत्ता की मलाई काटने में बीत जाता हैं। तो राम भरोसे चल रहे इस शासन तंत्र को देश कितने दिनों और ढो पाता हैं यह तो वक्त ही बताएगा। हां, इतना जरूर हैं कि जनता अब भी नहीं जागी तो उसकी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य जरूर अंधकारमय होगा।
■संपादकीय 

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