ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागे,
किसे क्या खबर है कहाँ टूट जायें,
मुहब्बत के दरिया में तिनके वफा के,
न जाने ये किस मोड़ पर डूब जायें,
अजब दिल की बस्ती अजब दिल की वादी,
हर एक मोड़ मौसम नई ख्वाहिशों का,
लगाये हैं हम ने भी सपनों के पौधे,
मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का,
मुरादों की मंजिल के सपनों में खोये,
मुहब्बत की राहों पे हम चल पड़े थे,
जरा दूर चल के जब आँखें खुली तो,
कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे,
जिन्हें दिल से चाहा जिन्हें दिल से पूजा,
नजर आ रहे हैं वही अजनबी से,
रवायत है शायद ये सदियों पुरानी,
शिकायत नहीं है कोई जिन्दगी से।
■ सुदर्शन फाकिर
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